ईरान के साथ परमाणु वार्ता: क्या उम्मीद रखें? चाय की चुस्की के साथ समझिए पूरा मामला
अभी इस शुक्रवार को इस्तांबुल में एक ऐसी मीटिंग होने वाली है जिस पर पूरी दुनिया की नज़र टिकी हुई है। जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे बड़े यूरोपीय देश ईरान के साथ बैठकर उसके परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत करेंगे। अब सवाल यह है कि यह मीटिंग सिर्फ एक औपचारिकता है या फिर कुछ ठोस निकलेगा? क्योंकि इसका असर सिर्फ ईरान पर ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक सुरक्षा पर पड़ने वाला है। कुछ एक्सपर्ट्स तो यहाँ तक कह रहे हैं कि यह मध्य पूर्व में शांति लाने का आखिरी मौका हो सकता है। सच कहूँ तो, बात बनती दिख रही है, लेकिन इतनी आसान भी नहीं।
पीछे का सच: जब बात परमाणु की हो तो…
ईरान का यह परमाणु विवाद कोई नया नहीं है – दशकों से चला आ रहा है। पश्चिमी देशों को हमेशा से शक रहा है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है, जबकि ईरान का कहना है कि उसका मकसद सिर्फ बिजली बनाना और medical research करना है। 2015 में तो इसी झगड़े को सुलझाने के लिए JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) नाम का ऐतिहासिक समझौता हुआ था। उस वक्त ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम पर कई पाबंदियाँ मान ली थीं।
लेकिन फिर 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति Donald Trump ने इस डील से हाथ खींच लिया। और फिर क्या? ईरान भी पीछे हट गया। धीरे-धीरे उसने JCPOA की शर्तों को मानना बंद कर दिया और अपनी परमाणु गतिविधियाँ बढ़ा दीं। अब यूरोप वाले चाहते हैं कि ईरान फिर से इस डील में आ जाए। पर सवाल यह है – क्या ईरान मानेगा? क्योंकि अभी तक के संकेत तो बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं।
अभी की स्थिति: क्या-क्या चल रहा है?
इस शुक्रवार की मीटिंग में ईरानी प्रतिनिधियों के साथ-साथ यूरोप के top diplomats भी शामिल होंगे। मजे की बात यह है कि अमेरिका भी इस वार्ता में शामिल हो सकता है – हालाँकि अभी तक कुछ कन्फर्म नहीं हुआ है। और तो और, हाल ही में ईरान ने अपना uranium enrichment का स्तर बढ़ा दिया है, जिससे पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया है। अब देखना यह है कि इस मीटिंग में क्या होता है।
कौन क्या बोला? – सबके अपने-अपने राग
इस मामले में हर देश का अपना अलग स्टैंड है। ईरानी विदेश मंत्रालय ने कहा है, “हम शांति चाहते हैं, लेकिन हमारे हक़ों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।” वहीं यूरोपीय संघ ने कहा है कि “उम्मीद है ईरान गंभीरता से बातचीत करेगा।” और अमेरिकी विदेश मंत्री Antony Blinken तो सीधे चेतावनी दे चुके हैं: “ईरान को अपनी रणनीति बदलनी होगी, वरना और सख्त प्रतिबंध झेलने होंगे।” साफ दिख रहा है कि माहौल कितना गरम है।
आगे क्या? दो रास्ते, दो नतीजे
इस वार्ता के दो ही संभावित नतीजे हो सकते हैं। पहला – अगर सब कुछ ठीक रहा तो JCPOA फिर से लागू हो सकता है और ईरान-पश्चिम के रिश्तों में सुधार आ सकता है। इससे न सिर्फ मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया को फायदा होगा। लेकिन दूसरा परिणाम… अगर बातचीत फेल हो गई तो? तब तो ईरान पर नए economic sanctions लग सकते हैं और पूरा इलाका अशांत हो सकता है।
और एक बात – यह सिर्फ राजनीति की बात नहीं है। अगर ईरान के तेल निर्यात पर लगे प्रतिबंध हटते हैं तो international oil prices में गिरावट आ सकती है। यानी यह मामला आपके पेट्रोल के दाम से भी जुड़ा हुआ है! सच कहूँ तो, यह वार्ता राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही तरह से बेहद अहम है।
इस रोचक और तनाव भरे मामले की हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए हमारे साथ बने रहिए। क्योंकि जब बात परमाणु और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की हो, तो हर छोटी सी खबर भी बड़ा भूचाल ला सकती है। है न?
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Source: DW News | Secondary News Source: Pulsivic.com