जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: असली वजह जो आपको कोई नहीं बता रहा!
अरे भाई, क्या हाल है? सुना आपने – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा दे दिया! अब ये कोई सामान्य बात तो है नहीं, है ना? सरकार कह रही है “रूटीन प्रक्रिया”, लेकिन दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में तो सनसनी फैली हुई है। आपको पता है, जब कोई बड़ा फैसला होता है तो official reason और real reason में जमीन-आसमान का फर्क होता है। यहाँ भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।
देखिए न, धनखड़ साहब का कार्यकाल शुरू से ही किसी सॉप ओपेरा से कम नहीं रहा। मंत्रियों के साथ उनके ‘ठंडे’ रिश्तों की चर्चा तो हर कोई कर रहा था। कुछ reports तो यहाँ तक कह रही थीं कि वे बैठकों में सीधे-सीधे मंत्रियों को झाड़ देते थे। अब भला, ऐसा व्यवहार कब तक बर्दाश्त किया जाता? धीरे-धीरे सरकार के भीतर गुस्सा पकने लगा।
असल में बात ये है कि PMO और धनखड़ के बीच कई मुद्दों पर मतभेद चल रहे थे। परिस्थिति तब और बिगड़ी जब कुछ मंत्रियों ने शीर्ष नेतृत्व के सामने उनके बर्ताव की शिकायत दर्ज कराई। और फिर आखिरी कील तो वो high-level meeting में ठोक दी गई – जहाँ एक वरिष्ठ मंत्री के साथ उनकी तीखी बहस हुई। उसके बाद तो जैसे फैसला हो चुका था।
अब सवाल ये उठता है कि लोग इस पर क्या कह रहे हैं? सरकारी लोग तो मीठी-मीठी बातें कर रहे हैं – “सहमतिपूर्ण निर्णय”, “नई दिशा में कदम” वगैरह-वगैरह। लेकिन विपक्ष? उनका तो मानो दिवाला निकल गया! एक senior opposition leader तो यहाँ तक बोल गए कि “यह सरकार अलग सुनना ही नहीं चाहती।” राजनीतिक analysts की राय? ये तो क्लासिक case है establishment vs independent voice का।
अब आगे क्या? ये सबसे दिलचस्प सवाल है। क्या धनखड़ साहब फिर से active politics में आएंगे? या फिर कोई constitutional role मिलेगा? और सरकार? वो तो अब अपने मनमाफिक नए उपराष्ट्रपति की तलाश में लग जाएगी। एक बात तो तय है – ये मामला सत्ता और संवैधानिक पदों के बीच के उस धुंधले रिश्ते पर फिर से बहस छेड़ देगा।
सच कहूँ तो, ये सिर्फ एक इस्तीफा नहीं है। ये तो दिल्ली की सत्ता की उस जटिल गुत्थी को समझने का मौका है जो आम तौर पर हमारी नज़रों से ओझल रहती है। और हाँ, ये कहानी अभी पूरी नहीं हुई है। आने वाले दिनों में और मोड़ आने वाले हैं। तब तक के लिए… बस इतना ही!
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अरे भाई, अभी तक सोशल मीडिया पर यही चर्चा है न? तो चलिए, बिना किसी फिल्टर के बात करते हैं।
1. असल में हुआ क्या? इस्तीफे की वजह क्या है?
देखिए, अभी तक तो official बयान में personal reasons बताए गए हैं। लेकिन आप और हम जानते हैं कि राजनीति में कुछ भी ‘पर्सनल’ नहीं होता। सच्चाई शायद कहीं बीच में है – सरकार से मतभेद, कुछ नीतिगत झगड़े, और हाँ, थोड़ा-बहुत दबाव भी। पर ये सब speculation ही तो है, है न?
2. सुनने में आ रहा है कि राफेल डील से है connection?
अच्छा सवाल! कुछ न्यूज़ चैनल तो ऐसा ही दावा कर रहे हैं। लेकिन सच बताऊँ? अभी तक कोई सबूत नहीं मिला। बस अफवाहें उड़ रही हैं। मान लीजिए अगर ऐसा होता भी, तो क्या सच में सामने आएगा? राजनीति है भाई, यहाँ सब कुछ ग्रे में चलता है।
3. अब आगे क्या? कहाँ जाएँगे धनखड़ साहब?
ईमानदारी से कहूँ तो कोई नहीं जानता। कोई कह रहा है वकालत में लौटेंगे, कोई कहता है सोशल वर्क करेंगे। पर सच्चाई? शायद खुद धनखड़ साहब भी अभी तय नहीं कर पाए होंगे। इतना बड़ा फैसला लेने के बाद थोड़ा ब्रेक तो बनता ही है न?
4. मीडिया कवरेज पर सवाल?
अरे यार, यहाँ तो बस ऊपर-ऊपर से खबरें चल रही हैं। असली स्टोरी कहाँ है? कौन सी चीज़ छुपाई जा रही है? मीडिया वाले भी तो जानते हैं कि कुछ मुद्दों पर ज्यादा गहराई में जाना… खैर, आप समझ ही गए होंगे। सच तो यह है कि आजकल टीआरपी के चक्कर में असली जर्नलिज्म कहीं पीछे छूट गया है।
तो ये थी हमारी सीधी-सपाट बात। क्या लगता है आपको? कमेंट में बताइएगा जरूर!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com