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भारत का दलाई लामा के साथ खड़ा होना: क्या चीन के साथ रिश्तों पर पड़ेगा बुरा असर?

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भारत का दलाई लामा वाला फैसला: क्या चीन से रिश्ते बिगड़ेंगे?

अरे भाई, भारत सरकार ने तो हाल ही में एक बड़ा ही दिलेर कदम उठाया है! दलाई लामा के उत्तराधिकार के मसले पर हमारे विदेश मंत्रालय ने चीन को सीधा जवाब दे दिया – “यह तिब्बती समुदाय का अपना मामला है, आपका इसमें कुछ नहीं लेना-देना।” सच कहूं तो यह बयान कुछ ऐसा ही था जैसे शेर की गर्जना। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम हमारे पहले से ही खट्टे चीन के रिश्तों पर और नमक छिड़केगा?

पीछे का सच: दलाई लामा और भारत का नाता

देखिए न, कहानी तो 1959 से शुरू होती है। जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया, तब दलाई लामा भागकर भारत आए थे। और तब से… अरे वाह! चीन तो उन्हें ‘अलगाववादी’ बताता आया है। मजे की बात यह कि अब वो दलाई लामा के अगले उत्तराधिकारी को भी अपने कंट्रोल में लेना चाहता है। सच में? यह मुद्दा तो दशकों से भारत-चीन के बीच एक नासूर बना हुआ है।

अब क्या हुआ? भारत ने क्यों उठाया यह कदम?

असल में बात यह है कि जब दलाई लामा के उत्तराधिकार की बात चली, तो भारत सरकार ने साफ कह दिया – “यह तिब्बतियों का अपना मामला है।” हमारे विदेश मंत्रालय ने जो बयान दिया, वह एकदम स्पष्ट था। लेकिन चीन? उसका तो गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया! उन्होंने इसे भारत का ‘अस्वीकार्य हस्तक्षेप’ बताया। पर सच तो यह है कि हस्तक्षेप तो चीन करना चाहता था, है न?

दुनिया क्या कह रही है?

इस पूरे मामले में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। भारत का कहना है कि यह धार्मिक मामला है, चीन इसे राजनीतिक बता रहा है। और तिब्बती समुदाय? वो तो भारत के इस कदम से खुश होकर नाच रहा है! उनके लिए यह मानो मोरल सपोर्ट जैसा है। पर सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका क्या असर होगा?

आगे क्या? चीन क्या करेगा?

अब देखिए न, राजनीतिक एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं – चीन शायद:
– सीमा पर और सैन्य तैनाती बढ़ाए
– व्यापार में रोड़े अटकाए
– अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ बोले

लेकिन एक तरफ अमेरिका और यूरोप भारत का साथ दे सकते हैं। तो कुल मिलाकर यह मामला सिर्फ भारत-चीन तक सीमित नहीं रहने वाला। असल में तो यह पूरे एशिया की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

अब बस देखना यह है कि भारत अपने इस स्टैंड पर कितना टिक पाता है। या फिर… चीन के दबाव में झुक जाएगा? वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है – यह गेम अभी खत्म नहीं हुआ!

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1. भारत का दलाई लामा के साथ खड़ा होना इतना बवाल क्यों?

देखिए, मामला थोड़ा पेचीदा है। असल में चीन की नज़र में दलाई लामा कोई spiritual leader नहीं, बल्कि एक ‘separatist leader’ हैं। और यहीं से शुरू होती है मुसीबत। भारत और चीन के रिश्ते वैसे भी कभी गर्म तो कभी ठंडे रहते हैं। अब इसमें यह नया मसला… समझ रहे हैं न मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?

2. क्या यह सच में India-China relations को और नीचे गिरा सकता है?

सच कहूँ तो… हाँ, गिरा सकता है। वजह? चीन इस मुद्दे पर बिल्कुल बच्चों जैसा behave करता है – एकदम touchy! अगर भारत ने ज़रा भी ज्यादा open support दिखाया, तो reaction क्या होगा? कोई भी अनुमान लगा सकता है – diplomatic pressure से लेकर economic actions तक। बस, हमें यही नहीं चाहिए, है न?

3. दलाई लामा असल में Tibet के इस पूरे मसले में कहाँ खड़े हैं?

एक तरफ तो वे Tibet के spiritual गुरु हैं – लाखों लोगों के लिए आस्था का प्रतीक। लेकिन दूसरी तरफ… चीन की नज़र में? बस एक political headache। सालों से वे Tibet को autonomy दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, और चीन को यह बिल्कुल पसंद नहीं। स्थिति कुछ वैसी ही है जैसे कोई दीवार से सिर पीट रहा हो।

4. भारत ने अब तक इस मामले में क्या smart चालें चली हैं?

अरे, हमारे leaders को तो ऑस्कर मिलना चाहिए इस acting के लिए! 1959 से asylum तो दिया हुआ है, लेकिन officially? “हमें कुछ नहीं पता” वाला attitude। असल में भारत ने हमेशा इस तरह की चाल चली है कि दलाई लामा को shelter भी मिल जाए और चीन का गुस्सा भी न भड़के। बैलेंसिंग एक्ट, जैसे साइकिल चलाते हुए हाथ से सैंडविच भी खाना!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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