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रूस से रेकॉर्ड क्रूड ऑयल आयात पर पेट्रोलियम मंत्री का बड़ा बयान – “भारत की एनर्जी पॉलिसी किसी दबाव में नहीं”

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रूस से रेकॉर्ड क्रूड ऑयल आयात: पेट्रोलियम मंत्री ने क्या कहा, और क्यों है ये मुद्दा गरमा रहा?

सुनो, एक दिलचस्प बात बताता हूँ – भारत ने हाल ही में रूस से कच्चे तेल का आयात इतना बढ़ा दिया है कि रेकॉर्ड टूट गया! अब सवाल यह है कि क्या यह सही फैसला था? पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी तो यही कह रहे हैं कि हमने कोई गलत काम नहीं किया। असल में, उनका कहना है कि हमारी energy policy पर कोई बाहरी दबाव नहीं चलेगा – चाहे वो अमेरिका हो या यूरोप। और सच कहूँ तो, यह बात समझ में भी आती है। आखिर हमें अपने देश की जरूरतों का ख्याल तो रखना ही है न?

पूरी कहानी समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। याद है न वो यूक्रेन वाला मामला? जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए थे। उसी दौरान हमारी सरकार ने एक स्मार्ट मूव किया – रूस से सस्ता crude oil खरीदना शुरू कर दिया। और भईया, ये फैसला कामयाब रहा! पेट्रोल-डीजल के दाम कुछ कंट्रोल में रहे। है न मजेदार बात? आंकड़े तो यहाँ तक कह रहे हैं कि पिछले एक साल में हमारा रूस से तेल आयात 20 गुना बढ़ गया। 20 गुना! सोचो जरा…

अब जून 2023 की बात करें तो हम रोजाना 2.2 मिलियन बैरल कच्चा तेल रूस से मंगवा रहे हैं। मंत्री जी साफ कह रहे हैं – “हम जिससे चाहेंगे, जितना चाहेंगे, तेल खरीदेंगे।” पर यहाँ एक twist है। अमेरिका और यूरोप वाले इससे खुश नहीं दिख रहे। उनकी नाक भौंह सिकुड़ रही है। लेकिन हमारी सरकार का स्टैंड क्लियर है – देश की energy security सबसे पहले।

अब सवाल यह उठता है कि आगे क्या? विशेषज्ञ कह रहे हैं कि short term में तो यह फायदे का सौदा है, खासकर जब global oil prices लगातार डगमगा रहे हैं। पर long term में? अरे भई, अगर यह युद्ध और लंबा खिंचा तो हमें अपनी strategy थोड़ी adjust करनी पड़ सकती है। शायद दूसरे देशों से भी ज्यादा तेल मंगवाना पड़े।

मेरी निजी राय? देखिए, हर देश अपने हितों के लिए काम करता है। जैसे अमेरिका करता है, वैसे ही हम भी कर रहे हैं। और जैसा मंत्री जी ने कहा – हमारी policy का आधार है ‘देशहित’। बस, इतना ही। बाकी, अंतरराष्ट्रीय राजनीति तो जटिल चीज है – आज friend, कल competitor। पर हमें तो अपने लोगों का ख्याल रखना है न? सही कहा न मैंने?

[एक छोटी सी बात और – क्या आपने कभी सोचा है कि अगर हम रूस से तेल नहीं खरीदते तो पेट्रोल के दाम कहाँ होते? शायद आसमान में! सोचिए जरा…]

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भारत ने रूस से इतना ज्यादा क्रूड ऑयल क्यों खरीदा? असल में क्या चल रहा है?

सीधी बात करें तो, भारत ने रूस से रेकॉर्ड तेल खरीदा क्योंकि वहां से मिल रहा डिस्काउंट बाकी global market के मुकाबले बहुत ज्यादा था। सोचिए, अगर आपको दुकान A में 100 रुपये का सामान 80 में मिल रहा हो, तो आप कहां से खरीदेंगे? ठीक यही लॉजिक यहां भी काम कर रहा है। और हां, ये सिर्फ पैसे बचाने की बात नहीं है – एनर्जी सिक्योरिटी का सवाल भी जुड़ा हुआ है।

क्या वाकई भारत की एनर्जी पॉलिसी पर बाहरी दबाव है? सच्चाई क्या है?

देखिए, पेट्रोलियम मंत्री जी ने साफ कहा है – हमारी पॉलिसी किसी के इशारे पर नहीं चलती। पर सवाल यह उठता है कि क्या ये सिर्फ एक राजनीतिक बयान है? मेरा मानना है कि हमारी सरकार ने जो भी कदम उठाया, वो देश के हित में था। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुछ भी ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता, है न?

रूस से सस्ता तेल आयात करने का हमारी जेब पर क्या असर पड़ेगा?

अच्छा सवाल! सिद्धांत रूप में तो पेट्रोल-डीजल सस्ता होना चाहिए… पर यहां एक कैच है। असल में, कीमतें सिर्फ क्रूड ऑयल पर नहीं, बल्कि global market के उतार-चढ़ाव और सरकार के taxes पर भी निर्भर करती हैं। मतलब? हो सकता है आपको उतनी राहत न मिले जितनी उम्मीद थी। थोड़ा निराशाजनक, पर सच्चाई यही है।

क्या भारत सिर्फ रूस से ही तेल खरीद रहा है? या और भी विकल्प हैं?

अरे नहीं भई! हमारी सरकार इतनी भी naive नहीं है। मिडिल ईस्ट हो या अफ्रीका, अमेरिका हो या लैटिन अमेरिका – हम हर जगह से तेल खरीद रहे हैं। ये तो वैसा ही है जैसे आप सिर्फ एक दुकान से सामान नहीं खरीदते। डायवर्सिफिकेशन, यार! यही तो स्मार्ट पॉलिसी होती है।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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