“जिन्ना हाउस को मिला हेरिटेज दर्जा, पर ‘सावरकर सदन’ क्यों है उपेक्षित? जानें पूरा विवाद”

जिन्ना हाउस को हेरिटेज टैग मिला, पर सावरकर सदन को क्यों भूल गए? पढ़िए पूरा मामला

अरे भई, महाराष्ट्र सरकार का ये नया फैसला तो ऐसा बम है जिसने सियासत की दुनिया में हड़कंप मचा दिया! सोचिए – मुंबई का जिन्ना हाउस तो Heritage Structure बन गया, लेकिन वीर सावरकर का पुश्तैनी घर “सावरकर सदन” अभी तक लिस्ट में जगह नहीं बना पाया। सच कहूं तो, ये सिर्फ इमारतों का सवाल नहीं, बल्कि हमारे इतिहास को देखने का नज़रिया भी है। है ना ग़लत बात?

क्या है पूरी कहानी? दो घर, दो मायने

देखिए ना, जिन्ना हाउस तो वो जगह है जहां पाकिस्तान के बापू मोहम्मद अली जिन्ना रहा करते थे। सरकार कह रही है कि इसे बचाना इतिहास को निष्पक्ष तरीके से देखना है। मगर…यहां एक ‘पर’ ज़रूर आता है। नासिक में मौजूद सावरकर सदन, जहां से हमारे स्वतंत्रता संग्राम का एक बड़ा नायक जुड़ा है, उसे क्यों भूल जाएं? थोड़ा तो अजीब लगता है ना?

राजनीति गरमाई: किसने क्या कहा?

भाजपा तो मानो आग बबूला हो गई! उनका कहना है – “अरे, विभाजन का प्रतीक तो सम्मान पा रहा है, लेकिन हमारे क्रांतिवीर को अनदेखा किया जा रहा।” वहीं शिवसेना (UBT) ने थोड़ा संभलकर जवाब दिया – “भई, दोनों को ही तवज्जो मिलनी चाहिए।” और तो और, सावरकर परिवार और कुछ संगठन भी अब मैदान में आ गए हैं। सच्चाई ये है कि मामला गरमाने वाला है।

आगे क्या? सरकार का अगला चाल

अब सबकी नज़र सरकार पर टिकी है। क्या वो इस विवाद को शांत करने के लिए सावरकर सदन को भी हेरिटेज घोषित करेगी? या फिर ये मुद्दा चुनावी रैलियों का हिस्सा बनेगा? एक बात तो तय है – अभी तक transparent policy नहीं है ऐतिहासिक धरोहों को चुनने की। शायद अब वक्त आ गया है इस पर विचार करने का।

असल में, ये बहस सिर्फ पत्थरों के बारे में नहीं। ये तो उन विचारों के बारे में है जिन्हें हम संजोकर रखना चाहते हैं। जिन्ना हो या सावरकर – दोनों इतिहास का हिस्सा हैं। पर सवाल ये है कि हम उन्हें कैसे याद रखना चाहते हैं? क्या आपको नहीं लगता कि ये बहस सिर्फ शुरुआत है?

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“जिन्ना हाउस vs सावरकर सदन विवाद – कुछ सवाल जो दिमाग खुजलाते हैं”

1. जिन्ना हाउस को हेरिटेज दर्जा मिल गया, पर सावरकर सदन को क्यों नहीं? क्या ये सच में सिर्फ ऐतिहासिक कारण हैं?

देखिए, जिन्ना हाउस को हेरिटेज टैग मिलने की बात तो समझ आती है – आखिर ये बंटवारे का वो दर्दनाक chapter है जिससे हमारा देश आज भी जूझ रहा है। ASI ने इसे राष्ट्रीय महत्व का माना, ठीक है। लेकिन सावरकर सदन? अरे भाई, वो तो हमारे स्वतंत्रता संग्राम का एक जीता-जागता प्रमाण है! पर सच ये है कि अभी तक कोई ऑफिशियल एप्लीकेशन ही नहीं हुई। थोड़ा अजीब लगता है, है न?

2. सावरकर सदन… ये है क्या चीज? और इतना बवाल क्यों?

अच्छा सुनो, नासिक में ये घर… जहां वीर सावरकर रहते थे। सिर्फ चार दीवारी नहीं, बल्कि हिंदुत्व विचारधारा की एक जीवित मिसाल। कई लोगों के लिए तो ये मंदिर से कम नहीं! पर सरकारी फाइलों में? हेरिटेज का दर्जा अभी तक नहीं। क्यों? अच्छा सवाल है। शायद कागजी कार्रवाई की कमी, या फिर… छोड़ो, राजनीति में पड़ेंगे तो बात बनने से रहेगी।

3. ये सारा झगड़ा क्या सच में इतिहास को लेकर है? या फिर… आप समझ रहे हैं न मैं क्या कहना चाह रहा हूँ?

ईमानदारी से कहूं तो दोनों ही बातें हैं। एक तरफ जिन्ना हाउस – बंटवारे का वो जख्म जो आज भी ताजा है। दूसरी तरफ सावरकर सदन – विचारधारा और संस्कृति का गढ़। Experts कहेंगे criteria अलग हैं, पर आम आदमी सोचेगा… क्या सच में? मतलब, जब दिल्ली का कुतुब मीनार हेरिटेज है तो फिर ये क्यों नहीं? थोड़ा confusing है न?

4. क्या कभी सावरकर सदन को भी वही सम्मान मिल पाएगा?

हां, तकनीकी रूप से तो मुमकिन है। अगर ASI के सारे नियम पूरे हुए तो… पर सच कहूं? बात सिर्फ guidelines की नहीं। देखा जाए तो ये political will पर भी निर्भर करता है। कोई संस्था आगे आए, proper proposal बने, तभी कुछ होगा। वरना… आप जानते हैं न हमारे यहां चीजें कैसे चलती हैं। एकदम सच बोला न मैंने?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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