जयशंकर-अराघची फोन वार्ता और अमेरिका-पाकिस्तान की ‘गपशप’: क्या चल रहा है असल में?
देखिए न, पश्चिम एशिया में हालात तो इन दिनों बिल्कुल सीरियल की तरह चल रहे हैं – एक एपिसोड खत्म होता नहीं कि दूसरा शुरू! और ठीक इसी बीच, हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ईरान के विदेश मंत्री अराघची के साथ लंबी फोन वार्ता की। अब आप सोच रहे होंगे – ये बातचीत इतनी खास क्यों? असल में, यह वार्ता ऐसे वक्त हुई है जब ईरान और इजरायल के बीच तनाव आसमान छू रहा है। और हां, इसी बीच अमेरिका और पाकिस्तान का ये नया ‘दोस्ताना’ रिश्ता भी हमारे लिए सिरदर्द बनता दिख रहा है। चलिए, आज इसी पूरे मसले को थोड़ा गहराई से समझते हैं।
पृष्ठभूमि: जब पश्चिम एशिया बना ‘हॉट स्पॉट’
अरे भई, पिछले कुछ हफ्तों से पश्चिम एशिया का हाल वैसा ही है जैसे गर्मियों में दिल्ली का बिजली बोर्ड – हर वक्त धड़ाके का डर! ईरान ने इजरायल पर हमला किया, इजरायल ने जवाबी कार्रवाई की… और ये सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब भारत ने तो इस मामले में बीच का रास्ता अपनाया है, लेकिन यहां दिक्कत ये है कि हमारे ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह और तेल जैसे बड़े डील चल रहे हैं। और सच कहूं तो, अमेरिका का पाकिस्तान के साथ ये नया ‘प्यार’ हमें अच्छा नहीं लग रहा। कल ही तो अमेरिकी अधिकारियों ने पाकिस्तान के साथ आतंकवाद और अफगानिस्तान पर चर्चा की – जो हमारे लिए चिंता की बात तो है ही।
जयशंकर-अराघची बातचीत: सिर्फ औपचारिकता या कुछ और?
तो अब सवाल यह है कि आखिर हमारे विदेश मंत्री और ईरानी समकक्ष ने इतनी देर तक क्या बातें कीं? देखिए, आधिकारिक बयानों के मुताबिक तो दोनों ने पश्चिम एशिया में शांति की बात की। भारत ने कहा कि लड़ाई-झगड़े से कुछ हासिल नहीं होने वाला, बातचीत से ही समाधान निकालो। लेकिन असल में ये वार्ता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत और ईरान के बीच आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की गुंजाइश है। वहीं दूसरी तरफ, अमेरिका ने पाकिस्तान को रक्षा सहयोग का जो लॉलीपॉप दिखाया है, उससे हमें ये डर सता रहा है कि कहीं ये हथियार हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल न हो जाएं। थोड़ा सोचने वाली बात है, है न?
दुनिया क्या कह रही? राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
अब जरा देखिए मजा – हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है! भारत का विदेश मंत्रालय कहता है “हम शांति के पक्षधर हैं”, ईरान बोलता है “हम भारत के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं”। अमेरिका तो पाकिस्तान के साथ अपनी बातचीत को “क्षेत्रीय सुरक्षा” बता रहा है – जैसे कि हमें पता नहीं कि असल में क्या चल रहा है! और पाकिस्तान? वो तो अमेरिका के साथ गले मिलने को तैयार बैठा है। सच कहूं तो, ये सब देखकर लगता है जैसे कोई बड़ा खेल चल रहा है।
आगे क्या? भविष्य की संभावनाएं
तो अब क्या होगा? मेरी नजर में तो भारत और ईरान के बीच और भी वार्ताएं होंगी – खासकर चाबहार और तेल जैसे मुद्दों पर। अगर पश्चिम एशिया में तनाव कम हुआ तो ये रिश्ता और मजबूत हो सकता है। लेकिन अमेरिका-पाकिस्तान का ये नया जमावड़ा हमारे लिए चिंता का विषय है। सच तो ये है कि भारत को अब बहुत सावधानी से चलना होगा – एक तरफ हमारे सुरक्षा हित हैं, दूसरी तरफ आर्थिक फायदे। बैलेंस बनाना आसान नहीं होगा, ये तो मैं आपको अभी से बता दूं!
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तो देखिए, ये जयशंकर और अराघची का फोन वार्ता, और फिर अमेरिका-पाकिस्तान की बातचीत… इन सबने regional dynamics को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं। असल में, ये सिर्फ दो देशों के बीच की बात नहीं है। अगर गहराई से देखें तो ये भारत-ईरान और अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों का एक आईना है। लेकिन सवाल यह है कि आने वाले दिनों में इनका geopolitical असर क्या होगा? क्योंकि अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है।
और हां, ये diplomatic संवाद कहाँ जाकर रुकेंगे, ये तो वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है – इन सबके बीच, हमें बहुत कुछ देखने को मिलेगा। बिल्कुल रोमांचक, है न?
(Note: Preserved original HTML `
` tags as instructed, maintained English words like “regional dynamics” and “geopolitical” in Latin script, and added conversational elements like rhetorical questions and informal phrasing.)
जयशंकर-अराफची की फोन बातचीत और अमेरिका-पाक की गपशप: क्या है असली मामला?
1. जयशंकर और ईरानी FM की बातचीत में क्या खास था?
देखिए, जब दो विदेश मंत्री आपस में बात करते हैं तो सिर्फ ‘हैलो-हाय’ तो नहीं होता न? असल में इस फोन कॉल में तीन बड़े मुद्दे उभरे – पहला, हमारे और ईरान के रिश्ते (जो थोड़े उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं), दूसरा अफगानिस्तान का हाल (जिसे लेकर पूरी दुनिया परेशान है), और तीसरा… वो जो अक्सर होता है – आर्थिक सहयोग के नाम पर मीठी-मीठी बातें। मजे की बात? connectivity projects को लेकर दोनों ने जोश दिखाया। पर सच कहूं तो, अभी तो बस बातें ही बातें हैं।
2. अमेरिका-पाक की गप्पों से भारत को क्या फर्क पड़ेगा?
अरे भई, अमेरिका जब पाकिस्तान से बात करता है तो हमारे कान खड़े हो जाते हैं, है न? इस बार भी वही पुराने राग – अफगानिस्तान, आतंकवाद… पर सवाल यह है कि क्या यह पाक को कश्मीर मुद्दे पर कोई बढ़त देगा? हमारे विदेश मंत्रालय वाले तो पूरी नजर रखे हुए हैं। हालांकि, अमेरिका ने फिर से भारत के साथ अपनी ‘दोस्ती’ का ढोल पीटा है। पर याद रखिए, अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दोस्ती से ज्यादा, ‘फ्रेंडशिप’ मायने रखती है!
3. क्या ये सारी बातचीत हमारे और पाक के रिश्तों पर असर डालेगी?
सीधा जवाब? अभी तो नहीं लग रहा। लेकिन… हमेशा एक बड़ा लेकिन होता है न? अगर पाकिस्तान को अमेरिका की तरफ से कोई पटाखा मिला, तो वो कश्मीर को लेकर अपनी रागिनी फिर से छेड़ सकता है। पर हम? हम तो वही पुराना राग अलापते रहेंगे – “कश्मीर हमारा internal matter है”। सच कहूं तो, ये तो वही पुरानी कहानी है – नई बोतल में पुरानी शराब!
4. इन सभी राजनयिक चर्चाओं का region पर क्या असर होगा?
अब यही तो मजेदार बात देखने को मिलेगी! South Asia से लेकर Middle… [यहां लेखक ने चाय की चुस्की ली और आगे बढ़ा] देखिए, जब बड़े देश आपस में गुपचुप बातें करते हैं, तो पूरा माहौल बदल जाता है। कभी तनाव, कभी राहत… जैसे सास-बहू के रिश्ते जैसा – कभी मीठा, कभी खट्टा! फिलहाल तो स्थिति यह है कि हर कोई दूसरे पर नजर रखे हुए है। और हम? हम तो बस popcorn लेकर बैठे हैं – अब देखते हैं आगे क्या होता है!
एक बात और – ये सारी बातें जितनी गंभीर लगती हैं, उतनी हैं नहीं। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में आज जो सच है, वो कल झूठ हो सकता है। है न?
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com