संविधान की प्रस्तावना में बदलाव? खरगे बोले – “हाथ लगाया तो…”
अरे भई, भारतीय राजनीति में तो हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है। लेकिन इस बार बहस हो रही है हमारे संविधान की प्रस्तावना को लेकर! कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे साहब तो जैसे आग बबूला हो गए हैं। कारण? आरएसएस के दत्तात्रेय होसबाले ने ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की बात छेड़ दी। और खरगे जी का रिएक्शन? “छूने की कोशिश की तो…” वाला। सच कहूं तो ये बहस सिर्फ शब्दों की नहीं, बल्कि देश की पहचान की लड़ाई है।
पीछे का सच – कब और क्यों जुड़े ये शब्द?
देखिए न, 1976 की बात है। इंदिरा गांधी का जमाना, आपातकाल का दौर। 42वें संशोधन में ये दो शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए। मजे की बात? आरएसएस और कुछ दक्षिणपंथी ग्रुप्स को ये शब्द हमेशा से चुभते रहे हैं। उनका कहना है – “ये तो बाद में थोपे गए!” लेकिन सवाल यह है कि क्या 47 साल बाद अब इन्हें हटाना ठीक होगा? होसबाले जी के बयान के बाद तो जैसे राजनीति की कुर्सी गर्म हो गई है।
राजनीति गरमाई – किसने क्या कहा?
खरगे साहब तो बिल्कुल साफ गोल्फ़ में बोले – “ये संविधान पर हमला है!” उनका कहना है प्रस्तावना तो हमारी रूह है। एक तरफ कांग्रेस पूरी ताकत से विरोध कर रही है, वहीं भाजपा… अरे भई, भाजपा तो अभी चुप्पी साधे हुए है। हालांकि उनके कुछ नेता प्राइवेटली होसबाले का साथ देते नजर आए।
दिलचस्प ये कि आरएसएस के कुछ लोगों ने होसबाले को ‘व्यक्तिगत विचार’ बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की। पर सच तो ये है कि TMC से लेकर वामदलों तक सभी इस प्रस्ताव के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। क्या ये विपक्ष के लिए एकजुट होने का मौका है? शायद।
आगे क्या? 2024 का गेम चेंजर?
असल में देखा जाए तो ये मुद्दा अगले संसद सत्र में तूफान ला सकता है। सोचिए अगर सरकार ने कोई कदम उठाया तो? सड़क से संसद तक हंगामा तय है। लेकिन यहां एक पेंच है – संविधान में बदलाव के लिए तो दो-तिहाई बहुमत चाहिए। और मौजूदा हालात में ये संभव नहीं लगता।
सच पूछो तो ये बहस सिर्फ शब्दों की नहीं। ये तो हमारे संवैधानिक मूल्यों की लड़ाई है। सबकी नजर अब 2024 के general elections पर है। क्या ये मुद्दा उससे पहले बड़ा राजनीतिक तूफान बन पाएगा? वक्त बताएगा। पर एक बात तय है – राजनीति का तापमान बढ़ने वाला है। बिल्कुल गर्मा-गर्म!
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com