अमेरिकी टैरिफ ने लेसोथो को घुटनों पर ला दिया! UN भी हुआ बेहाल
दक्षिण अफ्रीका का ये छोटा सा पहाड़ी देश लेसोथो आजकल क्या झेल रहा है, सुनकर आपको यकीन नहीं होगा। अमेरिका के नए टैरिफ ने तो जैसे इसकी अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी है। स्थिति इतनी खराब कि सरकार को राष्ट्रीय आपदा घोषित करनी पड़ी। और सबसे दुखद बात? ये मामला सिर्फ लेसोथो तक सीमित नहीं है। देखा जाए तो UN के शांति मिशन से लेकर UNICEF जैसे संगठन भी इसकी चपेट में आ गए हैं। अमेरिकी फंडिंग में कटौती ने तो जैसे वैश्विक सहायता कार्यक्रमों की रीढ़ ही तोड़ दी है।
लेसोथो: जहां कपड़ा उद्योग है दिल, और अमेरिका उसकी धड़कन
असल में बात ये है कि लेसोथो की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा कपड़ा उद्योग पर टिका है। और यहां का 80% से ज्यादा माल? सीधा अमेरिका जाता था। पर अब अमेरिकी सरकार ने कपड़ा उत्पादों पर नए टैरिफ लगा दिए हैं। नतीजा? लेसोथो का निर्यात ठप्प। मानो किसी ने सीधे ऑक्सीजन का पाइप ही काट दिया हो। और तो और, UN को मिलने वाली अमेरिकी सहायता में पहले से ही कटौती हो चुकी थी। ये दोहरी मार साबित हुई।
संकट की गहराई: नौकरियां जा रहीं, बच्चों का भविष्य अंधेरे में
हालात इतने बदतर हैं कि सरकार को आर्थिक आपातकाल घोषित करना पड़ा। सोचिए, कपड़ा कारखानों में उत्पादन 50% तक गिर चुका है! हजारों लोगों की नौकरियां दांव पर लगी हैं। और UN की बात करें तो… UNICEF को तो 30% फंडिंग कटौती का झटका लगा है। मतलब साफ है – अफ्रीका और मध्य पूर्व में चल रहे मानवीय कार्यक्रम अब खतरे में हैं। सबसे ज्यादा असर तो बच्चों पर पड़ेगा, ये तो तय है।
दुनिया क्या कह रही है? प्रतिक्रियाओं का अंदाज़ा लगाइए
लेसोथो के PM ने तो इसे “विनाशकारी” तक कह डाला। UN के प्रवक्ता की चेतावनी और भी डरावनी है – “अफ्रीका में हमारे कार्यक्रम धराशायी हो जाएंगे।” एक UNICEF अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि “इसका असर अगले दस साल तक दिखेगा।” सच कहूं तो, ये सिर्फ आर्थिक संकट नहीं, मानवीय त्रासदी है।
आगे का रास्ता: उम्मीद की किरण या और अंधेरा?
तो फिर समाधान क्या है? लेसोथो तो अंतरराष्ट्रीय मदद की गुहार लगा रहा है। UN भी दूसरे देशों से फंडिंग बढ़ाने को कह रहा है। पर सच्चाई ये है कि अमेरिका के बिना ये पूरा खेल अधूरा है। वार्ता की कोशिशें जरूर हो रही हैं, पर अभी तक कोई रास्ता नजर नहीं आया। एक तरफ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में दरारें हैं, दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की परीक्षा चल रही है। क्या हम इससे सबक लेंगे? वक्त ही बताएगा।
एक छोटे देश की ये कहानी असल में पूरी दुनिया के लिए आईना है। जब बड़े देश छोटों पर ऐसे प्रहार करते हैं, तो उसकी गूंज पूरी मानवता तक जाती है। सोचने वाली बात है, है न?
यह भी पढ़ें:
- Global Business Strong Despite Tariffs War
- Trump 70 Percent Reciprocal Tariffs Us Eu Trade
- Trump Race Trade Deals Before New Tariffs
Source: NPR News | Secondary News Source: Pulsivic.com