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“कावड़ यात्रा के कारण उद्योगों को करोड़ों का नुकसान! एसोसिएशन ने वैकल्पिक रास्ते की उठाई मांग”

कावड़ यात्रा से उद्योगों पर मंडराया संकट: क्या वैकल्पिक रास्ता ही एकमात्र हल है?

अरे भाई, हरिद्वार में तो इन दिनों कावड़ यात्रा का जो हाल है, वो स्थानीय उद्योगों के लिए सिरदर्द बन गया है। सच कहूँ तो, यातायात प्रतिबंध और लगातार जाम की वजह से उद्योगपतियों का बुरा हाल है। इस साल तो 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान! है न हैरानी वाली बात? अब उद्योग संघ वालों ने प्रशासन के सामने वैकल्पिक मार्ग बनाने की गुहार लगाई है। मामला गंभीर है – एक तरफ आस्था, दूसरी तरफ रोजी-रोटी।

देखिए न, कावड़ यात्रा तो सदियों पुरानी परंपरा है। श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेकर पैदल चलते हैं। लेकिन अब समस्या ये है कि भीड़ इतनी बढ़ गई है कि मुख्य सड़कें बंद करनी पड़ती हैं। और भईया, इसका सीधा असर? फैक्ट्रियों में माल की आवाजाही ठप्प, कर्मचारी समय पर नहीं पहुँच पाते। पिछले कुछ सालों से ये समस्या बढ़ती जा रही है, लेकिन हल कुछ नहीं निकला। सचमुच!

इस बार के आँकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं। कल्पना कीजिए – कच्चा माल नहीं पहुँचा तो उत्पादन रुक गया। कुछ फैक्ट्रियों को तो अस्थायी तौर पर बंद ही करना पड़ा। अब उद्योग वालों ने प्रशासन को चिट्ठी लिखकर साफ कह दिया है – “भईया, एक अलग रास्ता तय करो न!” उनका कहना है कि ऐसा करने से यात्रा भी चलती रहेगी और व्यापार भी। समझदारी की बात लगती है, है न?

अब सुनिए इस मामले में कौन क्या कह रहा है। उद्योग संघ के राजीव अग्रवाल जी का कहना है – “हम आस्था का सम्मान करते हैं, लेकिन…।” और इस ‘लेकिन’ में पूरी समस्या समाई हुई है। वहीं प्रशासन वाले कह रहे हैं कि वो मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। पर सवाल ये कि कब तक? कुछ श्रद्धालुओं को डर है कि पारंपरिक मार्ग बदलने से उनकी आस्था प्रभावित होगी। समझ भी सकते हैं उन्हें।

तो अब क्या? प्रशासन ने बैठक बुलाई है। अगर वैकल्पिक मार्ग मंजूर हुआ तो अगले साल से नए नियम लागू हो सकते हैं। लेकिन उद्योग वालों का धैर्य जवाब दे रहा है – वे चेतावनी दे चुके हैं कि अगर जल्दी हल नहीं निकला तो विरोध प्रदर्शन पर उतरेंगे। प्रशासन के लिए ये वाकई में एक बड़ी परीक्षा है।

असल में देखा जाए तो ये सिर्फ ट्रैफिक या पैसों का मामला नहीं है। ये तो हमारे सामाजिक ताने-बाने की परीक्षा है। प्रशासन को चाहिए कि सभी पक्षों को साथ लेकर ऐसा रास्ता निकाले जिससे न तो आस्था ठेस पहुँचे और न ही उद्योगों का नुकसान हो। मुश्किल है, नामुमकिन नहीं। क्या आपको नहीं लगता?

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Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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