भारत की बड़ी चाल! राफेल डील में फ्रांस को झटका, पर क्या यह सही फैसला है?
अरे भाई, क्या आपने सुना? भारत सरकार ने राफेल डील में एक बड़ा बदलाव किया है। मतलब, अब हम फ्रांस से कम विमान खरीदेंगे। सुनने में तो ठीक लगता है न? पर असल में बात कुछ और ही है। देखिए, एक तरफ तो यह ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने वाला कदम है – और दूसरी तरफ, टाटा की कंपनी TASL को इन विमानों के फ्यूसेलाज बनाने का ठेका मिल गया है। यानी अब हमारे यहाँ भी बनने लगेंगे ये हाई-टेक पार्ट्स। कमाल की बात है, है न?
पूरा मामला समझिए
याद है न वो 2016 वाली बड़ी डील? जब 36 राफेल विमानों के लिए 59,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। उस समय तो बड़ी खुशी हुई थी। लेकिन अब सरकार का रुख बदल गया है। ऑफसेट क्लॉज वाली बात तो थी ही, पर अब हम खुद बनाने पर ज़ोर दे रहे हैं। TASL को यह जिम्मेदारी मिलना… सच कहूँ तो यह एक बोल्ड मूव है। पर सवाल यह है कि क्या हम तकनीकी रूप से तैयार हैं?
क्या-क्या बदला? असली खेल यहाँ है
तो अब क्या हुआ है? पहली बात तो यह कि विमान कम खरीदे जाएंगे – जिससे यूनिट कॉस्ट कम होगी। दूसरा, TASL वाला पार्ट यहाँ बनेगा। और तीसरी सबसे ज़रूरी बात? डसॉल्ट एविएशन से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होगा! मतलब आगे चलकर हम इन विमानों में अपने घर के पुर्जे भी लगा सकेंगे। पर एक चिंता भी है – क्या फ्रांस पूरी तकनीक शेयर करेगा? यही तो असली टेस्ट होगा।
किसने क्या कहा? रिएक्शन्स की पोटली
अब सुनिए लोग क्या बोल रहे हैं। एक्सपर्ट्स तो खुश हैं – “आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ाया गया बेहतरीन कदम” वगैरह-वगैरह। डसॉल्ट वाले चुप हैं, पर शायद उन्हें यह पसंद नहीं आया होगा। वायुसेना का कहना है कि उनके ऑपरेशन्स पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पर मैं सोच रहा हूँ – क्या सच में नहीं पड़ेगा? थोड़ा तो असर होगा ही न!
आगे क्या? क्रिस्टल बॉल में झाँकते हैं
अब बताइए, यह सब होगा कैसे? पहले तो फ्रांस के साथ बातचीत बाकी है। अगर यह प्लान सफल रहा, तो हो सकता है और भी डील्स में हम ऐसा ही करें। TASL वाला प्रोजेक्ट तो गेम-चेंजर साबित हो सकता है। एक्सपोर्ट्स बढ़ेंगे, इकोनॉमी को फायदा होगा। पर… हमेशा एक पर होता है न?
आखिरी बात: जश्न मनाएँ या इंतज़ार करें?
सच पूछो तो यह डिसीजन बहुत बड़ा है। आत्मनिर्भरता की दिशा में सही कदम। पर इतना जल्दी जश्न मनाने की जरूरत नहीं। फ्रांस कैसे रिएक्ट करेगा, TASL कितना डिलीवर कर पाएगी – ये सब देखना बाकी है। एक तरफ तो यह हमारी टेक्निकल क्षमताओं के लिए अच्छा है… पर दूसरी तरफ, थोड़ा रिस्क भी तो है। क्या सोचते हैं आप?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com