“ट्रंप की नाराजगी के बावजूद पुतिन से दोस्ती क्यों नहीं तोड़ेगा भारत? जानें पूरा सच!”

ट्रंप की नाराजगी के बावजूद भारत पुतिन से दोस्ती क्यों नहीं छोड़ेगा? असली वजह जानकर हैरान रह जाएंगे!

अरे भाई, क्या आपने सुना? अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति Donald Trump ने तो एक interview में जैसे बम ही गिरा दिया! भारत-रूस दोस्ती पर उनकी नाराजगी सुनकर लगा जैसे कोई पुराने दोस्त की बुराई कर रहा हो। पर सवाल यह है – क्या सच में भारत को western देशों के दबाव में आकर रूस से दूरी बनानी चाहिए? असल में बात तो यह है कि भारत सरकार ने अपना स्टैंड पहले ही साफ कर दिया है – “हमारी foreign policy हमेशा देश के हित में होगी, चाहे कोई कुछ भी कहे!” और सच कहूं तो यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस से सस्ता crude oil खरीदने का फैसला तो एकदम ज़बरदस्त था। Western देशों की नाक में दम कर दिया हमने!

ये दोस्ती सिर्फ आज की नहीं, इतिहास की है!

देखिए, भारत और रूस का रिश्ता कोई नया-नवेला नहीं है। ये तो सोवियत यूनियन के जमाने से चला आ रहा एक पक्का साथ है। एक तरफ तो रूस हमें हथियार देता है, दूसरी तरफ ऊर्जा resources भी। और भई, हमारी सेना के लिए तो रूसी हथियारों का कोई मुकाबला ही नहीं! Su-30MKI जैसे लड़ाकू विमानों से लेकर Kilo-class पनडुब्बियों तक – सब कुछ तो रूस से ही मिलता है। मतलब साफ है – हमारी सुरक्षा का सवाल है ये!

और यूक्रेन वाला मामला तो बिल्कुल अलग ही था। Western देश sanctions पर sanctions लगा रहे थे, और हमारा भारत… चुपचाप रूस से तेल खरीदता रहा! पर इसमें गलत क्या था? हमारी अपनी ऊर्जा जरूरतें हैं ना? सस्ता crude oil मिल रहा था, तो क्यों नहीं खरीदते? आखिर देश का फायदा तो देखना ही था!

ट्रंप ने क्या कहा और हमने क्या जवाब दिया?

अब इसी बीच Trump साहब ने interview में क्या कह दिया – “भारत को western देशों के साथ खड़ा होना चाहिए!” हंसी आती है यार… जैसे हम कोई स्कूल के बच्चे हैं जिन्हें सबक सिखाया जा रहा हो! हमारे विदेश मंत्रालय ने तो बड़े शानदार अंदाज में जवाब दिया – “हमारी foreign policy हमेशा से independent रही है और रहेगी!” बस, इतना कहने भर से सब समझ जाना चाहिए।

और देखिए ना, PM Modi और President Putin की मुलाकातों का सिलसिला तो चल ही रहा है। 2021 में defense और energy के क्षेत्र में कितने समझौते हुए! साफ है ना कि हम रूस के साथ रिश्ते और गहरे करना चाहते हैं।

दुनिया क्या कह रही है इस पर?

अब इस मामले पर तो हर कोई अपनी-अपनी राय दे रहा है। अमेरिकी State Department वाले कहते हैं कि हमें sanctions का समर्थन करना चाहिए। पर हमारे विदेश मंत्रालय का जवाब? बिल्कुल स्पष्ट – “हम अपने हितों के हिसाब से फैसला करेंगे!” और रूसी राजदूत तो बिल्कुल सही कह रहे हैं – “भारत एक विश्वसनीय साथी है, बाहरी दबाव से हमारे रिश्ते प्रभावित नहीं होंगे।”

आगे की राह क्या है?

असल में मुश्किल तो अब आने वाली है। एक तरफ अमेरिका है, दूसरी तरफ रूस – बीच में हमें संतुलन बनाकर चलना है। रूस से तेल और हथियार लेना जारी रखें, पर western देशों से भी रिश्ते मजबूत करने होंगे। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अमेरिका के साथ diplomatic talks हो सकती हैं। पर एक बात तो तय है – भारत अपने फैसले खुद लेगा!

आखिर में क्या कहूं… भारत की foreign policy हमेशा से ही दिमाग से चलती आई है। Trump चाहे जितना नाराज हो जाए, हम रूस के साथ अपने रिश्ते बनाए रखेंगे। क्यों? क्योंकि यह हमारी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है। और सबसे बड़ी बात – यह हमारी strategic autonomy को दिखाता है। मतलब साफ है – हम किसी के दबाव में नहीं आने वाले!

भारत की विदेश नीति को समझना हो तो एक बात याद रखिए – यहाँ कोई भावुक फैसले नहीं होते। सिर्फ राष्ट्रीय हित। और वो भी लंबे गेम को ध्यान में रखकर। अब देखिए न, चाहे Trump गुस्सा करें या कोई और देश दबाव बनाए, क्या भारत Russia के साथ अपने दशकों पुराने रिश्ते को ऐसे ही तोड़ देगा? बिल्कुल नहीं।

Russia के साथ ये दोस्ती सिर्फ इतिहास की बात नहीं

असल में, Putin के साथ हमारे रिश्ते की गहराई को समझना हो तो तीन चीज़ों पर गौर करें – रक्षा, ऊर्जा और जियोपॉलिटिकल स्टेबिलिटी। ये तीनों ही मोर्चों पर Russia हमारे लिए एक विश्वसनीय साझेदार रहा है। और सच कहूँ तो, आज के इस अनिश्चित वैश्विक माहौल में ऐसे दोस्तों की कमी है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ पुराने रिश्तों के दम पर चलते रहना चाहिए? बिल्कुल नहीं। भारत ने हमेशा से ही एक बैलेंस्ड अप्रोच अपनाया है। America के साथ भी हमारे रिश्ते मजबूत हुए हैं, लेकिन Russia के साथ का equation अलग ही है। यहाँ पर हमारी प्राथमिकता साफ है – देश की सुरक्षा और विकास। बाकी सब बाद में।

एक तरफ तो हमें West के साथ आर्थिक सहयोग चाहिए, वहीं दूसरी तरफ Russia जैसा स्ट्रैटेजिक पार्टनर भी ज़रूरी है। समझदारी इसी में है कि दोनों के बीच बैलेंस बनाए रखा जाए।

सच तो ये है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई परमानेंट दोस्त या दुश्मन नहीं होता। सिर्फ परमानेंट इंटरेस्ट्स होते हैं। और भारत ने इस गेम को बखूबी समझ लिया है।

ट्रंप vs पुतिन: भारत कैसे खेले इस जटिल राजनीतिक गेम में?

अरे भाई, ये सवाल तो हर कोई पूछ रहा है न! जब दो बड़े दांव players आपस में भिड़ें, तो हम जैसे देशों को क्या करना चाहिए? चलो समझते हैं…

1. भारत ने अमेरिका की नाराज़गी के बावजूद रूस से हाथ क्यों नहीं खींचा?

देखो, foreign policy कोई रिश्तेदारी तो है नहीं जो मनमुटाव होते ही तोड़ दें। सच तो ये है कि रूस हमारा पुराना और भरोसेमंद दोस्त रहा है – वो भी ऐसा दोस्त जिसने हमेशा मुसीबत के वक्त साथ दिया। Defence से लेकर UN में veto तक… याद है न 1971 का वार?

और सुनो, strategic autonomy का मतलब ये नहीं कि हम अमेरिका को नाराज़ करना चाहते हैं। बस इतना कि अपने national interest को सबसे ऊपर रखते हैं। थोड़ा ऐसे समझ लो – जैसे आप मम्मी-पापा दोनों से प्यार कर सकते हैं, चाहे वो आपस में लड़ते हों!

2. क्या भारत दोनों superpowers के साथ तालमेल बिठा पाएगा?

अरे यार, ये तो हमारा सुपरपावर है! हमारे पूर्व PM अटल जी ने तो इसे “multi-alignment” कहा था। मतलब?

एक तरफ अमेरिका के साथ हमारा trade और defence partnership – जो China के खिलाफ हमारे लिए बेहद ज़रूरी है। दूसरी तरफ रूस… जिसके बिना हमारी सेना का 60% equipment तो चल ही नहीं सकता।

और हां, ये कोई नई बात नहीं। नेहरू जी के जमाने से हम ये खेल खेल रहे हैं। बस अब हम और expert हो गए हैं!

3. रूस की दोस्ती से हमें क्या-क्या मिल रहा है?

लिस्ट बनाने बैठो तो बहुत लंबी हो जाएगी! पर मुख्य बातें:

– हमारी सेना की रीढ़ हैं रूसी हथियार। S-400 से लेकर Sukhoi तक… सब उन्हीं के दिए हुए।
– UN में जब-जब पाकिस्तान हम पर आंसू बहाता है, Russia हमारा साथ देता है।
– Oil और gas में भी हमारी ज़रूरतें पूरी करते हैं Rosneft और Gazprom जैसी कंपनियां।

सच कहूं? ये रिश्ता सिर्फ business नहीं, एक trust का भी है। जो आजकल की राजनीति में दुर्लभ है।

4. क्या अमेरिका वाकई भारत पर दबाव बना सकता है?

हंसी आती है यार! 1990 का भारत नहीं रहा ये। आज हम दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी economy हैं। हमारे पास market है, military power है, और सबसे बड़ी बात – हम China के खिलाफ अमेरिका के सबसे मजबूत ally हैं।

थोड़ा realistic होकर सोचो… क्या अमेरिका वाकई हमें नाराज़ करना चाहेगा? जबकि Indo-Pacific में उन्हें हमारी ज़रूरत है?

फिर भी… ईमानदारी से कहूं तो कुछ economic pressure आ सकता है। लेकिन Modi सरकार ने तो ये साबित कर दिया है कि हम अपने पैरों पर खड़े होना जानते हैं। नोटबंदी से लेकर Russia से oil खरीदने तक… है न?

तो दोस्तों, निष्कर्ष क्या निकालें? सीधी सी बात – भारत अब किसी के इशारों पर नाचने वाला देश नहीं रहा। और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। क्या कहते हो आप?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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