भारत-रूस दोस्ती: इतनी मुश्किलें फिर भी ये जोड़ी क्यों नहीं टूटती?
अरे भाई, अमेरिकी सीनेट वालों ने फिर से नया ड्रामा शुरू कर दिया है! एक नया बिल लाने की बात चल रही है जो रूस से सामान खरीदने वाले देशों पर भारी-भरकम tax लाद देगा। और हमारा प्यारा भारत? सीधे निशाने पर। सोचिए, ट्रम्प साहब के समर्थन वाले इस बिल के पास होते ही हमारे लिए रूस के साथ वो पुराने रक्षा और आर्थिक रिश्ते बनाए रखना कितना मुश्किल हो जाएगा। पर सच बताऊं? ये कोई नई बात नहीं है।
क्या खास है इस दोस्ती में?
देखिए, हमारा रूस के साथ रिश्ता सिर्फ “हाय-हैलो” वाला नहीं है। Cold War के जमाने से, जब रूस सोवियत संघ हुआ करता था, तब से ये रिश्ता चला आ रहा है। आज भी हमारी सेना की रीढ़ कहलाने वाली S-400 मिसाइलें, सुखोई विमान – ये सब रूसी दोस्त का ही तोहफा है।
लेकिन यहाँ दिक्कत क्या है? अमेरिका CAATSA जैसे कानूनों के जरिए लगातार दबाव बना रहा है। मजे की बात ये कि हमें अमेरिका के साथ भी तालमेल बिठाना है। थोड़ा ऐसा है जैसे दोनों तरफ से खींचतान चल रही हो।
नया अमेरिकी बिल: गेम चेंजर या सिर्फ दबाव की रणनीति?
अब इस नए बिल ने मामले को और गरमा दिया है। सीधा-सीधा मतलब – रूस से सामान लो तो जेब ढीली करो! और ट्रम्प प्रशासन का सपोर्ट मिलने के बाद तो ये और भी गंभीर हो गया है। खासकर हमारे S-400 डील के लिए तो ये बड़ी मुसीबत बन सकता है।
पर हैरानी की बात ये कि अब तक भारत ने कोई पीछे हटने के संकेत नहीं दिए। पर आगे क्या होगा? ये तो वक्त ही बताएगा। एक तरफ हमारी सुरक्षा का सवाल है, दूसरी तरफ वैश्विक राजनीति का नाजुक संतुलन। सच कहूं तो ये हमारी विदेश नीति की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
कौन क्या कह रहा है?
हमारे विदेश मंत्रालय का स्टैंड क्लियर है – “हम किसी के दबाव में नहीं आएंगे, राष्ट्रीय हित सर्वोपरि।” वहीं अमेरिका का राग अलग – “रूस से दूर रहो, ये सेफ्टी के लिए खतरा है।”
एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं? उनका मानना है कि भारत को दोनों देशों के साथ बैलेंस बनाकर चलना होगा। मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं। थोड़ा ऐसा समझिए जैसे दोनों हाथों में लड्डू रखने हों!
आगे का रास्ता क्या है?
अगर ये बिल पास हो गया तो? सीधा असर – हमें रूसी डील्स पर एक्स्ट्रा टैक्स चुकाना पड़ेगा। सेना का बजट बढ़ेगा, नए डील्स पर रोक लग सकती है।
तो फिर समाधान? दो तरफा रणनीति:
1. अपने खुद के रक्षा उपकरण बनाने पर जोर (Make in India वाला खेल)
2. फ्रांस, इज़राइल जैसे दूसरे दोस्तों के साथ रिश्ते मजबूत करना
सच तो ये है कि भारत हमेशा से स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता आया है। रूस के साथ पुराने रिश्ते और अमेरिका के साथ नए संबंधों के बीच संतुलन बनाना – ये हमारी कूटनीति की असली परीक्षा होगी।
आखिर में एक सवाल – क्या आपको लगता है हम इस चुनौती से पार पा लेंगे? कमेंट में बताइएगा जरूर!
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भारत-रूस दोस्ती: कुछ सवाल, कुछ जवाब, और थोड़ी सी गपशप!
आखिर क्या बात है भारत और रूस की दोस्ती में?
देखिए, ये रिश्ता कोई नया नहीं है। हमारे दादा-परदादा के ज़माने से चला आ रहा है – ठीक वैसे ही जैसे आपके पुराने दोस्त जिनसे बिना बात के भी बात हो जाती है। Cold War के दिनों से लेकर आज तक, रूस ने हमें हर मुश्किल घड़ी में साथ दिया है – चाहे वो defense हो, technology हो या फिर UN में हमारी पीठ थपथपाना। और यही वजह है कि ये रिश्ता सिर्फ़ कागज़ों पर नहीं, दिलों में भी बसता है।
सच बताइए, क्या रूस अब चीन के पाले में चला गया है?
अरे भई, ये कोई सीधा-साधा सवाल नहीं है! हां, पिछले कुछ सालों में रूस और चीन के बीच कारोबार और हथियारों के सौदे बढ़े हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं? हमें अभी भी S-400 मिसाइल जैसी चीज़ें मिल रही हैं। ये तो वैसा ही है जैसे आपका एक दोस्त नए दोस्त बना ले, लेकिन आपके साथ मूवी देखना नहीं भूलता। थोड़ा complex है, पर समझने लायक़!
यूक्रेन वॉर ने हमारे रूस के साथ रिश्ते को कैसे प्रभावित किया?
ईमानदारी से कहूं तो ये एक टाइटरोप जैसा मामला था। पश्चिमी देश चाहते थे कि हम रूस की खुलकर आलोचना करें। पर हमने क्या किया? अपने राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखा। तेल के सौदे जारी रखे, कारोबार चलता रहा। थोड़ा balancing act तो करना पड़ा, पर ये तो राजनीति का खेल है ना? जैसे घर में दो झगड़ते भाइयों के बीच माँ का रोल!
क्या आगे भी यह दोस्ती कायम रहेगी?
अब यहाँ मेरी निजी राय – experts भी यही कहते हैं। दुनिया बदल रही है, America और Europe के साथ हमारे नए रिश्ते बन रहे हैं, ये सच है। पर रूस? वो तो वही पुराना दोस्त है। Energy हो, defense हो या space – साथ मिलकर काम करने के मौक़े तो बढ़ेंगे ही। बस थोड़ा adjust करना पड़ेगा, जैसे नए ज़माने में हर रिश्ते में करना पड़ता है। सच ना?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com