मंत्री रिजिजू vs ओवैसी: ‘आप सिंहासन पर नहीं, संवैधानिक पद पर हैं’ – क्या ये बहस सच में ज़रूरी थी?
अरे भाई, केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और असदुद्दीन ओवैसी की ये तीखी नोक-झोंक तो अब रोज़ का नज़ारा बन चुका है। पर इस बार बात बस बहस तक नहीं रही – अल्पसंख्यक अधिकारों को लेकर ये झगड़ा पूरे देश के social media ट्रेंड्स पर छा गया। असली मज़ा तो तब शुरू हुआ जब रिजिजू ने खुलकर कह दिया कि मुस्लिम समुदाय को हिंदुओं से ज़्यादा फायदे मिलते हैं। और फिर? फिर तो ओवैसी साहब का तापमान इतना बढ़ा कि उन्होंने अल्पसंख्यकों को “बंधक” तक कह डाला। सच कहूँ तो, ये बहस सुनकर लगता है जैसे दोनों नेता किसी राजनीतिक WWE रिंग में उतर आए हों!
ये झगड़ा अचानक था? बिल्कुल नहीं!
देखिए, ये कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ सालों से तो ये मुद्दा गर्मागर्म चल ही रहा था। मानो कोई pressure cooker हो जिसका whistle बजने ही वाला था। रिजिजू ने बस उसी cooker का ढक्कन खोल दिया। उनका कहना है कि मुस्लिमों को education, jobs और धर्म से जुड़े मामलों में special privileges मिलते हैं। पर सवाल यह है कि क्या सच में ऐसा है? या फिर ये सिर्फ vote bank politics का एक नया chapter है?
ओवैसी का जवाब – एकदम फायर!
अब ओवैसी साहब तो मौका मिलते ही पलटवार करने के लिए मशहूर हैं। उन्होंने रिजिजू के दावों को “पूरी तरह झूठ” बताया और ये तक कह डाला – “आप सिंहासन पर नहीं, संवैधानिक पद पर बैठे हैं”। वाह! ये लाइन तो सोशल media पर आग की तरह फैल गई। और रिजिजू? उन्होंने जवाब में ओवैसी पर “झूठी कहानियाँ फैलाने” का आरोप लगा दिया। सच पूछो तो ये पूरा विवाद देखकर लगता है जैसे दोनों नेता Twitter के बजाय Parliament में बहस कर रहे हों!
राजनीति का पुराना खेल – फूट डालो और राज करो?
इस पूरे झगड़े ने राजनीतिक दलों को फिर से दो गुटों में बाँट दिया। BJP वाले रिजिजू के पक्ष में हैं तो opposition ने ओवैसी का साथ दिया। पर असल सवाल ये है कि क्या ये सच में अल्पसंख्यकों के हक़ की लड़ाई है? या फिर ये सिर्फ 2024 elections से पहले की एक तैयारी है? कुछ experts तो यहाँ तक कह रहे हैं कि ये सब “divide and rule” की पुरानी राजनीति का हिस्सा है।
आगे क्या? 2024 की ओर बढ़ते कदम
अब तो लगता है ये मुद्दा और बड़ा होगा। Parliament के अगले session में शायद ये बहस फिर से शुरू हो। और 2024 elections? उस पर तो इसका सीधा असर पड़ने वाला है। अल्पसंख्यक समुदाय पहले से ही नाराज़ हैं, अब और भी नाराज़ हो सकते हैं। पर क्या ये सच में उनकी भलाई के लिए है? या फिर सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए?
अंत में: ये सिर्फ दो नेताओं की बहस नहीं है। ये तो उस बड़ी लड़ाई का हिस्सा है जो भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों के बीच चल रही है। Social media पर जिस तरह ये ट्रेंड कर रहा है, उसे देखकर तो लगता है कि आने वाले दिनों में ये और भी गर्म होगा। पर सच पूछो तो – क्या इससे किसी का भला होगा? या फिर ये सिर्फ समाज को और बाँटने का काम करेगा?
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देखिए, यह बहस कोई नई नहीं है, लेकिन Minister Rijiju और Owaisi के बीच हालिया टकराव ने फिर से एक ज़रूरी सवाल खड़ा कर दिया है – क्या हमारे नेता संवैधानिक मर्यादाओं को सच में समझते हैं? या फिर ये सिर्फ power की राजनीति का एक और दौर है? असल में, यह विवाद दो नेताओं से कहीं बड़ा है… यह तो हमारे संविधान की बुनियादी समझ पर सवाल है।
और सच कहूं तो, जब तक position का मतलब सिर्फ ‘सत्ता’ समझा जाता रहेगा, और responsibility को side में रख दिया जाएगा, तब तक ये बहसें Online भी चलेंगी और Offline भी। एक तरफ तो हम ‘संवैधानिक मूल्यों’ की बात करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ practice में क्या हो रहा है? सोचने वाली बात है ना?
मंत्री रिजिजू vs ओवैसी विवाद: जानिए पूरा माजरा, बिना लाग-लपेट के!
1. मंत्री रिजिजू और ओवैसी के बीच विवाद क्या है? असल में बात कहाँ से शुरू हुई?
देखिए, मामला तब गरमाया जब रिजिजू साहब ने ओवैसी को एक चुटकी लेते हुए कहा – भई, आप “संवैधानिक पद” पर बैठे हैं, कोई “सिंहासन” तो नहीं! और फिर क्या? ओवैसी साहब को यह बात चुभ गई। सोशल मीडिया से लेकर पार्लियामेंट तक, बहस का बाजार गर्म हो गया।
2. रिजिजू ने ओवैसी को ‘सिंहासन’ वाली टिप्पणी क्यों की? क्या सिर्फ मज़ाक था या कोई मैसेज देना चाहते थे?
असल में, यहाँ सिर्फ शब्दों का खेल नहीं है। रिजिजू की नज़र में, ओवैसी की राजनीतिक स्टाइल कुछ ऐसी है जैसे वो किसी राजा का फरमान सुना रहे हों। संविधान और लोकतंत्र की बात करें तो… यह टिप्पणी एक तीखा रिमाइंडर था। पर सवाल यह है – क्या यह सही तरीका था?
3. ओवैसी ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी? क्या उन्होंने इसे निजी तौर पर लिया?
बिल्कुल नाराज़गी दिखाई ओवैसी ने! प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने इसे “असंवैधानिक” बताया और कहा कि यह मुस्लिम नेतृत्व को टार्गेट करने की सोची-समझी रणनीति है। सच कहूँ तो, उनकी प्रतिक्रिया से लगा कि यह विवाद अब और बढ़ सकता है।
4. क्या यह विवाद सिर्फ वर्ड्स की लड़ाई है या इसका कोई बड़ा मतलब है? गहराई में जाने की कोशिश करें
यहाँ शब्दों से आगे की बात है, दोस्तों। यह विवाद दरअसल उस बड़ी लड़ाई का हिस्सा है जो धर्म और राजनीति के बीच चल रही है। एक तरफ संविधान का पाठ पढ़ाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ समाज के अलग-अलग वर्गों की भावनाएँ हैं। स्थिति गंभीर है, पर क्या हल निकलेगा? वक़्त बताएगा।
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