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“कारगिल युद्ध का वो पाकिस्तानी अफसर, जिसके शव को लेने से खुद PAK ने किया इनकार – फिर कैसे मिला सर्वोच्च सम्मान?”

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कारगिल युद्ध का वो पाकिस्तानी अफसर: जिसकी बहादुरी ने दुश्मन को भी झुकने पर मजबूर कर दिया

याद है वो 1999 का वक्त? जब कारगिल की पहाड़ियों पर गोलियों की आवाज़ से सन्नाटा फट रहा था। उसी जंग की एक कहानी है जो दिलचस्प तो है ही, लेकिन साथ ही कुछ ऐसी है जिस पर गर्व करने का हक दोनों तरफ के लोगों को है। पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने हाल ही में उस शख्स को याद किया जिसे उनकी खुद की फौज ने पहले पहचानने से ही इनकार कर दिया था। कर्नल शेर खान – नाम ही काफी है ना? टाइगर हिल पर जिस तरह से उन्होंने भारतीय सैनिकों का सामना किया, वो किस्सा आज भी फौजियों के बीच सुनाई जाता है। और हैरानी की बात ये कि उनकी बहादुरी को सबसे पहले सलाम किया एक भारतीय अधिकारी ने!

वो मोर्चा जिसने इतिहास के पन्ने पलट दिए

कारगिल… बस नाम ही काफी है दिल की धड़कन बढ़ाने के लिए। 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने ऊंचाई वाले इलाकों पर कब्जा कर लिया था। अब इसमें एक शख्स थे कर्नल शेर खान। 27 नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के कमांडर। टाइगर हिल पर उनकी जंग देखकर भारतीय सैनिक भी दंग रह गए। सच कहूं तो, ऐसी बहादुरी तो किसी हॉलीवुड फिल्म में ही दिखाई देती है। लेकिन ये कोई कहानी नहीं, सच्ची घटना थी।

जब अपनों ने ही नकार दिया

यहां से कहानी और दिलचस्प हो जाती है। युद्ध खत्म होने के बाद जब भारतीय सेना ने शेर खान के शव को लेने के लिए पाकिस्तान को बुलाया, तो क्या हुआ? उनके अपने ही अधिकारियों ने कहा – “ये हमारा सैनिक नहीं है!” अजीब लगता है ना? लेकिन फिर… ब्रिगेडियर एमपीएस बाजवा (बाद में भारतीय आर्मी चीफ बने) ने कुछ ऐसा किया जो शायद ही किसी ने सोचा होगा। उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों को शेर खान की बहादुरी का पूरा किस्सा सुनाया। कैसे उन्होंने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। सच्चे योद्धा की मौत मरी।

इंसाफ की वो घड़ी

ब्रिगेडियर बाजवा के इस कदम ने सब कुछ बदल दिया। पाकिस्तानी सेना को जब सच पता चला तो उन्होंने शेर खान को मरणोपरांत “निशान-ए-हैदर” दिया – जो उनका सबसे बड़ा सैनिक सम्मान है। मजे की बात ये कि ये सम्मान उन्हें एक भारतीय अधिकारी की वजह से मिला! जिंदगी का ये विरोधाभास देखिए ना…

दोनों तरफ से सलाम

इस घटना ने दोनों देशों की सेनाओं को क्या सिखाया? ब्रिगेडियर बाजवा ने कहा था – “वीरता की कोई सीमा नहीं होती।” और पाकिस्तानी जनरल मुनीर ने इसे अपनी सेना का गर्व बताया। सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे “युद्ध में मानवता की जीत” कहा। सच में, कुछ चीजें देशों से ऊपर होती हैं।

एक सबक जो हमेशा याद रखा जाएगा

शेर खान की ये कहानी सिर्फ इतिहास की किताबों में नहीं, बल्कि दिलों में दर्ज हो गई है। सवाल ये है कि क्या ऐसी घटनाएं भविष्य में भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को बेहतर बना सकती हैं? मेरा मानना है कि जब तक ऐसी मिसालें याद की जाएंगी, उम्मीद की एक किरण जरूर बनी रहेगी। आखिरकार, सच्ची बहादुरी और इंसानियत कभी बेकार नहीं जाती।

एक बात तो तय है – कर्नल शेर खान की ये दास्तान सैनिकों के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेगी। चाहे वो सीमा के इस पार हों या उस पार। और हां, ये कहानी हमें ये याद दिलाती है कि युद्ध के बीच में भी इंसानियत की जगह होती है। वरना भला कोई दुश्मन की बहादुरी को सलाम क्यों करेगा?

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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