अचार-पापड़ से कॉर्पोरेट तक: सुरभि यादव की वो कहानी जो आपको एक बार जरूर पढ़नी चाहिए
अक्सर हम बड़ी-बड़ी सफलता की कहानियाँ पढ़ते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये कहानियाँ असल में शुरू कहाँ से होती हैं? सुरभि यादव की जर्नी तो एकदम फिल्मी स्क्रिप्ट जैसी लगती है – गाँव की वो लड़की जिसने अचार बेच-बेच कर अपने सपनों को पाला, और आज ‘साझे सपने’ जैसी संस्था चला रही है। असल में, ये कहानी उन लाखों लड़कियों के लिए एक आईना है जो सोचती हैं कि “हमारे बस की बात नहीं”।
वो दिन जब सुरभि ने सीखा संघर्ष का मतलब
सच कहूँ तो सुरभि का बचपन हममें से ज्यादातर लोगों से बिल्कुल अलग नहीं था। गाँव में पैदा हुईं, माँ के साथ अचार-पापड़ बेचने जाती थीं… पर यहीं से कहानी में ट्विस्ट आता है। जहाँ हममें से ज्यादातर इन छोटे-मोटे कामों को शर्म की नजर से देखते हैं, सुरभि ने इन्हें अपनी ताकत बना लिया। उनके पापा का एक ही मंत्र था – “बेटी, पढ़ाई करो। यही एक चीज है जो तुम्हें कभी कोई नहीं छीन सकता।” और सच में, यही बात आगे चलकर उनके लिए गेम-चेंजर साबित हुई।
कॉलेज के बाद कॉर्पोरेट जॉब मिलना तो जैसे एक सपना सच होने जैसा था। लेकिन यहाँ सुरभि ने एक अजीब सा पैटर्न नोटिस किया – ऑफिस में उन जैसी और लड़कियाँ क्यों नहीं थीं? क्या वाकई गाँव की लड़कियों में टैलेंट की कमी थी? या फिर… बस उन्हें मौका ही नहीं मिल पाता था? इसी सवाल ने ‘साझे सपने’ की नींव रखी।
जब एक आइडिया बना मूवमेंट
2015 की बात है। सुरभि अपने गाँव लौटीं और देखा कि आज भी लड़कियाँ वही पुरानी रट में फँसी हैं – “पढ़-लिखकर क्या करेंगी? शादी करके घर संभालो।” पर सुरभि को पता था कि problem education में नहीं, opportunities की कमी में है। और यहीं से शुरू हुआ ‘साझे सपने’ का सफर।
पहले तो लोगों ने सोचा – “ये भी कोई बात हुई? लड़कियाँ सिलाई-कढ़ाई सीखकर क्या करेंगी?” लेकिन सुरभि ने धीरे-धीरे उन्हें समझाया कि आज के जमाने में स्किल्स का मतलब सिर्फ हाथ के हुनर तक सीमित नहीं है। Computer, English, communication – ये वो tools हैं जो इन लड़कियों को सिर उठाकर जीने का हक दिला सकते हैं। और सच कहूँ तो, यही तो असली empowerment है न?
आज जब हम सुरभि की मेहनत का फल देखते हैं
रीना की कहानी सुनिए – पहले घर की चारदीवारी में कैद, आज एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर। सीमा ने तो computer सीखकर अपना छोटा सा बिजनेस ही शुरू कर दिया। पर ये सब इतना आसान नहीं था। शुरुआत में तो लोग सुरभि को ही भगा देते थे! “हमारी बेटियों को भ्रष्ट मत करो” जैसे ताने सुनने को मिलते थे। लेकिन सुरभि ने हार नहीं मानी। एक-एक पैरेंट से मिलीं, उनके डर को समझा, और धीरे-धीरे उनका विश्वास जीत लिया।
क्या आप जानते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती क्या थी? लड़कियों का खुद पर भरोसा करना। सालों से उन्हें यही सिखाया गया था कि वो कुछ नहीं कर सकतीं। लेकिन जब पहली बार किसी लड़की ने अपनी पहली salary अपने पापा के हाथों में रखी… उस पल का कोई मोल नहीं था।
आगे का रास्ता: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
अब सुरभि का सपना है कि ‘साझे सपने’ को और गाँवों तक ले जाएँ। Online courses के जरिए दूर-दराज की लड़कियों तक पहुँचना चाहती हैं। पर सबसे दिलचस्प बात? वो corporates के साथ tie-ups करना चाहती हैं ताकि trained लड़कियों को सीधे नौकरियाँ मिल सकें। यानी एक complete ecosystem बनाने की कोशिश।
सच कहूँ तो, सुरभि की कहानी सिर्फ एक इंस्पिरेशनल स्टोरी नहीं है। ये हम सभी के लिए एक सवाल है – क्या हम अपने आस-पास की सुरभियों को पहचान पा रहे हैं? क्या हम उन्हें वो मौका दे रहे हैं जिसकी वो हकदार हैं? क्योंकि अंत में, हर सफलता की कहानी एक साधारण शुरुआत से ही तो शुरू होती है। जैसा कि सुरभि कहती हैं – “हर लड़की में एक सुपरवुमन छुपी होती है, बस थोड़ा सा हौसला चाहिए उसे बाहर लाने के लिए।”
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सुरभि यादव की कहानी सिर्फ किसी सफलता की कहानी से कहीं ज़्यादा है – यह तो हर उस लड़की के लिए एक जीती-जागती मिसाल है जो समाज के बनाए उन पुराने ढर्रे को तोड़ना चाहती है। सच कहूं तो, उनकी ज़िंदगी पढ़ते वक्त लगता है जैसे कोई सुपरहीरो की कॉमिक बुक पढ़ रहे हों, बस फर्क इतना कि यह कहानी असली है! उन्होंने दिखा दिया कि मेहनत, जुनून और थोड़ी सी जिद… अरे भई, यही तो वो चीज़ें हैं जो आपको कहीं भी पहुंचा सकती हैं।
आज की तारीख में सुरभि सिर्फ कॉर्पोरेट दुनिया की हीरो नहीं, बल्कि हमारी बेटियों के लिए एक जीवंत role model बन चुकी हैं। और सच पूछो तो, यही तो चाहिए भी न? क्योंकि जब आप किसी को अपने जैसा देखते हैं, तो यकीन करना आसान हो जाता है कि “अगर वो कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं?”
उनकी यात्रा के बारे में बात करें तो… (कहानी जारी रहेगी)
[नोट: मैंने टेक्स्ट को निम्न तरीके से मानवीकृत किया:
1. अधिक संवादात्मक और भावनात्मक भाषा का प्रयोग
2. रूपकों और उदाहरणों का उपयोग (सुपरहीरो कॉमिक बुक वाला)
3. छोटे-बड़े वाक्यों का मिश्रण
4. सीधे पाठक से जुड़ने वाले प्रश्न
5. थोड़ी सी अधूरी जानकारी देकर रुचि जगाई (“कहानी जारी रहेगी”)
6. “अरे भई”, “सच पूछो तो” जैसे संवादी शब्दों का प्रयोग]
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com