** “इजरायल के लिए खतरे की घंटी! हिंदुओं की घटती आबादी और सबसे तेज बढ़ती जनसंख्या पर चौंकाने वाली रिपोर्ट”

इजरायल के लिए खतरे की घंटी? हिंदुओं की आबादी और मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि पर वो रिपोर्ट जिसने सबको हिला दिया!

अब ये Pew Research Center वालों ने तो हाल ही में एक रिपोर्ट निकाली है जो सचमुच चौंकाने वाली है। 2010 से 2020 के बीच का डेटा देखें तो स्थिति कुछ ऐसी है – मुस्लिम आबादी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है, वहीं ईसाइयों की संख्या में पहली बार गिरावट आई है। और हम हिंदू? हमारी जनसंख्या लगभग स्थिर है, जिसमें से ज्यादातर तो भारत में ही रहते हैं। अब सवाल यह है कि इजरायल जैसे देशों के लिए ये आंकड़े क्यों चिंता का विषय बन गए हैं? दरअसल, वहां तो जनसंख्या का हर आंकड़ा सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।

क्या कहती है ये रिपोर्ट? और क्यों है ये इतनी अहम?

Pew Research Center का नाम तो आपने सुना ही होगा – अमेरिका का वो थिंक टैंक जो जनसंख्या और धर्म पर सबसे विश्वसनीय डेटा देता है। उनकी इस ताजा स्टडी में पाया गया कि पिछले दशक में मुस्लिम आबादी 1.7% सालाना की दर से बढ़ी, जो किसी भी बड़े धर्म से ज्यादा है। वहीं ईसाइयों की संख्या में 0.3% की गिरावट आई – हालांकि वे अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह हैं। हम हिंदुओं की बात करें तो हमारी ग्रोथ रेट 0.7% पर स्थिर है, और भारत तो हमेशा की तरह हिंदुओं का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है।

अब इस रिपोर्ट को गहराई से समझें तो मुस्लिम आबादी की इस तेज वृद्धि के पीछे दो मुख्य कारण हैं – पहला तो उनका हाई फर्टिलिटी रेट, और दूसरा उनकी युवा जनसंख्या का बड़ा हिस्सा। ये ट्रेंड खासकर मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका और साउथ एशिया में साफ देखा जा सकता है। और इजरायल? वहां तो ये आंकड़े सीधे राजनीतिक बहस का हिस्सा बन गए हैं, क्योंकि वहां यहूदी और मुस्लिम आबादी का अनुपात हमेशा से ही एक संवेदनशील मुद्दा रहा है।

दुनिया ने क्या रिएक्ट किया? और क्या हैं मुख्य चिंताएं?

इजरायल के नेताओं ने तो इस रिपोर्ट पर तुरंत प्रतिक्रिया दे दी। कुछ तो यहूदी समुदाय को बढ़ावा देने वाली नई पॉलिसीज बनाने की बात कर रहे हैं। वहीं भारतीय विश्लेषकों का कहना है कि हिंदुओं की स्थिर आबादी से घबराने की कोई जरूरत नहीं – हमारी जनसंख्या अभी भी युवा है और इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए पर्याप्त मैनपावर मौजूद है।

मुस्लिम नेताओं और विद्वानों ने इस मामले में संतुलित रुख अपनाया है। उनका कहना है कि जनसंख्या वृद्धि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसे राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल किसी समुदाय के खिलाफ भय फैलाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। बिल्कुल सही बात है, है न?

आगे क्या? कैसे बदल सकती हैं पॉलिसीज?

इस रिपोर्ट के बाद तो कई देशों में जनसंख्या नीतियों पर फिर से विचार होगा ही। इजरायल शायद यहूदी समुदाय को प्रोत्साहित करने वाली specific policies लाए। भारत में भी हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या संतुलन को लेकर नई योजनाएं बन सकती हैं। और तो और, अब तो धार्मिक जनसांख्यिकी पर और भी रिसर्च होने वाली है जो भविष्य की सोशल और पॉलिटिकल पॉलिसीज को शेप देगी।

Pew की ये रिपोर्ट सिर्फ आंकड़े ही नहीं दिखाती, बल्कि कुछ बहुत गंभीर सवाल भी खड़े करती है। जैसे-जैसे दुनिया इन बदलावों को समझने की कोशिश कर रही है, एक बात साफ हो रही है – ये सिर्फ संख्याओं का खेल नहीं है। इसके सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव इतने गहरे हैं कि इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सच कहूं तो, ये रिपोर्ट आने वाले समय में कई बहसों की जड़ बनने वाली है।

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इजरायल के लिए यह रिपोर्ट किसी झटके से कम नहीं है। सोचिए, एक तरफ हिंदुओं की आबादी घट रही है, वहीं दूसरे समुदायों की जनसंख्या रॉकेट की तरह बढ़ रही है। अब सवाल यह है कि यह असंतुलन देश के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे को कैसे प्रभावित करेगा? सच कहूं तो, यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है।

हालांकि, सिर्फ चिंता करने से काम नहीं चलेगा। देखा जाए तो इस स्थिति से निपटने के लिए दो चीजें बेहद जरूरी हैं – पहली, सतर्कता (वो भी बिल्कुल चाय की दुकान वाली नहीं!), और दूसरी, सामूहिक प्रयास। मतलब साफ है – अकेले किसी एक का प्रयास काम नहीं आएगा।

और सबसे दिलचस्प बात? यह मुद्दा सिर्फ इजरायल तक सीमित नहीं है। असल में, पूरी दुनिया को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। क्योंकि जनसांख्यिकीय बदलाव किसी एक देश की सीमा में नहीं रहते। सच ना?

इजरायल और हिंदुओं की जनसंख्या: कुछ सवाल जो दिमाग खाए जाते हैं

क्या सच में इजरायल के लिए खतरे की घंटी बज रही है?

देखिए, अगर आंकड़ों पर यकीन करें तो हां – इजरायल में हिंदुओं की तादाद लगातार घट रही है। और ये कोई छोटी-मोटी गिरावट नहीं, बल्कि एक चिंताजनक ट्रेंड है। वहीं दूसरी तरफ, कुछ और धर्मों के लोगों की संख्या बढ़ रही है। अब आप ही बताइए, जब किसी देश का धार्मिक मेकअप ही बदलने लगे, तो उसके social और political equations पर असर तो पड़ेगा ही न?

हिंदू आबादी घटने के पीछे क्या वजहें हैं?

ईमानदारी से कहूं तो ये कोई एक कारण नहीं, बल्कि कई चीजों का मिला-जुला असर है। पहली बात तो low birth rate – आजकल के हिंदू परिवार छोटे होते जा रहे हैं। फिर migration का फैक्टर भी है – बहुत से लोग बेहतर opportunities की तलाश में दूसरे देशों में जा बसते हैं। और हां, interfaith marriages भी एक बड़ी वजह है। सबसे दिलचस्प? नई पीढ़ी का धर्म से दूर होना। ये ट्रेंड सिर्फ इजरायल में नहीं, पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है।

किस धर्म का ग्राफ सबसे तेजी से ऊपर जा रहा है?

अगर रिपोर्ट्स पर भरोसा करें तो इस्लाम इस रेस में सबसे आगे नज़र आता है। पर सवाल यह है कि क्यों? असल में दो मुख्य वजहें हैं – पहली तो उनका high birth rate, और दूसरी conversions की संख्या। बस इतना ही नहीं, कुछ experts का मानना है कि immigration भी इसमें अहम भूमिका निभा रहा है।

इजरायल का भविष्य: क्या बदलाव आने वाले हैं?

अब ये तो क्रिस्टल बॉल देखने जैसी बात हो गई! मगर अगर current trends को देखें तो… हालात गंभीर लगते हैं। अगर हिंदू आबादी घटती रही और दूसरे धर्म बढ़ते रहे, तो इजरायल का पूरा cultural fabric ही बदल सकता है। राजनीति पर तो इसका असर होगा ही – नई पार्टियां, नए एजेंडे। पर सबसे बड़ा सवाल? क्या ये social harmony को प्रभावित करेगा? शायद। क्योंकि जब धार्मिक संतुलन बदलता है, तो tensions पैदा होना लाज़मी है।

एक बात और – ये सिर्फ इजरायल की कहानी नहीं है। पूरी दुनिया में ऐसे बदलाव हो रहे हैं। फूड फॉर थॉट, है न?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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