चीन को टक्कर देने की नई तरकीब: क्या e-waste रीसाइक्लिंग हो सकता है हमारा गेम-चेंजर?
दिलचस्प बात ये है कि अब हमारे नेता भी टेक्नोलॉजी के मामले में चतुराई दिखाने लगे हैं! पिछले कुछ समय से दिल्ली की सत्ता की गलियारों में एक नया आइडिया चर्चा में है – e-waste से कीमती मिनरल्स निकालकर चीन पर हमारी निर्भरता कम करना। सोचिए, जिस कचरे को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, वही हमारी ताकत बन सकता है। बिल्कुल सही पढ़ा आपने!
चीन का एकाधिकार: क्यों ये हमारे लिए दिक्कत बन गया है?
असल में बात ये है कि lithium, cobalt और nickel जैसे मिनरल्स पर चीन की मजबूत पकड़ है। और ये वही चीजें हैं जो आपके smartphone से लेकर electric car तक में इस्तेमाल होती हैं। पर सच्चाई ये है कि हमारे देश में हर साल जितना e-waste निकलता है, उसका सिर्फ 20% ही रीसायकल हो पाता है। बाकी? या तो कूड़े के ढेर में या फिर किसी झुग्गी-झोपड़ी में बच्चे उसे जलाते रहते हैं। क्या यही तरीका है हमारे पर्यावरण को बचाने का?
लेकिन अच्छी खबर ये है कि ‘Make in India’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे नारों ने अब असल रूप लेना शुरू कर दिया है। सरकार को समझ आ गया है कि टेक्नोलॉजी के मामले में चीन के आगे घुटने टेकने की जरूरत नहीं।
क्या हो रहा है नया? सरकार की प्लानिंग पर एक नजर
अब तो कई राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट्स भी शुरू हो चुके हैं। मसलन, e-waste से निकाले गए मिनरल्स का इस्तेमाल solar panels और EVs बनाने में हो रहा है। सरकार ने startups को लेकर भी काफी सीरियस लग रही है – फंडिंग से लेकर टेक्नोलॉजी सपोर्ट तक।
मोटे तौर पर तीन मकसद हैं:
1. चीन से छुटकारा (बहुत जरूरी!)
2. पर्यावरण को बचाना
3. नए रोजगार पैदा करना
क्या ये प्लान काम करेगा? वक्त बताएगा।
क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स?
एक सरकारी अधिकारी ने तो बड़ी दिलचस्प बात कही – “ये सिर्फ e-waste मैनेजमेंट नहीं, बल्कि हमारी स्ट्रेटेजिक फ्रीडम की लड़ाई है।” उद्योग जगत भी उत्साहित है, पर साथ ही वो चेतावनी भी दे रहा है कि सिर्फ पॉलिसी बनाने से काम नहीं चलेगा।
पर्यावरणविदों की चिंता अलग है। उनका कहना है – “अगर सही तरीके से रीसायकल नहीं किया गया तो यही प्रोजेक्ट नया प्रदूषण फैलाने वाला बन जाएगा।” सच कहूं तो उनकी बात में दम भी है।
आगे की राह: क्या है प्लान?
अगले पांच सालों में हमारा टारगेट है e-waste रीसाइक्लिंग को 50% तक पहुंचाना। इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर खास फोकस होगा। निजी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप भी बढ़ेगी।
अगर सब कुछ ठीक रहा तो… अरे भाई, हम न सिर्फ चीन को टक्कर दे पाएंगे बल्कि एक हरित अर्थव्यवस्था (green economy) की तरफ भी बढ़ेंगे। दो नावों पर पैर रखने जैसा है – एक तरफ पर्यावरण संरक्षण, दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता। क्या यही है नई भारत की असली तस्वीर?
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Source: WSJ – US Business | Secondary News Source: Pulsivic.com