भारत ने अमेरिका को साफ जवाब दे दिया: “ट्रंप के ज़माने का ड्राफ्ट अब नहीं चलेगा, यार!”
अरे भई, मामला कुछ ऐसा है कि भारत ने अमेरिका के साथ हो रही उस “मिनी ट्रेड डील” पर अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है। और सुनिए – सरकार ने बिल्कुल साफ़-साफ़ कह दिया कि ट्रंप जी के टाइम में जो शर्तें तय हुई थीं, उन पर अब कोई समझौता नहीं होगा। देखा जाए तो ये बड़ा मूव है! भारत ने खासतौर पर कृषि, फार्मा और डिजिटल टैक्स जैसे सेक्टर्स को इस डील से बाहर रखने की ज़िद की है। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि ये पैंतरा काम करेगा या नहीं, लेकिन एक बात तय है – ये फैसला भारत-अमेरिका के ट्रेड रिलेशन्स के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
पीछे का सच: टेंशन से टेबल तक का सफर
असल में बात ये है कि पिछले कुछ सालों से भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर जैसा माहौल बना हुआ था। ट्रंप साहब तो सीधे भारत पर “अनफेयर टैरिफ” का इल्ज़ाम लगा कर स्टील, एल्युमिनियम जैसी चीज़ों पर टैक्स बढ़ा दिए थे। हमने भी क्या किया? अमेरिकी सेब और अखरोट पर जवाबी कर लगा दिए! अब बाइडन प्रशासन के साथ नई बातचीत शुरू हुई है, और भारत ने अपने कार्ड्स टेबल पर रख दिए हैं। सरकार की चिंता साफ है – कृषि सेक्टर पर कोई दबाव न आए, वरना हमारे किसान भाइयों को नुकसान हो सकता है। और यार, ये तो हम सब जानते हैं कि किसानों का मुद्दा कितना सेंसिटिव है न?
अगले 24 घंटे: “देखते हैं क्या होता है” वाला मोड
अब सुनिए मजेदार बात – सूत्रों (यानि वो लोग जिन्हें पता होता है) के मुताबिक अगले एक दिन में कुछ न कुछ फैसला हो सकता है। भारत ने तो अपनी बात रख ही दी है कि हम अपने “स्ट्रेटेजिक सेक्टर्स” में कोई समझौता नहीं करेंगे। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका वालों की ख्वाहिश है कि हम मेडिकल डिवाइस और डेयरी प्रोडक्ट्स में और छूट दें। सच कहूँ तो? अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव तो “बैलेंस्ड डील” की बात कर रहे हैं, लेकिन हमारे कॉमर्स मिनिस्ट्री वालों ने जोर देकर कहा है – “हमारी ट्रेड पॉलिसी राष्ट्रीय हित से तय होगी, किसी के दबाव से नहीं!” बस, इतना साफ।
एक्सपर्ट्स की राय: “अगर ठीक से खेला तो…”
अब जो एक्सपर्ट्स हैं न, उनका कहना है कि अगर भारत अपनी शर्तों पर ये डील कर पाया तो ये दूसरे डेवलपिंग देशों के लिए एक उदाहरण बन सकता है। मतलब ये कि हम दिखा देंगे कि अपनी इकोनॉमिक स्वतंत्रता बनाए रखना कितना ज़रूरी है। पर…हमेशा एक पर होता है न? अगर बातचीत फेल हो गई तो अमेरिका नए प्रतिबंध लगा सकता है। तब क्या होगा? शायद हम EU और दूसरे देशों के साथ नए डील्स पर फोकस करें। देखते हैं, चाल क्या चलती है!
आखिरी बात: असली टेस्ट तो अब है
देखिए, ये केस सिर्फ भारत-अमेरिका ट्रेड रिलेशन्स की बात नहीं है। ये तो हमारे व्यापारिक संकल्प की परीक्षा है। अगले कुछ घंटे बेहद अहम हैं। और हमारी सरकार का स्टैंड क्लियर है – “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि”। डील हो या न हो, भारत ने ये मैसेज तो दे ही दिया है कि हम इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर अपनी शर्तों पर खड़े रहना जानते हैं। बस, अब देखना ये है कि ये पैंतरा कितना कारगर साबित होता है। क्या कहते हैं आप?
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भारत-अमेरिका मिनी ट्रेड डील पर वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं!
1. भारत ने अमेरिका को क्या साफ-साफ कह दिया?
देखिए, बात सीधी है – भारत ने अमेरिका को crystal clear जवाब दे दिया है। वो भी ऐसा कि कोई गुंजाइश ही न बचे। ट्रंप साहब की मर्जी से चलने वाला कोई मिनी ट्रेड डील? नहीं भई नहीं। हमारे trade policies हम खुद तय करेंगे, ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे आपके घर का मेनू कोई पड़ोसी तय नहीं कर सकता। सीधी बात – अमेरिकी दबाव? नो थैंक्यू!
2. ये मिनी ट्रेड डील आखिर है क्या बला?
असल में, ये कोई बहुत बड़ा समझौता नहीं होता। समझिए न, जैसे आप बाजार से सिर्फ आलू-प्याज खरीदने का डील कर लें, बाकी सब छोड़ दें। ठीक वैसे ही, दो देश कुछ चुनिंदा products या services पर tax और नियमों को लेकर छोटा-मोटा समझौता कर लेते हैं। पूरे trade agreement का छोटा भाई समझ लीजिए। पर सवाल यह है कि क्या ये छोटा भाई कभी-कभी बड़े भाई से भी ज्यादा शरारती हो जाता है? हम्म… विचारणीय!
3. भारत का अमेरिका के साथ मिनी डील न करने का मतलब क्या?
ईमानदारी से कहूं तो, भारत की चिंता बिल्कुल जायज है। एक तरफ तो हमारे छोटे किसान और उद्योग, जो अभी संभल भी नहीं पाए हैं। दूसरी तरफ अमेरिका जैसी महाशक्ति का दबाव। क्या आप किसी मुक्केबाज को नए सीखने वाले से लड़ने के लिए कहेंगे? नहीं न! साथ ही, भारत चाहता है कि कोई भी डील ऐसी हो जिसमें दोनों को फायदा हो, न कि सिर्फ एक तरफ का लाभ। Fair and square, है न?
4. क्या ये टेंशन दोनों देशों के trade relations को खराब कर देगी?
अब यहां थोड़ा गहराई से सोचना होगा। Experts की राय है कि हां, अभी कुछ दिनों तक तनाव दिखेगा। पर याद रखिए, ये तो वैसा ही है जैसे भाई-भाई में झगड़ा हो जाए। लंबे समय में? दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है यार! वैसे भी, बड़े trade deals पर बातचीत तो चल ही रही है। तो relations पूरी तरह से खत्म होने का सवाल ही नहीं उठता। थोड़ा patience, थोड़ा समझदारी – और सब ठीक हो जाएगा। आखिरकार, business is business!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com