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“25 साल बाद छलका खरगे का दर्द: ‘मेहनत मेरी, सीएम की कुर्सी कृष्णा को'”

25 साल बाद छलका खरगे का दर्द: ‘मेहनत मेरी, सीएम की कुर्सी कृष्णा को’

अरे भई, महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से धमाल मच गया है! एनसीपी के दिग्गज नेता छगन भुजबल यानी खरगे ने तो बम फोड़ दिया। सोचिए, पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक होने के बावजूद, उन्हें लगता है कि उनके साथ नाइंसाफी हुई। और सच कहूं तो, उनकी बात में दम भी दिखता है। 25 साल की मेहनत के बाद जब मुख्यमंत्री की कुर्सी की बारी आई, तो शरद पवार के भतीजे अजित पवार (जिन्हें वो ‘कृष्णा’ कहते हैं) को यह मौका मिल गया। ये सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर जमी बेचैनी का इजहार है। और हां, राजनीति के खेल में ये नया मोड़ ला सकता है।

पार्टी के लिए जी-जान लगा दी, पर…?

देखिए, खरगे का किस्सा दिलचस्प है। एनसीपी के गठन के साथ ही उनका सफर शुरू हुआ। पार्टी के लिए उन्होंने क्या नहीं किया? लेकिन 2019 में जब महा विकास अघाड़ी की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी उद्धव ठाकरे को मिली। फिर 2022 में शिवसेना का विभाजन हुआ और अजित पवार उपमुख्यमंत्री बन बैठे। और हमारे खरगे साहब? उन्हें तो बस एक मंत्रालय से ही काम चलाना पड़ा। अब आप ही बताइए, इतने साल के बाद भी यदि आपको लगे कि आपकी अनदेखी हो रही है, तो गुस्सा आएगा या नहीं?

सबसे मजेदार बात? खरगे ने जिस तरह से अपनी भावनाएं जाहिर कीं। सीधे-सादे शब्दों में कह दिया – “25 साल की मेहनत के बाद reward किसी और को मिल गया।” ये कोई साधारण बयान नहीं है भाई। इसमें नाराजगी है, निराशा है, और सबसे बड़ी बात – पार्टी के भीतर की उस सच्चाई को उजागर कर दिया जिस पर आमतौर पर पर्दा डाला जाता है।

राजनीति गरमाई, गप्पें तेज

इस बयान के बाद तो महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मच गई है। political analysts कह रहे हैं कि ये सिर्फ एक नेता की नाराजगी नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर की गुटबाजी का सिरा है। और सच भी तो है – एनसीपी के कई कार्यकर्ता खरगे के साथ खड़े दिख रहे हैं। उनका कहना साफ है – “इतने साल के योगदान को appreciate क्यों नहीं किया गया?”

विपक्ष वाले तो मौके की ताक में ही बैठे थे। भाजपा और शिवसेना ने तुरंत इसे एनसीपी की “परिवारवादी राजनीति” का नमूना बता दिया। उनका तर्क? “पार्टी में योग्यता नहीं, बल्कि खून के रिश्ते को तरजीह दी जाती है।” और यहां खरगे जैसे नेता इसका शिकार हो रहे हैं।

अब आगे क्या?

तो अब सवाल यह है कि ये सिलसिला आगे कहां जाएगा? political experts की मानें तो अगर पार्टी नेतृत्व ने खरगे की बात को गंभीरता से नहीं लिया, तो ये आग पूरे जंगल में फैल सकती है। कुछ sources तो यहां तक कह रहे हैं कि खरगे पार्टी छोड़ने का भी विचार कर सकते हैं। अरे, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ये घटना महाराष्ट्र की राजनीति को नया मोड़ दे सकती है!

ईमानदारी से कहूं तो, ये सिर्फ एनसीपी की ही नहीं, बल्कि पूरी भारतीय राजनीति की बड़ी समस्या को उजागर करता है – क्या सच में मेहनत और अनुभव को तरजीह दी जाती है? या फिर सत्ता के equations में ये सब गौण हो जाता है? सवाल तो बनता है ना?

अभी तो यही लग रहा है कि एनसीपी नेतृत्व को अपने वरिष्ठ नेताओं से बातचीत बढ़ानी होगी। नहीं तो ये छोटी सी चिंगारी बड़ा रूप ले सकती है। फिलहाल तो महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मसाला मिल गया है। देखते हैं, आगे क्या होता है!

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25 साल बाद फिर छलका खरगे का दर्द – और आपके मन में उठ रहे सवाल

1. “मेहनत मेरी, सीएम की कुर्सी कृष्णा को” – खरगे ने ये कड़वी बात क्यों कही?

देखिए, ये कोई नई बात नहीं है। हर राजनेता के मन में कुछ न कुछ कसक रहती है। खरगे का ये बयान उस आदमी की चुभन है जिसने पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत की, लेकिन जब मौका आया तो उन्हें पीछे धकेल दिया गया। असल में बात ये है कि वो अपनी political journey के उन पलों को याद कर रहे हैं जब उन्हें लगा कि उनके sacrifices को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। और सच कहूं तो, किसी भी इंसान को ऐसा लगे तो दर्द तो होगा ही न?

2. क्या ये सिर्फ़ खरगे की नाराज़गी है या Congress की अंदरूनी राजनीति का सच?

अरे भई, ये तो वही बात हुई – “जहां दो-तीन राजनेता इकट्ठे हों…”। मज़ाक कर रहा हूं, लेकिन सच यही है कि हर बड़ी पार्टी में ये खेल चलता रहता है। खरगे का ये बयान Congress के अंदर चल रही उस जंग को दिखाता है जहां senior leaders अपनी relevance बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं। एक तरफ़ तो ये उनकी निजी frustration है, लेकिन दूसरी तरफ़ ये पार्टी के internal power equations को भी expose करता है। सीधी बात – जब तक राजनीति है, ये सब चलता रहेगा।

3. इतने साल बाद ये मुद्दा अचानक क्यों सामने आया?

तो अब सवाल यह उठता है कि 25 साल बाद ये बात क्यों उभरकर आई? असल में देखा जाए तो राजनीति में पुराने घाव कभी भी भरते नहीं। खरगे ने recent interview में अपने past experiences share किए, और ये तो होना ही था। आपने गौर किया होगा – जब leaders active politics से थोड़ा दूर होते हैं या फिर उनकी position कमज़ोर पड़ती है, तब ये पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं। एकदम इंसानी स्वभाव। सच कहूं तो मीडिया को भी ऐसे spicy statements चाहिए ही होते हैं न?

4. Congress पर इसका क्या असर पड़ेगा? असली सवाल यही है!

अब ये तो थोड़ा मुश्किल सवाल है। short-term में तो ये Congress की image को थोड़ा झटका देगा, खासकर Maharashtra में जहां खरगे का एक अलग ही स्टेचर है। लेकिन याद रखिए, आज का voter इतना समझदार हो गया है कि वो पुराने मुद्दों से ज़्यादा प्रभावित नहीं होता। हालांकि, एक बात clear है – internal conflicts जब public होते हैं तो पार्टी को नुकसान तो होता ही है। पर ये old wine है, नई बोतल में। असर होगा, लेकिन शायद उतना नहीं जितना कुछ लोग सोच रहे होंगे।

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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