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पाकिस्तान के पत्रों का क्या होगा? सिंधु जल संधि पर भारत का ऐसा रुख, बदलने की नहीं है कोई गुंजाइश!

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पाकिस्तान का वो पत्र और सिंधु जल संधि: भारत का जवाब साफ – ‘झुकने का सवाल ही नहीं!’

क्या हुआ असल में?

दोस्तों, सिंधु जल संधि वो पुराना मुद्दा है जो 1960 से चला आ रहा है। अभी हाल में पाकिस्तान ने एक औपचारिक पत्र भेजकर फिर से बवाल खड़ा करने की कोशिश की। लेकिन हमारे जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल ने साफ कह दिया – “ये सब दिखावा है, हमारा स्टैंड क्लियर है!” चलिए, आज बात करते हैं कि ये पूरा मामला क्या है और भारत की पोजीशन क्यों इतनी स्ट्रॉन्ग है।

सिंधु जल संधि: बेसिक्स समझें

इतिहास की बात

1960 की बात है जब विश्व बैंक की मध्यस्थता में ये डील हुई थी। छह नदियों – सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलज – का बँटवारा तय हुआ। सीधी भाषा में समझें तो पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का ज्यादा पानी मिला, जबकि हमें पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) पर राइट्स मिले।

ये डील क्यों इतनी अहम है?

देखिए, ये सिर्फ पानी बाँटने का मामला नहीं है। इसका सीधा कनेक्शन है किसानों की फसल से, बिजली के Projects से और करोड़ों लोगों की प्यास बुझाने से। सबसे बड़ी बात – ये संधि भारत-पाक के बीच एकमात्र ऐसा समझौता है जो आज तक चल रहा है, चाहे रिश्ते कितने भी खराब क्यों न हों!

पाकिस्तान का नया ड्रामा

क्या शिकायत है उन्हें?

अभी हाल में पाकिस्तान ने कहा कि हमारे हाइड्रोपावर Projects से उनके हिस्से का पानी कम हो रहा है। मजे की बात ये कि ये वही पुराने Projects हैं जिन पर पहले भी वो ऐतराज जता चुके हैं। Experts कहते हैं कि ये सब उनकी घरेलू राजनीति का हिस्सा है।

भारत का जवाब – स्ट्रेट फॉरवर्ड!

हमारे मंत्री जी ने बिना घुमाए कह दिया – “हम पूरी तरह संधि का पालन कर रहे हैं। ये पत्र सिर्फ फॉर्मैलिटी है।” असल में पाकिस्तान को पता है कि भारत ने कभी कोई गलत कदम नहीं उठाया, लेकिन फिर भी वो बार-बार ये मुद्दा उठाते हैं।

बांग्लादेश के साथ तीस्ता का मसला

ये अलग कहानी है

मंत्री जी ने तीस्ता नदी के बारे में भी बात की। यहाँ स्थिति अलग है क्योंकि बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्ते बेहतर हैं। पर समस्या ये कि वहाँ की राजनीतिक अस्थिरता से समझौता होने में दिक्कत आ रही है।

भारत की कोशिशें

हम लगातार बातचीत के जरिए समाधान ढूँढ रहे हैं। अच्छी बात ये कि बांग्लादेश भी सहयोग की भावना से काम कर रहा है। ये भारत की नीति का उदाहरण है कि हम पड़ोसियों के साथ शांति से मसले सुलझाना चाहते हैं, लेकिन अपने हितों से समझौता किए बिना!

आगे की राह

भारत नहीं झुकेगा

सिंधु जल संधि के मामले में तो बात क्लियर है – न कोई बदलाव, न कोई समझौता! हमारी सरकार ने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखा है। International pressure की बात करें तो भारत अब वो देश नहीं जो दबाव में आकर फैसले ले।

पड़ोसियों के साथ रिश्ते

ये जल मुद्दे साबित करते हैं कि भारत की फॉरेन पॉलिसी दो सिद्धांतों पर चलती है – पहला, अपने हितों की रक्षा और दूसरा, शांतिपूर्ण समाधान। पाकिस्तान के साथ हमारा रुख फर्म है, जबकि बांग्लादेश के साथ हम कोऑपरेटिव अप्रोच अपना रहे हैं।

आखिरी बात

दोस्तों, सिंधु जल संधि सिर्फ कानूनी दस्तावेज नहीं है, ये भारत की सॉवरेन्टी का प्रतीक है। हमारी सरकार ने साबित कर दिया है कि राष्ट्रीय हितों पर कोई समझौता नहीं होगा। आपको ये समझना चाहिए कि ऐसे मुद्दों में देश एकजुट रहता है – यही हमारी ताकत है। तो पाकिस्तान के पत्र का जवाब साफ है – “हम नहीं बदलेंगे, Deal with it!”

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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