भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: क्या यह सच में विन-विन डील हो पाएगा?
देखिए, भारत और अमेरिका के बीच चल रहा यह व्यापार समझौता अब उस मोड़ पर आ गया है जहां हर पक्ष अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है। ट्रंप साहब तो एकतरफा शर्तें थोपने पर अड़े हुए हैं – और सच कहूं तो, ये शर्तें भारत के लिए निगलने लायक नहीं हैं, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर। वैसे 1 August की डेडलाइन तो पहले ही निकल चुकी है, लेकिन हमारी सरकार ने थोड़ा और समय मांग लिया है। समझदारी की बात है। क्योंकि अगर टैरिफ वाली मार पड़ी तो… खैर, आप समझ ही गए होंगे।
पृष्ठभूमि: जहां से शुरू हुई ये टेंशन
असल में ये तनाव कोई नया नहीं है। पिछले कुछ सालों से अमेरिका हम पर “अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज” का इल्जाम लगाता आ रहा है। उन्होंने हमारे स्टील और एल्युमिनियम पर एक्स्ट्रा टैरिफ लगा दिए। हमने भी क्या कम किया? 28 अमेरिकी चीजों पर जवाबी टैरिफ लगा दिए – बादाम, अखरोट जैसी चीजें भी इसमें शामिल हैं। और तो और, ये ट्रेड डेफिसिट वाला मसला तो बिल्कुल रोचक है। अमेरिका कहता है 2018 में ये 21.3 बिलियन dollar तक पहुंच गया था! उन्हें ये पच नहीं रहा, समझ सकते हैं।
अभी की स्थिति: जिद बनाम जिद
तो अब क्या चल रहा है? ट्रंप प्रशासन तो हमारे बाजारों को पूरी तरह खोलने पर अड़ा है – खासकर कृषि और डेयरी सेक्टर। मतलब साफ है – हमारे किसानों की सब्सिडी कटे और उनके किसानों के उत्पाद यहां आसानी से बिकें। लेकिन हमारी सरकार भी कहां मानने वाली है? छोटे किसानों और घरेलू उद्योगों की बात कर रही है। हमने भी तो मांग रखी है – मेडिकल डिवाइसेस और आईटी सेक्टर पर टैरिफ हटाओ। पर अमेरिका का रुख देखकर लगता है वो मानने वाले नहीं। एक तरफा ट्रैफिक चल रहा है, समझिए!
कौन क्या बोल रहा है?
हमारे व्यापार मंत्रालय ने तो बड़ी डिप्लोमेटिक भाषा में कहा है – “हमें ऐसा समझौता चाहिए जो दोनों तरफ के हितों को बैलेंस करे।” वहीं अमेरिकी वाणिज्य विभाग तो सीधे-सीधे धमका रहा है – “बाजार खोलो, वरना कोई डील नहीं।” CII जैसी संस्थाएं चेतावनी दे रही हैं कि टैरिफ वॉर से दोनों देशों को नुकसान होगा। और तो और, किसान संगठन तो बिल्कुल साफ बोल रहे हैं – “अमेरिकी कृषि उत्पादों को खुली छूट? ये तो छोटे किसानों के लिए जहर होगा!” सच कहूं तो, हर कोई अपनी-अपनी राग अलाप रहा है।
आगे क्या होगा?
अगर जल्दी कोई समझौता नहीं हुआ तो? सीधी सी बात है – ट्रेड वॉर और तेज होगी, जिससे दोनों तरफ के अर्थतंत्र को झटका लगेगा। कुछ एक्सपर्ट्स की राय है कि भारत रक्षा और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में अमेरिका को कुछ रियायतें दे सकता है। एक संभावना ये भी है कि अगर हम कृषि में थोड़ी छूट दें, तो अमेरिका आईटी और फार्मा सेक्टर में टैरिफ कम कर दे। अगले कुछ हफ्तों की वार्ताएं ही तय करेंगी कि ये पूरा मामला किधर जाता है।
अंत में बात सिर्फ इतनी सी है – दोनों देशों को एक संतुलित समझौते की जरूरत है। भारत को अपने घरेलू हितों और अमेरिका के साथ लंबे रिश्तों के बीच संतुलन बनाना होगा। और अमेरिका को भी ये समझना होगा कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के साथ शॉर्ट-टर्म फायदे के बजाय लॉन्ग-टर्म पार्टनरशिप ही असली जीत है। वैसे भी, दोस्ती में तो थोड़ा-बहुत कॉम्प्रोमाइज तो चलता ही है, है न?
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भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: जानिए वो सब जो आपके दिमाग में चल रहा है!
1. भारत-अमेरिका व्यापार समझौता (India-US Trade Deal) आखिर है क्या बला?
देखिए, ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है। बस दो दोस्तों के बीच की एक साधारण सी डील है, बस यहाँ दोस्त हैं भारत और अमेरिका! असल में, यह एक bilateral agreement है जहाँ दोनों देश एक-दूसरे के साथ goods और services का trade आसान बनाते हैं। मतलब क्या? टैरिफ कम होंगे, investment के नए रास्ते खुलेंगे, और दोनों economies एक-दूसरे का हाथ थामेंगी। सीधे शब्दों में कहें तो – “तुम मेरा साथ दो, मैं तुम्हारा साथ दूँगा” वाली बात!
2. अच्छा, तो भारत को इसमें मिलेगा क्या?
अरे भाई, बहुत कुछ! सबसे बड़ी बात – American market में हमारे products के लिए दरवाज़े खुल जाएंगे। सोचिए, जब हमारे exports बढ़ेंगे तो पैसा किसकी जेब में जाएगा? हमारी ही न! और यही नहीं, technology transfer का तो जैसे खजाना ही मिल जाएगा। Foreign investment बढ़ेगी, industries को पंख लग जाएंगे, jobs create होंगे… समझ गए न कितना बड़ा game changer है ये?
3. ठीक है, पर अमेरिका इसमें क्यों पड़ा है? उन्हें क्या मिलेगा?
अच्छा सवाल पूछा! सुनिए, अमेरिका भी कोई मूर्ख थोड़े ही है। उन्हें मिलेगा हमारा विशाल market – 130 करोड़ ग्राहकों का! उनकी companies यहाँ products बेचेंगी, profits कमाएँगी। और हाँ, हमारी skilled labor और सस्ती manufacturing cost तो उनके लिए icing on the cake जैसी है। Cost-effective solutions मिलेंगे, तो उनका भी फायदा। Win-win situation, है न?
4. लेकिन… कहीं कोई नुकसान तो नहीं होगा?
ईमानदारी से कहूँ तो हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हाँ, हमारे छोटे manufacturers को थोड़ी टक्कर लग सकती है American companies से। और अमेरिका में कुछ jobs यहाँ shift होने का डर भी है। पर याद रखिए – कोई भी deal 100% perfect नहीं होती। Overall देखें तो फायदे नुकसान से कहीं ज्यादा हैं। थोड़ा risk तो business का part है, है न?
Source: Livemint – Opinion | Secondary News Source: Pulsivic.com