सिंधु जल संधि: भारत का आर्बिट्रेशन कोर्ट से बहिष्कार…क्या यह सही फैसला है?
देखिए, मामला सीधा-साधा है। भारत ने सिंधु जल संधि (1960) के तहत आर्बिट्रेशन कोर्ट (CoA) की प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया है। और सच कहूं तो, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पाकिस्तान वालों को यह बात समझनी चाहिए कि यहां तकनीकी विवाद है, कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं। पर वो समझेंगे भी कैसे? उनका तो रिकॉर्ड ही खराब है न!
असल में, पाकिस्तान ने जानबूझकर आर्बिट्रेशन कोर्ट का रास्ता चुना, जबकि नियम कहता है कि ऐसे मामले Neutral Experts के पास जाने चाहिए। भारत की किशनगंगा और रातले जैसी परियोजनाओं पर उठाए गए सवाल? बस पानी में तूफ़ान खड़ा करने की कोशिश।
पूरा माजरा क्या है? थोड़ा पीछे चलते हैं…
1960 की यह संधि – जिस पर विश्व बैंक की मध्यस्थता में दस्तखत हुए – सिंधु, झेलम, चेनाब जैसी 6 नदियों के पानी का बँटवारा तय करती है। सालों से यही संधि झगड़ों का हल रही है। लेकिन पाकिस्तान का रवैया…अजीब है। हर बार भारत पर उल्लंघन का आरोप। जबकि सच तो यह है कि हम नियमों का पालन करते आए हैं।
अब सवाल यह है कि विवाद सुलझाने के लिए Neutral Expert बेहतर है या आर्बिट्रेशन कोर्ट? भारत का स्टैंड साफ है – तकनीकी मुद्दों पर तकनीकी विशेषज्ञ ही फैसला करें। कोर्ट क्या समझेगा बांधों और टरबाइनों के बारे में?
अभी क्या चल रहा है? लेटेस्ट अपडेट
भारत ने तो अपना रुख साफ कर दिया है। आर्बिट्रेशन कोर्ट को “बेमतलब का नाटक” बताया और बाहर निकल आए। हमारी मांग स्पष्ट है – Neutral Expert के पैनल से ही मामला सुलझे। विश्व बैंक को भी चाहिए कि पाकिस्तान को समझाए।
लेकिन पाक वालों का तो काम ही है विवाद खड़ा करना! उन्होंने इसे “संधि का उल्लंघन” बताया है। और हैरानी की बात यह कि कोर्ट ने भारत की बात नहीं सुनी। अब यह मामला और उलझ गया है।
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?
हमारे विशेषज्ञों का कहना बिल्कुल सही है – पाकिस्तान ने संधि के नियम तोड़े हैं। Technical मुद्दों पर Legal फोरम क्या करेगा? यह तो ऐसा हुआ जैसे आप डॉक्टर की जगह वकील से इलाज करवाने लगें!
वहीं पाकिस्तानी मीडिया…अरे भई, उनसे तो और क्या उम्मीद करें? वो तो भारत को ही दोष दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक भी मानते हैं कि विश्व बैंक को अब हस्तक्षेप करना चाहिए, नहीं तो यह ऐतिहासिक संधि खतरे में पड़ सकती है।
आगे का रास्ता क्या है?
अब देखना यह है कि विश्व बैंक क्या करता है। अगर पाकिस्तान पर दबाव नहीं बना, तो भारत को भी अपने विकल्पों पर विचार करना पड़ेगा। और यह सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों की बात नहीं है…पूरे क्षेत्र की जल सुरक्षा दांव पर लगी है।
पाकिस्तान को यह समझना होगा – भारत संधि तोड़ने की नहीं, बल्कि उसके नियमों को मनवाने की बात कर रहा है। Neutral Expert के जरिए हल निकालना ही सबके हित में है। वरना…अगला कदम क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
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सिंधु जल संधि और भारत का आर्बिट्रेशन कोर्ट से बहिष्कार – कुछ जरूरी सवालों के जवाब
1. सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) आखिर है क्या? और इतनी हाय-तौबा क्यों?
देखिए, 1960 का वो समझौता जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के झगड़े का हल निकाला। सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का बंटवारा तय किया गया। अब सवाल यह है कि यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? सीधी बात – पानी है तो जीवन है। और जब दो पड़ोसी देशों की बात हो, तो यह समझौता उतना ही जरूरी है जितना कि दो भाइयों के बीच रसोई का बंटवारा!
2. भारत ने आर्बिट्रेशन कोर्ट से मुंह क्यों मोड़ा? क्या गलत किया पाकिस्तान ने?
असल में बात यह है कि पाकिस्तान ने खेल के नियम ही बदल दिए। संधि कहती है पहले Neutral Expert के पास जाओ, लेकिन पाकिस्तान सीधे आर्बिट्रेशन कोर्ट पहुंच गया। भारत का कहना साफ है – “यार, नियम तो नियम होते हैं!” हम Neutral Expert प्रक्रिया को ही सही मानते हैं। सच कहूं तो, यह वैसा ही है जैसे कोई सीधे हाईकोर्ट चला जाए बिना लोअर कोर्ट के फैसले का इंतजार किए।
3. क्या पाकिस्तान को भारत के इस कदम को समझना चाहिए? या फिर…?
ईमानदारी से कहूं तो, समझना तो चाहिए ही! लेकिन सवाल यह है कि क्या वे समझेंगे? भारत ने तो बस संधि के नियमों का पालन किया है। एक तरफ तो हम Neutral Expert के जरिए हल ढूंढ रहे थे, दूसरी तरफ पाकिस्तान ने अचानक कोर्ट का रुख कर लिया। थोड़ा सा तो न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए, है न?
4. आगे क्या होगा? कहीं पानी पर जंग तो नहीं छिड़ेगी?
हालांकि भारत हमेशा शांतिपूर्ण समाधान की बात करता है, लेकिन… एक ‘लेकिन’ जरूर है। अगर पाकिस्तान लगातार संधि के नियमों को ताक पर रखेगा, तो तनाव बढ़ना तय है। पानी की लड़ाई खेतों से शुरू होकर राजनीति तक पहुंच सकती है। पर एक उम्मीद तो है – कभी न कभी तो समझदारी जीतती ही है। सच ना?
फिलहाल तो स्थिति यह है। देखते हैं आगे पानी किधर बहता है। है न?
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