कपिल सिब्बल ने SC में जस्टिस वर्मा के लिए तगड़ा केस बनाया, पर क्या यह काफी होगा?
सुप्रीम कोर्ट का ये केस सचमुच दिलचस्प होता जा रहा है! जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला जब कोर्ट में पहुंचा, तो कानूनी दुनिया के लोगों की आंखें फटी की फटी रह गईं। और अब तो कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा की तरफ से ऐसी दलीलें रखीं कि सुनने वालों के होश उड़ गए। असल में बात ये है कि एक internal जांच कमेटी ने जस्टिस वर्मा पर कदाचार का आरोप लगाया था – वो भी एक नकदी बरामदगी केस से जुड़ा हुआ। लेकिन सिब्बल साहब ने इस रिपोर्ट को ही चुनौती दे डाली। और SC भी इसे गंभीरता से सुन रहा है। क्यों? क्योंकि ये सिर्फ एक judge का मामला नहीं, पूरे सिस्टम पर सवाल है।
पूरा किस्सा: जस्टिस वर्मा क्यों हैं सुर्खियों में?
देखिए, बात शुरू होती है एक cash recovery केस से। जस्टिस वर्मा पर आरोप लगा कि उन्होंने कुछ गलत किया। internal committee ने अपनी रिपोर्ट में उनके खिलाफ action की सिफारिश भी कर दी। पर यहां मजा शुरू हुआ – जस्टिस वर्मा ने कहा कि ये रिपोर्ट ही biased है! उनका कहना है कि पूरी प्रक्रिया में गड़बड़झाला हुआ है। और अब तो उन्होंने SC में ही इसकी समीक्षा की मांग कर दी है। सच कहूं तो, ये केस पहले से ही पेचीदा था, अब तो और भी उलझ गया है।
SC में हुई वो जबरदस्त बहस – क्या कहा सिब्बल ने?
अदालत में हुई सुनवाई तो किसी thriller movie से कम नहीं थी! कपिल सिब्बल ने जस्टिस वर्मा की तरफ से ऐसे तर्क दिए कि सुनकर लगा जैसे पूरी जांच प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो गए। उनका कहना था – ये रिपोर्ट partial है, facts को twist किया गया है। वहीं दूसरी तरफ, government के वकील ने कहा कि सब कुछ transparent तरीके से हुआ है। कोर्ट ने बीच का रास्ता निकालते हुए पूरी जांच प्रक्रिया और evidence को फिर से check करने पर जोर दिया। एकदम धमाकेदार मामला बनता जा रहा है!
लोग क्या कह रहे हैं? Legal experts से लेकर social media तक
इस केस ने तो पूरे judicial system की internal जांच प्रणाली पर बहस छेड़ दी है। कुछ legal experts कह रहे हैं कि ये मामला judges की accountability की बात करता है। वहीं social media पर तो माजरा और भी interesting है – कुछ लोग जस्टिस वर्मा के साथ हैं, तो कुछ कह रहे हैं कि judiciary को अपने घर का कचरा खुद साफ करना चाहिए। सच तो ये है कि ये केस अब सिर्फ कोर्ट तक ही सीमित नहीं रहा, पूरे देश की चर्चा का विषय बन चुका है।
अब आगे क्या? इस केस के क्या हो सकते हैं परिणाम?
अब सबकी नजरें SC की अगली hearing पर हैं। अगर जस्टिस वर्मा की petition accept हो जाती है, तो ये judicial system में सुधार की मांग को और ताकत देगा। पर दूसरी तरफ, अगर committee की रिपोर्ट को मान्यता मिल जाती है, तो judiciary की internal कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाएगा। एक बात तो तय है – ये केस transparency की बहस को लंबे समय तक जिंदा रखेगा। और हां, ये सिर्फ एक judge के career का मामला नहीं रहा, बल्कि पूरे judicial system की credibility पर सवाल बन चुका है।
तो क्या सचमुच हमारी judiciary में सुधार की जरूरत है? या फिर ये सब सिर्फ एक बड़ा political game है? वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो #JusticeVermaCase ट्रेंड कर रहा है और पूरा देश इसकी हर update को follow कर रहा है।
कपिल सिब्बल और जस्टिस वर्मा का SC मामला – जानिए पूरी कहानी
कपिल सिब्बल ने SC में जस्टिस वर्मा के लिए क्या दलील दी?
देखिए, कपिल सिब्बल ने Supreme Court में जो दलील रखी, वो किसी रॉकेट साइंस जितनी जटिल नहीं थी, लेकिन असरदार ज़रूर थी। उन्होंने judicial independence की बात की – वो भी ऐसे, जैसे कोई बागी बच्चा स्कूल के नियमों पर सवाल उठा रहा हो। Constitution के कुछ ऐसे पहलुओं को छुआ जिन पर आमतौर पर कम ही बात होती है। सच कहूं तो, उनकी दलील सुनकर लगा कि ये सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पूरी न्याय प्रणाली की अखंडता का सवाल है।
यह पूरा मामला किस बारे में है?
असल में बात ये है कि जस्टिस वर्मा के किसी फैसले को लेकर हंगामा हुआ। और जब बात Supreme Court तक पहुंची, तो कपिल सिब्बल ने बाकायदा उनकी पैरवी की। Legal circles में तो ये केस चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा का विषय बना हुआ है। एक तरफ तो ये सिर्फ एक जज का मामला है, लेकिन दूसरी तरफ… ये पूरे न्याय तंत्र की आज़ादी का प्रश्न बन गया है।
क्या इस case का भारतीय न्याय प्रणाली पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
सीधी बात? बिल्कुल पड़ेगा। ऐसे मामले तो वक्त के साथ कानून की किताबों में दस्तावेज़ बन जाते हैं। Supreme Court का फैसला आने वाले सालों में न जाने कितने केसेस की दिशा तय करेगा। थोड़ा डरावना है न? पर सच यही है कि judicial independence और constitutional values की ये लड़ाई सिर्फ एक केस से कहीं बड़ी है।
कपिल सिब्बल ने इस मामले में क्यों हस्तक्षेप किया?
अब ये सवाल तो दिलचस्प है! कपिल सिब्बल… जिन्हें constitution की ABCD पीढ़ी के बच्चों से भी बेहतर आती है। उनके लिए ये सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि principle की बात थी। शायद उन्हें लगा कि judicial system की credibility पर सवाल उठाना, वो भी बिना मज़बूत आधार के… ये तो बिल्कुल वैसा ही है जैसे बिना नींव के मकान बनाना। और सच कहूं तो, उनकी दलीलें सुनकर लगता है उन्होंने सही किया!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com