अमेरिका का दबाव? भारत ने किया ‘ना’ और रूस को भेज दिया युद्ध सामग्री!
देखिए, भारत ने फिर से वो किया जिसके लिए हम जाने जाते हैं – अपने फैसले खुद लेना! अमेरिका की लाख चीख-पुकार के बावजूद, हमने रूस को मिसाइल पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट्स भेज दिए। और हां, ये वो वक्त है जब पूरी दुनिया रूस से दूर भाग रही है। अमेरिका तो खासकर गुस्से में है – ट्रंप साहब के ट्वीट्स देख लीजिए, मानो चाय की दुकान पर झगड़ा हो रहा हो! पर एक बात तो तय है – भारत और रूस की दोस्ती पहले से ज्यादा मजबूत हुई है। क्या आपको लगता है ये सही फैसला था?
भारत-रूस दोस्ती: पुरानी बोतल में नया शराब?
असल में बात ये है कि हमारा रूस के साथ रिश्ता वैसा ही है जैसे दादी का पुराना तिजोरी – भरोसेमंद और टाइम-टेस्टेड! सोवियत यूनियन के जमाने से हमारे 70% डिफेंस गियर रूसी हैं। हालांकि, अमेरिका भी पीछे नहीं – Apache हेलीकॉप्टर से लेकर P-8I पोसीडॉन तक, सब कुछ ऑफर कर रहा है। मगर सवाल ये है कि क्या हम अपना पुराना रिश्ता छोड़ दें? यूक्रेन वॉर के बाद तो ये और भी मुश्किल हो गया है। एक तरफ अमेरिका का दबाव, दूसरी तरफ अपना इतिहास – समझो जैसे दोनों हाथों में लड्डू फंस गए हों!
क्यों भड़के अमेरिका के होश?
तो क्या हुआ अगर हमने रूस को कुछ डिफेंस सप्लाई कर दी? अमेरिका को इतना झटका क्यों लगा? असल में मामला ये है कि ये सारा डील अमेरिकी प्रतिबंधों की छाया में हुआ है। वाशिंगटन वाले तो बस यही चाहते थे कि पूरी दुनिया रूस से मुंह मोड़ ले। और हम? हमने तो बस अपने पुराने वादे निभाए। ट्रंप साहब का ट्वीट तो देखिए – “भारत को अमेरिकी हितों का ख्याल रखना चाहिए”। अरे भई, हम तो अपने हितों का ख्याल रख रहे हैं न! वहीं रूसी डिफेंस मिनिस्ट्री ने हमारी तारीफ कर डाली – “सच्ची दोस्ती” बता दिया। भारत सरकार चुप्पी साधे बैठी है, पर सूत्रों का कहना है ये डील पहले से फिक्स थी। कैंसिल करना मुश्किल था। समझ गए न माजरा?
एक्सपर्ट्स की राय: किसकी चली पेंच?
अब जरा एक्सपर्ट्स की राय सुनिए। कुछ कह रहे हैं – “बिल्कुल सही किया, हमें रूस के साथ रिश्ते बनाए रखने चाहिए”। दूसरे डर रहे हैं कि अमेरिका नाराज हो जाएगा। और सच कहूं तो दोनों की बात में दम है! रूस के साथ हमारे पुराने रिश्ते हैं, पर अमेरिका से मिलता है टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और इकोनॉमिक सपोर्ट। अब हमें क्या करना चाहिए? दोनों तरफ से लाभ लेते रहना होगा। पर ये तो वैसा ही है जैसे दो शेरों के बीच घास चरना!
आगे क्या? एक बड़ा सवाल!
अब तो देखना ये है कि अमेरिका कितना गुस्सा दिखाता है। कहीं हमारे ट्रेड पर असर न पड़ जाए। पर हमारे पास रूस का सपोर्ट तो है न? UN जैसे फोरम्स में वो हमारा साथ दे सकता है। आने वाले दिनों में हमारी foreign policy और भी चुनौतीपूर्ण होगी। दोनों महाशक्तियों के बीच तालमेल बनाना – ये कोई आसान काम तो है नहीं। पर हम भारतीय हैं न, हमें तो जुगाड़ करने में माहिर होना चाहिए! क्या कहते हैं आप?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com