“कर्नाटक में सिद्दारमैया-शिवकुमार का इंतजार खत्म, राहुल गांधी का स्ट्रॉन्ग मैसेज!”

कर्नाटक में सिद्दारमैया-शिवकुमार का इंतज़ार ख़त्म… पर क्या सच में?

अरे भाई, कर्नाटक की राजनीति तो इन दिनों एक सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं! कांग्रेस के भीतर चल रही यह सत्ता की खींचतान अब उस मोड़ पर पहुँच गई है जहाँ चाय की दुकान से लेकर TV पैनल तक सबकी जुबान पर एक ही सवाल – “अब आगे क्या?” सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार के बीच का यह तनाव तो जैसे रोज़ का सीरियल बन चुका था, लेकिन राहुल गांधी ने अचानक अपनी entry देकर plot twist डाल दिया है। उनका message साफ़ था – “यारों, सत्ता के चक्कर में जनता के मुद्दे भूल गए क्या?”

चुनाव जीतने के बाद का असली टेस्ट

2023 की जीत के बाद कांग्रेस को लगा होगा कि अब तो गेम सेट है, लेकिन असली टेस्ट तो अब शुरू हुआ! सिद्दारमैया को CM चेयर मिली तो ठीक है, पर शिवकुमार के वाले जूनियर्स को यह बात हजम नहीं हुई। वैसे भी, किसी भी पार्टी में दो बड़े नेताओं का यह equation तो हमेशा से ही मुश्किल रहा है – एक तरफ़ तो सीनियरिटी, दूसरी तरफ़ जनाधार। और अब तो 2024 के लोकसभा चुनाव का pressure भी है। सच कहूँ तो, यह टाइमिंग बिल्कुल भी अच्छी नहीं है!

राहुल का ‘ड्रामा’ इंटरवेंशन

मज़े की बात यह है कि राहुल गांधी ने जब यह कहा कि “हमें सत्ता नहीं, जनता पर focus करना चाहिए”, तो यह बयान ऐसा था जैसे किसी family dispute में बड़े भैया का दख़ल। सब जानते हैं कि यह सीधा message था दोनों गुटों के लिए। पर सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ़ एक पब्लिक स्टंट था या असली में पार्टी अंदर से इस पर काम कर रही है? क्योंकि देखा जाए तो अभी तक तो सिर्फ़ बयानबाजी ही हो रही है, कोई concrete action नहीं दिख रहा।

किसका कितना दावा वैध है?

अब यहाँ दोनों तरफ़ के arguments समझने वाले हैं। सिद्दारमैया वाले कहेंगे – “भई, पद तो तय हो चुका है, अब आगे बढ़ो!” वहीं शिवकुमार के fans का logic है – “हमारे leader का जनाधार और experience दोनों स्ट्रॉन्ग है।” पर राजनीति तो वही जीतती है जो ground reality समझती है। और reality यह है कि अगर यह झगड़ा जल्द solve नहीं हुआ, तो 2024 में कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे पिछले कई बार हुआ है!

अब क्या? 3 संभावित सिनारियो

तो अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? मेरे हिसाब से तीन possibilities हैं:
1. पार्टी हाईकमान कोई समझौता करवाएगी (जैसे कि कैबिनेट में reshuffle)
2. स्टेटस क्वो बना रहेगा और यह cold war चलता रहेगा
3. कोई बड़ा धमाकेदार फैसला आएगा!

पर एक बात तो तय है – कर्नाटक कांग्रेस के लिए यह वक्त बेहद नाज़ुक है। राहुल का message तो अच्छा था, लेकिन अब देखना है कि ground पर इसका कितना असर होता है। अगर यह टीम सच में यूनाइटेड हो जाती है, तो न सिर्फ़ कर्नाटक बल्कि दिल्ली में भी इसका असर दिखेगा। वरना… खैर, वह कहानी फिर कभी!

[एक पत्रकार मित्र ने बताया कि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अगले 15 दिनों में कोई बड़ा फैसला आ सकता है। पर यह तो वक्त ही बताएगा…]

यह भी पढ़ें:

कर्नाटक में सिद्दारमैया-शिवकुमार और राहुल गांधी का खेल: जानिए वो सारे सवाल जो आप पूछना चाहते हैं

1. आखिर क्यों खत्म हुआ सिद्दारमैया और शिवकुमार का इंतज़ार?

देखिए, ये सवाल तो सबके दिमाग में घूम रहा था। असल में, कांग्रेस ने अपना political game clear कर दिया है – जैसे कोई chess का मास्टर अचानक अपना चाल चल दे। अब leadership के साथ आगे बढ़ने का फैसला हो गया। और सच कहूँ तो, ये तय होना ही था।

2. राहुल गांधी का कर्नाटक मैसेज: सिर्फ बयानबाजी या कुछ खास?

अरे भई, ये कोई साधारण मैसेज नहीं था! राहुल ने BJP को लेकर जो stand लिया, वो तो जैसे… एकदम सीधा निशाना। उन्होंने साफ कहा – “हम एक साथ हैं”। सिद्दारमैया और शिवकुमार के साथ मिलकर काम करने की बात ने तो जैसे पार्टी workers में नई जान डाल दी। क्या आपको नहीं लगता ये सही समय पर सही move था?

3. क्या सच में कर्नाटक में कांग्रेस मजबूत हुई है?

सुनिए, अगर leaders आपस में लड़ेंगे तो पार्टी कैसे चलेगी? लेकिन अब तस्वीर बदली है। एक तरफ तो unity दिख रही है, दूसरी तरफ senior leaders shoulder-to-shoulder काम करने को तैयार हैं। और यार, राजनीति में यही तो चाहिए – एकता और clear strategy। तो हाँ, position पहले से बेहतर हुई है।

4. सिद्दारमैया vs शिवकुमार: आखिर क्या था मसला?

ओहो! ये तो जैसे सास-बहू के झगड़े जैसा था। Leadership को लेकर, strategies को लेकर – differences तो थे ही। पर अब? जैसे दोनों ने realize किया कि अलग-अलग रहने से फायदा नहीं। तो भाईचारे के साथ आगे बढ़ने का फैसला। और सच कहूँ तो, यही तो समझदारी है न?

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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