कर्नाटक ने NTPC को न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए स्थान अध्ययन रिपोर्ट जमा करने को कहा – अब क्या होगा?
देखिए, कर्नाटक सरकार ने आखिरकार एक बड़ा फैसला ले ही लिया! उन्होंने NTPC को न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने के लिए जगह ढूंढने और रिपोर्ट देने को कहा है। सच कहूं तो, ये कोई छोटी बात नहीं है। जब राज्य में बिजली की मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही हो, तो ऐसे कदम तो उठाने ही पड़ते हैं। पर सवाल यह है कि क्या ये प्लांट वाकई कर्नाटक को ‘न्यूक्लियर एनर्जी हब’ बना पाएगा? वैसे, अगर सब कुछ ठीक रहा तो… हो सकता है!
न्यूक्लियर ऊर्जा: जरूरत या जोखिम?
असल में बात ये है कि भारत सरकार को न्यूक्लियर एनर्जी से कुछ ज्यादा ही प्यार हो गया है। और हां, कैगा प्लांट का उदाहरण तो सबके सामने है – वो चल तो रहा है, लेकिन कितना सुरक्षित है? ये अलग बहस का मुद्दा है। कर्नाटक सरकार की सोच साफ है: बिजली की कमी दूर करो, इकोनॉमी को बूस्ट करो। लेकिन क्या ये इतना आसान होगा? शायद नहीं।
प्लांट बनाना इतना आसान नहीं!
अब NTPC को क्या करना होगा? पहले तो जगह ढूंढो, फिर वहां भूकंप का खतरा तो नहीं, पानी की सप्लाई कैसे होगी, पर्यावरण को नुकसान तो नहीं होगा – ये सब चेक करो। और हां, लोगों को गुस्सा न आए इसका भी ध्यान रखो! फिलहाल तटीय इलाकों की बात चल रही है, पर कुछ तय नहीं। एक तरफ तो सरकार का दावा है कि हजारों नौकरियां मिलेंगी, दूसरी तरफ पर्यावरणविदों की चिंताएं भी वाजिब हैं। स्थानीय लोग? वो तो बस ये जानना चाहते हैं कि उनके घर के पास ये प्लांट आएगा या नहीं!
अब आगे क्या?
तो प्रोसेस कुछ यूं चलेगा: पहले रिपोर्ट आएगी, फिर पर्यावरण मंजूरी का झंझट, फिर जन सुनवाई (जहां लोग जरूर शोर मचाएंगे!)। अगर सब कुछ ठीक रहा तो शायद 5-7 साल में प्लांट बन जाए। पर याद रखिए, ये सिर्फ कर्नाटक की नहीं, पूरे देश की बिजली समस्या का हल हो सकता है। Clean energy के नाम पर। लेकिन क्या ये वाकई ‘क्लीन’ होगा? ये तो वक्त ही बताएगा!
एक बात तो तय है – अगर ये प्रोजेक्ट सफल हो गया, तो कर्नाटक का नाम न्यूक्लियर मैप पर जरूर चमकेगा। पर साथ ही, जिम्मेदारी भी बढ़ जाएगी। क्या राज्य सरकार इसकी तैयारी में है? ये सवाल अभी बाकी है…
Source: Hindustan Times – India News | Secondary News Source: Pulsivic.com