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“जयशंकर का ऐतिहासिक बयान: आपातकाल का DNA टेस्ट और किस्सा कुर्सी का!”

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जयशंकर का बयान: आपातकाल का DNA टेस्ट और कुर्सी की भूख का सच!

अरे भाई, क्या बात है! विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तो हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जिसने दिल्ली की राजनीति को हिलाकर रख दिया। सोचिए, उन्होंने 1975 के आपातकाल को “DNA टेस्ट” कहकर पेश किया! और सच कहूँ तो ये बात किसी चुटकुले से कम नहीं है – उनका कहना है कि ये पूरा मामला असल में था… एक “कुर्सी की भूख” का। हंसिए मत, ये गंभीर बात है। और जाहिर है, ये टिप्पणी इंदिरा गांधी पर सीधा निशाना साधती है। राजनीति गरमा गई है, है न?

वो काला दिन: जब लोकतंत्र सांस लेने को तरस गया

25 जून 1975। एक तारीख जिसे भारत कभी भूल नहीं पाएगा। इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया – और भईया, क्या हालात बने! अगले 21 महीने तक देश ने जो देखा, वो किसी डरावनी फिल्म से कम नहीं था। अभिव्यक्ति की आजादी? गायब। प्रेस की स्वतंत्रता? खत्म। विपक्षी नेता? जेल में। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जो आंदोलन खड़ा हुआ, उसने 1977 में कांग्रेस को इतिहास की सबसे बड़ी हार दिला दी। सच कहूँ तो, ये वाकई लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय था।

“DNA टेस्ट” वाली बात: जयशंकर ने क्या कहा?

अब जयशंकर जी की बात सुनिए – उन्होंने कहा, “अगर आपातकाल का DNA टेस्ट करें, तो पता चलेगा… ये सिर्फ एक व्यक्ति की सत्ता की प्यास थी!” सीधा-सीधा इशारा इंदिरा जी की तरफ। और सच्चाई ये है कि आज भी कुछ पार्टियों के लिए लोकतंत्र से ज्यादा कुर्सी मायने रखती है। है न मजेदार बात? पर ये बयान सिर्फ इतिहास की बात नहीं है – ये तो एक नई बहस को जन्म देने वाला है। भाजपा और कांग्रेस के बीच झड़प तो तय है!

राजनीति गरमाई: किसने क्या कहा?

भाजपा तो जयशंकर के साथ खड़ी है – उनका कहना है कि आपातकाल “शर्मनाक” था। वहीं कांग्रेस नाराज है – उनका आरोप है कि भाजपा इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश कर रही है। और एक दिलचस्प बात… कांग्रेस का कहना है कि ये सब वर्तमान मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल है। पर राजनीतिक एक्सपर्ट्स क्या सोचते हैं? उनका मानना है कि ये 2024 के चुनावों से पहले narrative सेट करने की कोशिश हो सकती है। चालाकी, है न?

आगे क्या? 2024 में फिर गरमाएगा मुद्दा?

देखिए, इस बयान के बाद संसद में बवाल तो होगा ही। और 2024 में जब आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ आएगी, तो ये मुद्दा और गरमा सकता है। असल सवाल ये है कि क्या आज भी हमारी राजनीति में सत्ता की भूख और लोकतंत्र के बीच यही संघर्ष चल रहा है? जयशंकर ने जो बहस छेड़ी है, वो सिर्फ इतिहास की नहीं – आज के सिस्टम पर भी सवाल उठाती है। क्या आपको नहीं लगता?

जयशंकर का यह बयान सुनकर मन में एक झटका सा लगता है – क्या हम वाकई इतिहास से सीख लेते हैं या बस उसे दोहराते रहते हैं? ये शब्द सीधे 1975 के उस काले दौर को याद दिला देते हैं जब सत्ता की भूख ने लोकतंत्र को घुटनों पर ला दिया था। और सच कहूं तो, आज भी सियासत के DNA में यही लालच दिखता है।

कुर्सी के पीछे भागते नेताओं को देखकर अक्सर सोचता हूं – क्या यही था हमारे संविधान निर्माताओं का सपना? लेकिन इसका एक पहलू और भी है। जयशंकर की यह बात आज भी उतनी ही ज्वलंत है, जैसे कोई ताजा घटना हो। शायद इसलिए कि इंसान की सत्ता-लिप्सा कभी नहीं बदलती।

अब सवाल यह है कि क्या हमने वाकई कोई सबक सीखा है? मुझे तो लगता है हम बस नए तरीके से वही पुरानी गलतियाँ दोहरा रहे हैं। जनता की आवाज? वो तो अक्सर सियासी शोर में दब जाती है। क्या आपको नहीं लगता?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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