IAS की नौकरी छोड़कर 5 KM पैदल स्कूल जाने वाले जगदीप धनखड़: एक ऐसी कहानी जो आपको हिला देगी
अक्सर हम TV पर बड़े-बड़े नेताओं को देखकर सोचते हैं – “ये लोग तो पहले से ही अमीर घरानों से हैं!” लेकिन जगदीप धनखड़ की कहानी सुनकर यह धारणा टूट जाती है। असल में, ये कहानी है एक ऐसे शख्स की जिसने गांव की मिट्टी में पैर जमाकर देश के दूसरे सर्वोच्च पद तक का सफर तय किया। और हां, यह कोई फिल्मी कहानी नहीं – यह असली ज़िंदगी है, जहां संघर्ष है, मेहनत है, और वो जुनून है जो आपको रातोंरात स्टार नहीं बनाता, बल्कि धीरे-धीरे ऊपर ले जाता है।
बचपन: जहां स्कूल जाना भी एक चुनौती थी
सोचिए आज के दौर में, जब हम बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए भी कार चाहिए… और फिर राजस्थान के किठाना गांव की कल्पना कीजिए, जहां एक बच्चा रोज 5 KM पैदल चलकर स्कूल जाता था। गर्मी हो या सर्दी, बारिश हो या धूप – ये कोई एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी नहीं, बल्कि ज़िंदगी की जरूरत थी। ईमानदारी से कहूं तो आज के हम जैसे लोग, जो AC कमरे में बैठकर ‘मोटिवेशनल’ वीडियो देखते हैं, उनके लिए ये सब सुनना भी मुश्किल होगा।
पर यहीं से वो सबक शुरू होता है जो हमें धनखड़ सर के जीवन से मिलता है – संसाधन नहीं, संकल्प मायने रखता है। क्या आज हम में से कितने लोग ऐसे होंगे जो बिना शिकायत किए इतना संघर्ष कर पाएंगे? सोचने वाली बात है…
वो मोड़ जब IAS बनने से ज्यादा जरूरी कुछ और लगा
UPSC पास करना अपने आप में बड़ी बात है, लेकिन IAS की नौकरी ठुकराना? ये तो वही कर सकता है जिसके पास सिर्फ डिग्री नहीं, दृष्टि भी हो। और धनखड़ सर ने यही किया। उन्होंने वकालत को चुना – न कि इसलिए कि ये आसान रास्ता था, बल्कि इसलिए कि यहां वे सीधे लोगों के बीच जाकर काम कर सकते थे।
एक तरफ सरकारी बंगला, गाड़ी और सुविधाएं… दूसरी तरफ कोर्ट की सीढ़ियां चढ़ना, केस लड़ना और लोगों की लड़ाई लड़ना। चुनाव आसान नहीं रहा होगा, है न? लेकिन जैसा कि उन्होंने बाद में साबित किया – यही चुनाव उनकी असली पहचान बना।
वकालत से राजनीति तक: जब संघर्ष रंग लाया
35 साल की उम्र में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बनना कोई मामूली बात नहीं। लेकिन धनखड़ सर के लिए ये सिर्फ एक पद नहीं था – ये मौका था सिस्टम में बदलाव लाने का। उनके काम की खास बात ये थी कि वे सिर्फ कानून की किताबें नहीं, बल्कि आम आदमी की पीड़ा भी समझते थे।
और फिर राजनीति में कदम रखा… यहां भी वही सिद्धांत, वही ईमानदारी। क्या आप जानते हैं? उनका राजनीतिक सफर भी उनके गांव वालों के लिए प्रेरणा बना। जब कोई व्यक्ति ऊपर उठता है तो पूरा समाज उठता है – ये बात उनके जीवन से साबित होती है।
उपराष्ट्रपति बनना: सपने से बड़ी सच्चाई
2022 में जब वे उपराष्ट्रपति बने, तो ये सिर्फ उनकी नहीं, हर उस व्यक्ति की जीत थी जो मानता है कि मेहनत और ईमानदारी से आगे बढ़ा जा सकता है। गांव की वो धूलभरी सड़कें जहां से सफर शुरू हुआ था, आज संसद तक पहुंच चुका है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि हम उनकी कहानी से क्या सीखें? शायद ये कि सफलता रातोंरात नहीं मिलती। शायद ये कि डिग्री से ज्यादा दृष्टि मायने रखती है। या फिर ये कि जब आप सच्चे मन से कुछ करते हैं, तो दुनिया आपको रास्ता दे ही देती है।
अंत में: वो संदेश जो हमें चाहिए
आज के दौर में जब हर कोई शॉर्टकट ढूंढ रहा है, जगदीप धनखड़ की कहानी हमें याद दिलाती है कि असली सफलता वही है जो आपको अंदर से संतुष्टि दे। वो IAS की नौकरी छोड़ सकते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि उनका मकसद सिर्फ पैसा या पद नहीं है।
तो अगली बार जब आपको लगे कि आपके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, याद रखिए – किठाना के उस लड़के के पास तो वो भी नहीं था जो आज हमारे पास है। फिर भी उसने वो कर दिखाया जो आज लाखों के लिए प्रेरणा है। बस, जुनून चाहिए… बस, लगन चाहिए। बाकी सब तो रास्ते में ही मिल जाता है!
IAS की नौकरी ठुकराकर 5 KM पैदल स्कूल जाने वाले जगदीप धनखड़ – FAQs
जगदीप धनखड़ ने IAS की नौकरी क्यों छोड़ दी? सच में ये सवाल हर किसी के मन में आता है!
देखिए, जगदीप धनखड़ का किस्सा थोड़ा अलग है। IAS जैसी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी को ठुकराना कोई आम बात तो नहीं, है न? लेकिन असल में, उनके लिए पैसा नहीं बल्कि समाज सेवा और गरीब बच्चों को पढ़ाना ज़्यादा मायने रखता था। ईमानदारी से कहूं तो, आज के दौर में ऐसा कर पाना… वाह, सच में हिम्मत की बात है!
रोज़ 5 KM पैदल चलना? ये कोई मज़ाक नहीं!
अब आप सोच रहे होंगे – भई यार, इतनी दूर क्यों चलते हैं? तो सुनिए, वो एक छोटे से गाँव के स्कूल में पढ़ाते हैं जहाँ तक पहुँचने का कोई आसान रास्ता ही नहीं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि ये उनके लिए कोई बोझ नहीं, बल्कि एक जुनून बन चुका है। सुबह-सुबह ताजी हवा में चलते हुए बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का सपना… क्या बात है!
जगदीप धनखड़ से सीख? बस एक नहीं, कई सारी!
असल में उनकी कहानी सिर्फ़ एक शिक्षक की नहीं, बल्कि हम सबके लिए एक जीती-जागती सीख है। एक तरफ तो ये सिखाती है कि खुशी पैसों में नहीं, बल्कि दूसरों की मदद करने में होती है। दूसरी तरफ… अरे भाई, मेहनत और लगन से क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता! छोटी-छोटी कोशिशें भी बड़े बदलाव ला सकती हैं, ये उन्होंने साबित कर दिखाया।
और क्या है खास? बताते हैं कुछ दिलचस्प बातें!
सिर्फ़ IAS छोड़ना ही काफी नहीं था शायद! उन्होंने गाँव के बच्चों के लिए free education का भी पूरा इंतज़ाम किया। और सच कहूँ तो, ये कोई छोटी बात नहीं। आजकल तो हर कोई अपने बारे में सोचता है, लेकिन ये शख्स दूसरों के लिए जीता है। Motivate हो जाइए थोड़ा – क्योंकि ऐसे लोग ही तो समाज को बदलने की ताकत रखते हैं। एकदम ज़बरदस्त। सच में।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com