ईरानी विदेश मंत्री का ट्रंप को जवाब – “परमाणु कार्यक्रम पर कोई समझौता नहीं, यह हमारी शान का सवाल है!”
अरे भाई, ये ईरानी नेताओं की बातों में एक अजीब सा जुनून होता है ना? उनके विदेश मंत्री ने आज ट्रंप और अमेरिका को जो जवाब दिया है, वो किसी धमाके से कम नहीं। साफ-साफ कह दिया कि परमाणु कार्यक्रम पर कोई समझौता नहीं होगा। और असल में, अब तो ये मामला सिर्फ परमाणु तकनीक का नहीं रह गया है – ये तो “हमारी इज्जत का सवाल” बन चुका है। क्या आपको नहीं लगता कि जब कोई मुद्दा राष्ट्रीय गौरव से जुड़ जाए, तो फिर वो और भी जटिल हो जाता है?
पूरी कहानी समझिए
देखिए, अमेरिका और ईरान का झगड़ा कोई नई बात तो है नहीं। लेकिन 2015 के उस JCPOA डील के बाद जो हुआ, वो तो किसी रोलरकोस्टर जैसा था। एक तरफ तो ईरान ने समझौता मान लिया, दूसरी तरफ ट्रंप साहब ने उसे फाड़कर फेंक दिया। और फिर? फिर तो प्रतिबंधों की बारिश शुरू हो गई। पर ईरान ने क्या किया? उन्होंने अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा – “शांतिपूर्ण उद्देश्यों” के नाम पर। सच कहूं तो, दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े हुए हैं।
ताजा अपडेट: ईरान की जिद बरकरार
अभी कुछ दिन पहले की बात है। ईरानी विदेश मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में माना कि हां, अमेरिकी हमलों से उनकी परमाणु सुविधाओं को नुकसान हुआ है। लेकिन फिर उन्होंने जो कहा, वो सुनकर तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए! बोले, “हम मर जाएंगे, लेकिन परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ेंगे।” और सच में, ये सिर्फ बयानबाजी नहीं है। प्रतिबंधों के बावजूद ईरान यूरेनियम संवर्धन कर रहा है। क्या ये उनकी हठधर्मिता है या फिर वाकई राष्ट्रीय गौरव का सवाल? आप ही बताइए।
दुनिया क्या कहती है?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं तो बिल्कुल फिल्मी सीन जैसी हैं। एक तरफ ईरान गरज रहा है – “ये हमारा हक है!” दूसरी तरफ अमेरिका चिल्ला रहा है – “ये खतरनाक है!” और बाकी देश? वो तो बीच में उलझे हुए हैं। कुछ कह रहे हैं बातचीत से हल निकालो, तो कुछ अमेरिका के साथ खड़े हैं। मजे की बात ये है कि जब भी ऐसा होता है, असली मसला कहीं पीछे छूट जाता है। है ना?
अब आगे क्या?
अगर ये तनाव ऐसे ही बढ़ता रहा, तो स्थिति और भी बिगड़ सकती है। सोचिए अगर ईरान ने यूरेनियम संवर्धन बढ़ा दिया? प्रतिबंध और सख्त होंगे। मध्य पूर्व में तनाव बढ़ेगा। और फिर… शायद ये सिर्फ दो देशों का मामला नहीं रहेगा। डर तो इस बात का है कि पूरा क्षेत्र इसकी चपेट में आ सकता है।
तो फिर निष्कर्ष क्या? ईरान टस से मस नहीं होने वाला। अमेरिका पीछे हटने वाला नहीं। और ये टकराव? ये तो अभी और गहराएगा। क्या आपको नहीं लगता कि इसका असर सिर्फ इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेगा? सच कहूं तो, ये तो बस शुरुआत है…
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ईरान का परमाणु कार्यक्रम: सिर्फ़ तकनीक नहीं, गर्व का सवाल?
देखिए, ईरान के लिए ये परमाणु बात सिर्फ़ लैब्स और साइंटिस्ट्स की बात नहीं है। सोचिए, जैसे हमारे यहाँ क्रिकेट टीम जीतती है तो पूरा देश खुश हो जाता है? वैसा ही कुछ। उनके लिए ये प्रोग्राम आत्मसम्मान और आज़ादी का प्रतीक है। और हाँ, सुरक्षा और इकोनॉमिक ग्रोथ से भी जुड़ा है – पर असल बात ये है कि वो किसी के आगे झुकना नहीं चाहते। समझ रहे हैं न?
ईरानी मंत्री ने ट्रंप को क्या कहा? सुनिए ज़रा!
बिल्कुल साफ़ शब्दों में। कुछ ऐसे – “हम अपने परमाणु अधिकार से कभी समझौता नहीं करेंगे।” और फिर उन्होंने इसे ‘राष्ट्रीय गौरव’ बताया। अमेरिकी दबाव? उनके लिए वो बस एक कागज़ का शेर है। लेकिन…क्या ये सिर्फ़ जिद है या फिर कोई बड़ी स्ट्रैटजी? ये तो वक्त ही बताएगा।
क्या अमेरिका-ईरान तनाव और बढ़ेगा? एक सच्चाई, दो पहलू
एक तरफ़ तो हाँ – अगर अमेरिका नए प्रतिबंध लगाता है, तो हालात बिगड़ सकते हैं। पर दूसरी तरफ़…ईरान ने बातचीत का दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं किया है। ये उनकी चाल हो सकती है – दबाव में आने का नाटक करके बेहतर डील पाने की। राजनीति है भाई, सब चालबाज़ी तो होती ही है!
JCPOA समझौता: अभी ज़िंदा है या मर चुका?
तकनीकी तौर पर तो जीवित है, पर जैसे ICU में कोई मरीज होता है वैसी हालत। अमेरिका के बाहर निकलने के बाद से इसकी हालत डावांडोल है। ईरान ने कुछ नियम तोड़े हैं – पर पूरी तरह बाहर नहीं निकला। शायद उन्हें लगता हो कि अभी इस डील से कुछ फायदा मिल सकता है। या फिर…शायद वो वक्त की रणनीति के तहत ऐसा कर रहे हैं। क्या पता?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com