सेना ने कहा – “नहीं चाहिए राफेल!” 1.12 लाख करोड़ के ‘मेड इन इंडिया’ हथियारों की डिमांड, 36000 करोड़ की हरी झंडी
बड़ी खबर है दोस्तों! भारतीय सेना ने आखिरकार वो फैसला ले ही लिया जिसका इंतज़ार था। विदेशी राफेल जेट्स के बजाय अब ‘हमारा अपना’… यानी स्वदेशी रक्षा सिस्टम्स को तरजीह दी गई है। सरकार के सामने 1.12 लाख करोड़ के देसी हथियारों की लिस्ट रखी गई है, और पहले चरण में 36,000 करोड़ की मंजूरी भी मिल गई। सोचिए, ये सिर्फ पैसे की बात नहीं है… ये तो हमारे रक्षा इकोसिस्टम का पूरा गेम चेंजर है। ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों और आज के डिजिटल युद्ध की जरूरतों को देखते हुए ये फैसला लिया गया है।
बालाकोट से सीख: “हमारा अपना ही बेस्ट है”
याद है 2019 का वो मिशन? जब बालाकोट स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की थी। उस वक्त राफेल जैसे एडवांस्ड जेट्स की कमी खल गई थी। लेकिन अब… देखिए न कैसे समय बदला है! QRSAM (क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल) सिस्टम की कामयाबी ने साबित कर दिया कि हमारे वैज्ञानिक किसी से कम नहीं। ये मिसाइल सिस्टम तो कमाल का है – दुश्मन के विमानों को चुटकियों में ध्वस्त करने की क्षमता! ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ सिर्फ नारे नहीं रहे… अब हकीकत बनते दिख रहे हैं।
36000 करोड़ का पहला कदम: क्या ये पर्याप्त है?
अब बात करें आंकड़ों की… वायुसेना और थल सेना ने मिलकर 1.12 लाख करोड़ की मांग रखी है। सरकार ने शुरुआत में 36,000 करोड़ की हरी झंडी दिखा दी। सवाल ये उठता है – क्या ये रकम काफी होगी? पर एक बात तो तय है – राफेल जैसे विदेशी जेट्स को ना कहकर हमने साफ संदेश दे दिया है। अब टेक्नोलॉजी पर हमारा कंट्रोल होगा, बजट पर दबाव कम होगा… और सबसे बड़ी बात – हमारे इंजीनियर्स को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका मिलेगा।
विशेषज्ञ बोले – “सही दिशा में कदम”, पर सवाल भी उठे
रक्षा एक्सपर्ट्स की राय? ज्यादातर इस फैसले को सराह रहे हैं। एक वरिष्ठ विश्लेषक ने तो मजेदार बात कही – “अब हमारे हथियारों का मेनटेनेंस भी ‘चाय-पानी’ की तरह आसान होगा।” सेना के प्रवक्ता का कहना है कि QRSAM जैसी सिस्टम्स मॉडर्न वॉरफेयर की जरूरतों के हिसाब से परफेक्ट हैं। लेकिन… हमेशा की तरह विपक्ष के कुछ नेताओं ने सवाल उठा दिए – “क्या भारतीय कंपनियां इस बड़े ऑर्डर को टाइम पर डिलीवर कर पाएंगी?” अच्छा सवाल है… पर क्या हमें अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए?
अगले 5 साल: चुनौतियां और संभावनाएं
अब क्या? अगले कदम के तौर पर डिफेंस मिनिस्ट्री जल्द ही QRSAM और अन्य सिस्टम्स के लिए tender प्रक्रिया शुरू करेगी। पूरी कोशिश रहेगी कि भारतीय कंपनियों को ही प्राथमिकता मिले। टाइमलाइन? 5 साल… यानी 2029 तक ये महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पूरा हो जाना चाहिए। अगर सब कुछ ठीक रहा तो… सोचिए! हम न सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी कर पाएंगे, बल्कि दूसरे देशों को भी हथियार एक्सपोर्ट कर सकेंगे। ग्लोबल डिफेंस मार्केट में भारत की धमक बढ़ने वाली है। एक तरह से देखें तो… ये हमारे ‘टेक्नोलॉजिकल स्वराज’ की शुरुआत हो सकती है। क्या आपको नहीं लगता?
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‘सेना ने ठुकराया राफेल!’ – जानिए इस पूरे मामले के पीछे की असली कहानी
1. सेना ने राफेल को क्यों कहा ‘ना’?
सच कहूं तो ये कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है। देखिए न, पिछले कुछ सालों से हमारी सरकार ‘मेड इन इंडिया’ पर जोर दे रही है। और अब सेना ने भी इसी रास्ते पर चलने का फैसला किया है। 1.12 लाख करोड़ के स्वदेशी डिफेंस equipment की मांग की गई थी, जिसमें से 36000 करोड़ तो मंजूर हो भी गए। बाकी का इंतज़ार जारी है!
2. ‘मेड इन इंडिया’ डिफेंस में क्या-क्या है खास?
अरे भई, सिर्फ़ Tejas fighter jets ही नहीं! हमारे पास Arjun tanks हैं, BrahMos missiles हैं – और ये सब हमारे देश में ही बन रहे हैं। DRDO और भारतीय कंपनियां मिलकर कमाल कर रही हैं। सच बताऊं? ये देखकर गर्व होता है।
3. 36000 करोड़ कहाँ-कहाँ खर्च होंगे?
तो बात ये है कि ये पैसा सिर्फ़ manufacturing पर ही नहीं जाएगा। रिसर्च, नई technologies, तीनों सेनाओं के लिए modern equipment – सब कुछ इसमें शामिल है। एक तरफ तो हम पैसे बचा रहे हैं, दूसरी तरफ अपनी ताकत भी बढ़ा रहे हैं। स्मार्ट मूव, है न?
4. क्या ये फैसला सही है? मेरी ईमानदार राय…
ईमानदारी से? बिल्कुल सही फैसला है! ‘आत्मनिर्भर भारत’ सिर्फ़ एक नारा नहीं है – ये हमारी ज़रूरत है। डिफेंस manufacturing मजबूत होगी, नौकरियां बढ़ेंगी, और सबसे बड़ी बात – हम दूसरे देशों पर कम निर्भर रहेंगे। थोड़ा टाइम लगेगा, पर नतीजे बेहतरीन होंगे। मेरा विश्वास करें!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com