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“इंडिया आउट से वेलकम मोदी तक: मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू का हृदय परिवर्तन और भारत-मालदीव संबंधों की अनकही कहानी”

इंडिया आउट से वेलकम मोदी तक: मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू का यह U-टर्न क्या बदल देगा?

अरे भाई, कभी-कभी राजनीति में ऐसे मोड़ आते हैं जो सीरियल के सबसे ड्रामेटिक ट्विस्ट को भी पीछे छोड़ देते हैं। 25 जुलाई 2024 को मालदीव का स्वतंत्रता दिवस होगा, लेकिन सच कहूं तो इस बार सारा फोकस वहां के मेहमान पर होगा – हमारे पीएम मोदी जी। सोचो, जिस मुइज्जू ने कुछ महीने पहले तक “इंडिया आउट” का नारा लगाया था, आज वही मोदी जी को रेड कार्पेट पर बुला रहे हैं। क्या यह सिर्फ एक राजनयिक यात्रा है या फिर असल में कुछ बड़ा होने वाला है?

वो पुरानी कहानी: जब मुइज्जू भारत के खिलाफ थे

याद है न वो दिन? चुनाव प्रचार के समय मुइज्जू साहब तो जैसे भारत के सबसे बड़े विरोधी बन गए थे। “भारतीय सैनिक वापस जाओ” से लेकर चीन के साथ गले मिलने तक – सब कुछ देखा हमने। लेकिन असल मजा तो तब आया जब भारत ने ठंडे दिमाग से काम लिया। वित्तीय मदद जारी रखी, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम चलता रहा। और आज? देख लो नतीजा – मोदी जी विशेष अतिथि बनकर जा रहे हैं। कहते हैं न, राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता!

मोदी जी का दौरा: सिर्फ फोटो ऑप्स से कहीं ज्यादा

सुनकर हैरान होगे, लेकिन यह 2018 के बाद मालदीव की सबसे बड़ी राजनीतिक यात्रा है। और भई, सिर्फ औपचारिकताएं निभाने वाली यात्रा तो नहीं लगती। डिफेंस डील्स, ट्रेड एग्रीमेंट्स, क्लाइमेट चेंज पर बातचीत – सब कुछ तय होगा। एक तरफ तो विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारत नई मिलिट्री फैसिलिटीज देने वाला है, दूसरी तरफ मालदीव की नई सरकार के साथ रिश्ते बनाने का यह सही मौका है। टाइमिंग पर गौर करो – एकदम परफेक्ट!

क्या सच में बदल गए हैं मुइज्जू?

अब यहां मजेदार बात यह है कि मुइज्जू साहब अब कहते हैं, “भारत के साथ संबंध स्ट्रैटेजिक इम्पोर्टेंस रखते हैं”। वाह! क्या यह वही व्यक्ति बोल रहा है? भारतीय विदेश मंत्रालय तो खुश है, लेकिन मालदीव का opposition चेतावनी दे रहा है – “चीन को नजरअंदाज मत करो”। सच कहूं तो यह पूरा मामला अभी भी एक रेसिपी की तरह है जिसमें सामग्री तो सब मिल गई है, लेकिन फाइनल टेस्ट अभी बाकी है।

आगे क्या? चीन और भारत के बीच तू-तू मैं-मैं?

असली सवाल तो यह है कि क्या मालदीव दोनों दिग्गजों के बीच बैलेंस बना पाएगा? भारत ने टूरिज्म और इन्वेस्टमेंट बढ़ाने की बात की है – जो मालदीव की इकोनॉमी के लिए जानलेवा जरूरत है। और हां, सिर्फ मालदीव ही नहीं, श्रीलंका और मॉरीशस जैसे पड़ोसी भी इस पूरे ड्रामा को बड़े गौर से देख रहे हैं। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आज जो मालदीव में हो रहा है, कल वही उनके यहां भी हो सकता है।

तो दोस्तों, यह कहानी हमें क्या सिखाती है? पहली बात तो यह कि राजनीति में कुछ भी फाइनल नहीं होता। दूसरी बात – थोड़ा patience और सही डिप्लोमेसी किसी भी रिश्ते को पलट सकती है। और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात? अगर आपके पड़ोसी में कोई ड्रामा चल रहा हो, तो पॉपकॉर्न तैयार रखो – क्योंकि अगला एपिसोड आपके यहां भी आ सकता है!

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इंडिया आउट से वेलकम मोदी तक: मालदीव-भारत के रिश्तों की कहानी, सवालों के जवाब

1. ‘इंडिया आउट’ ने मालदीव-भारत के रिश्तों को कितना हिलाया?

देखिए, ‘इंडिया आउट’ वाली बात तो थोड़ी अजीब थी। मालदीव के कुछ नेता भारत के प्रभाव को लेकर बवाल करने लगे – ठीक वैसे ही जैसे पड़ोसी अचानक आपके घर आने-जाने पर ऐतराज करने लगे। लेकिन असल में? यह सब surface level का drama था। मुइज्जू साहब के आते ही फिर से चीजें normalize हो गईं। है न मजेदार बात?

2. मुइज्जू साहब का भारत के प्रति नजरिया बदल क्यों गया?

अरे भई, election तो election होता है! वोट मांगने के लिए सब कुछ बोल देते हैं। लेकिन जब reality का पता चला तो समझ आया – मालदीव की economy और security के लिए भारत का साथ उतना ही जरूरी है जितना कि दोपहर की चाय के लिए चीनी। सच कहूं तो, राजनीति में ऐसे U-turns तो आम बात हैं। आपको क्या लगता है?

3. भारत और मालदीव मिलकर क्या-क्या कर रहे हैं?

लिस्ट तो लंबी है! defense से लेकर tourism तक, healthcare से लेकर infrastructure तक – cooperation का हर field cover हो रहा है। भारत की तरफ से financial aid, military training, vaccines… बस नाम लो और काम चल रहा है। एक तरह से देखें तो यह win-win situation है। सच कहूं तो हमारे यहां के लोगों को मालदीव की छुट्टियां पसंद हैं और उन्हें हमारा support!

4. क्या मालदीव अब चीन को छोड़ भारत को चुन रहा है?

हालांकि… (यहां थोड़ा pause जरूरी है)। दरअसल, मालदीव smartly दोनों तरफ से फायदा उठा रहा है। चीन के साथ economic ties भी हैं, और अब भारत के साथ relations भी improve हुए हैं। थोड़ा balancing act चल रहा है – जैसे दो दोस्तों के बीच रहकर दोनों को खुश रखना। पर सच तो यह है कि strategic तौर पर भारत का पलड़ा थोड़ा भारी है। क्या आपको नहीं लगता?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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