जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: असली कहानी क्या है? पूरा ड्रामा समझिए
20 जुलाई 2024 का दिन भारतीय राजनीति के लिए किसी बॉलीवुड सस्पेंस ड्रामा से कम नहीं था। अचानक, बिना किसी बड़े इशारे के, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। अब सवाल यह है – क्या सच में सिर्फ “स्वास्थ्य कारण” थे इसकी वजह? क्योंकि दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में तो इसकी चर्चा गर्म है। विपक्ष तो मानो मछली पानी पाकर उछल पड़ा, वहीं सरकार इसे “रूटीन प्रोसेस” बता रही है। मजे की बात ये कि दोनों पक्षों के बयानों में जमीन-आसमान का फर्क है।
धनखड़ साहब का सफर: किताबी नहीं, असली कहानी
2022 में जब धनखड़ उपराष्ट्रपति बने थे, तब किसने सोचा था कि ये कार्यकाल इतना ड्रामाई होगा? सच कहूं तो उनका पूरा टेन्योर विवादों की छाया में रहा। सबसे बड़ा मुद्दा? सरकार और जजों की टकराहट। न्यायिक नियुक्तियों को लेकर तनाव तो जैसे खुला राज था। पिछले कुछ महीनों से उनके स्वास्थ्य को लेकर अफवाहें भी चल रही थीं, पर साहब ने कभी इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा नहीं। और फिर अचानक ये इस्तीफा! सच बताऊं? मेरे जैसे कई लोगों को लग रहा है कि यहां कुछ और ही चल रहा है।
इस्तीफे के बाद का तूफान: कौन क्या बोला?
धनखड़ ने तो बस इतना कहा – “व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्याएं”। लेकिन राजनीति का मैदान तो गरमा गया। कांग्रेस के जयराम रमेश सीधे-सीधे बोले – “ये स्वास्थ्य वाली बात तो बहाना है, असली मुद्दा न्यायपालिका पर दबाव है!” वहीं भाजपा ने बड़ी शालीनता से उनके योगदान की तारीफ की। पर मीडिया reports कुछ और ही कह रही हैं। कहा जा रहा है कि सरकार और धनखड़ के बीच कुछ मुद्दों पर ठन्डे-ठन्डे मतभेद चल रहे थे। क्या यही आखिरी तिनका था?
विपक्ष तो मानो आग बबूला हो गया। राहुल गांधी ने तो इसे “लोकतंत्र के लिए खतरा” तक बता डाला। वहीं निर्मला सीतारमण जी ने शालीनता दिखाते हुए उनके स्वास्थ्य की कामना की। दिलचस्प बात ये कि कुछ वरिष्ठ judges ने भी (बिना नाम लिए) इस फैसले को “अप्रत्याशित” बताया। कुल मिलाकर, हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है।
अब आगे क्या? 3 बड़े सवाल जो सबके मन में
अब सबकी नजरें इन तीन मुद्दों पर हैं:
1. नए उपराष्ट्रपति की नियुक्ति – क्या सरकार जल्दबाजी दिखाएगी?
2. क्या ये मामला सरकार और कोर्ट के बीच की खाई और बढ़ाएगा?
3. और सबसे बड़ा सवाल – क्या धनखड़ साहब अब राजनीति से ही किनारा कर लेंगे?
political analysts की मानें तो ये इस्तीफा सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र में संस्थाओं के बीच बढ़ते तनाव का संकेत है। सच तो ये है कि आने वाले दिनों में और भी कई पटाखे फूट सकते हैं। देखना ये है कि ये ड्रामा और कितने एक्ट्स में खेला जाएगा।
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जगदीप धनखड़ का इस्तीफा… अरे भाई, ये तो हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ बना हुआ है! राजनीति के गलियारों में अभी भी इसकी चर्चा जोरों पर है। सच कहूं तो, ये सिर्फ एक इस्तीफा भर नहीं है – ये तो सत्ता और नैतिकता के बीच की उस पुरानी जंग की एक नई कड़ी है, जो हमेशा से चली आ रही है।
अब सवाल यह है कि आगे क्या? क्या ये घटना भविष्य की राजनीति को बदल पाएगी? देखिए, मेरा मानना है कि… (थोड़ा रुककर सोचते हुए) जब ऐसे मामले आते हैं तो असल में दो चीजें होती हैं – एक तरफ तो तात्कालिक प्रभाव, और दूसरी तरफ लंबी अवधि वाली राजनीतिक लकीरें।
इसे ऐसे समझिए – जैसे पानी में पत्थर फेंका जाए। तात्कालिक तो छपाक की आवाज़ होती है, लेकिन असली असर वो लहरें होती हैं जो दूर तक जाती हैं। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही है।
और हां, अगर आप सोच रहे हैं कि ये सिर्फ एक व्यक्ति का मामला है तो… ज़रा ठहरिए! राजनीति में तो हर छोटी सी चीज भी बड़े पैटर्न का हिस्सा होती है। बस देखने का नज़रिया चाहिए।
अब आगे की रणनीति… (गहरी सांस लेते हुए) ये तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि दिल्ली की सियासत में ये मामला अभी और सुर्खियां बटोरेगा। क्या पता, शायद अगले कुछ दिनों में ही कोई नया ट्विस्ट आ जाए!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com