** “जगुआर विमान: क्या सच में बन रहा है ‘उड़ता ताबूत’? दुर्घटनाओं का सिलसिला और बड़े सवाल”

जगुआर विमान: क्या सच में बन रहा है ‘उड़ता ताबूत’? दुर्घटनाओं का सिलसिला और बड़े सवाल

एक बार फिर! राजस्थान के चुरू में मंगलवार को भारतीय वायुसेना का जगुआर विमान क्रैश हो गया। अच्छी खबर? पायलट सुरक्षित eject कर गया। बुरी खबर? विमान का तो बुरा हाल… पूरा का पूरा खत्म। और हैरानी की बात ये कि ये इस साल का तीसरा केस है। सच कहूं तो अब सवाल उठना लाज़मी है – क्या ये विमान सच में ‘उड़ता ताबूत’ बन चुका है?

एक पुरानी कहानी, नए अध्याय

देखिए, जगुआर की कहानी नई नहीं है। 1970s की बात है जब हमने ब्रिटेन और फ्रांस से ये विमान खरीदे थे। ग्राउंड अटैक के लिए बने थे, मगर अब? एक तरफ तो इनकी उम्र ढलान पर है, दूसरी तरफ दुर्घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। Upgrade के नाम पर करोड़ों खर्च हुए, पर नतीजा? ज़ीरो। कितने पायलटों की जानें गईं, इसका हिसाब रखना मुश्किल हो गया है।

ताजा घटना और उसके निहितार्थ

इस बार क्या हुआ? शुरुआती रिपोर्ट्स कह रही हैं engine failure या कोई तकनीकी खराबी। वायुसेना ने जांच कमेटी बना दी है – वो तो हर बार बनाती है। पर असली मुद्दा ये है कि हमारे पास मौजूद 100 जगुआर में से ज्यादातर तो retirement की उम्र पार कर चुके हैं। सोचिए, आप 40 साल पुरानी कार चलाएंगे? फिर ये विमान तो कोई खिलौना थोड़े ही हैं!

विशेषज्ञों की नजर में

एक्सपर्ट्स की राय साफ है – “ये विमान अब सेफ नहीं रहे”। पायलट्स का मनोबल? वो तो टूट ही रहा है। राजनीति वालों ने भी मौका नहीं छोड़ा। विपक्ष चिल्ला रहा है – “नए विमान खरीदो!” पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ चिल्लाने से काम चलेगा? असल में, ये पूरा मामला हमारी रक्षा नीति पर सवाल खड़ा करता है।

आगे की राह

तो अब क्या? जांच रिपोर्ट का इंतज़ार करें? या फिर सच को स्वीकार करें कि जगुआर का समय अब खत्म हो चुका है। हमारे पास तो राफेल और TEJAS जैसे विकल्प मौजूद हैं। बस, फैसला लेने की देर है। एक बात तो तय है – जब तक ये ‘उड़ते ताबूत’ आसमान में हैं, तब तक हर पायलट का परिवार दिल थामकर रहेगा।

सच तो ये है कि ये सिर्फ विमानों की बात नहीं। ये हमारी सुरक्षा व्यवस्था, हमारी प्राथमिकताओं और हमारी जिम्मेदारियों का सवाल है। जब चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुंह बाए खड़े हैं, क्या हम इतनी लापरवाही बर्दाश्त कर सकते हैं? सोचने वाली बात है…

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जगुआर विमान को लेकर ये सुरक्षा सवाल अचानक ही क्यों उठने लगे? असल में, मामला काफी गंभीर है – और अगर हमने अभी इसके technical glitches और maintenance issues पर ध्यान नहीं दिया, तो सच कहूं तो ये ‘उड़ता ताबूत’ बनने से कोई नहीं रोक सकता। मजाक नहीं, सच्चाई है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ बातें करने से काम चलेगा?

सरकार और Indian Air Force को अब पारदर्शिता दिखानी ही होगी। वो भी तुरंत। क्यों? क्योंकि यहां सीधे-सीधे हमारे जवानों की जान का सवाल है। आप ही बताइए, क्या हम उन्हें ऐसे विमान में बैठा सकते हैं जिस पर भरोसा ही न हो?

और हां, एक बात और – सुरक्षा पर समझौता करना तो जैसे आत्मघाती होगा, है न? लेकिन देखिए, अक्सर ऐसे मामलों में बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं, पर एक्शन कहीं दिखाई नहीं देता। काश इस बार ऐसा न हो!

क्या आपको नहीं लगता कि ये मुद्दा और ज्यादा गंभीरता से लिया जाना चाहिए? सोचिए जरा…

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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