LIVE: 20 साल बाद ठाकरे ब्रदर्स एक मंच पर – मराठी अस्मिता का नया अध्याय?
अरे भई, आज तो महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी! सच कहूं तो मुझे खुद यकीन नहीं हो रहा – राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, एक ही मंच पर? वो भी NSCI डोम में? बस, यही नहीं, बल्कि पूरा माहौल ऐसा था जैसे कोई बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर का क्लाइमेक्स सीन हो। ‘मराठी विजय रैली’ के नाम से ही पता चलता है कि मामला कितना गरम था। और हां, सुप्रिया सुले का वहां होना तो जैसे चेरी ऑन द केक जैसा था!
ठाकरे परिवार… नाम सुनते ही दिमाग में क्या आता है? बालासाहेब ठाकरे का वो दबदबा, शिवसेना का उदय, और फिर 2006 में वो बिखराव। राज भैया ने अलग रास्ता चुना, मनसे बनाई – और बस फिर क्या था, भाईचारे की जगह राजनीति ने ले ली। पर आज? देखा जाए तो ये सिर्फ एक रैली नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाला पल है। मराठी अस्मिता के नाम पर दोनों भाई एक साथ – किसने सोचा था ये दिन देखने को मिलेगा!
रैली में दोनों नेताओं के भाषण… वाह! राज ठाकरे ने जहां मराठी युवाओं के रोजगार पर जोर दिया, वहीं उद्धव ने ‘एकता’ की बात की। असल में, ये दोनों ही बातें आज के दौर में कितनी जरूरी हैं, है न? मतलब साफ है – महाराष्ट्र की राजनीति में नया ट्विस्ट आ गया है। और सुप्रिया सुले का मौजूद होना? इससे साफ जाहिर होता है कि ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी।
अब सवाल ये है कि दूसरे पार्टियों को ये कैसा लगा? BJP तो मानो बिफर ही पड़ी – ‘नाटक’ बता कर। वहीं NCP ने थोड़ा सपोर्ट किया। सोशल मीडिया पर #ThackerayBrothers की धूम… कुछ लोग इसे ऐतिहासिक बता रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि ये सिर्फ चुनावी चाल है। पर सच तो ये है कि 2024 के चुनावों पर इसका असर तो पड़ेगा ही। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में ये महाराष्ट्र की राजनीति का गेम-चेंजर हो सकता है।
तो अब क्या? क्या ये एकजुटता टिक पाएगी? या फिर ये सिर्फ एक ‘फोटो ऑप’ था? मराठी भाषा और संस्कृति के नाम पर क्या वाकई में कुछ बदलेगा? सच कहूं तो, आज का दिन महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश की राजनीति के लिए अहम साबित हो सकता है। बस, अब देखना ये है कि ये नया गठजोड़ कितना ‘लॉन्ग लास्टिंग’ साबित होता है। वैसे मेरा मानना है… चाय पत्ती की तरह है राजनीति, कभी भी उबाल आ सकता है!
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ठाकरे ब्रदर्स फिर एक साथ – क्या यह महज एक नाटक है या असली गेम-चेंजर?
अरे भाई, क्या आपने भी नोटिस किया? 20 साल की दुश्मनी के बाद उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर आ गए! सच कहूं तो मुझे भी यकीन नहीं हो रहा। लेकिन देखा जाए तो राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं, है ना?
1. इतने साल बाद अचानक यह भाईचारा क्यों?
सीधी बात – मराठी अस्मिता का मुद्दा। दोनों भाइयों को लगा होगा कि अब वक्त आ गया है महाराष्ट्र के हितों की लड़ाई एकजुट होकर लड़ने का। पर सच पूछो तो, क्या यह सिर्फ एक चाल है? क्योंकि राजनीति में कोई भी कदम बिना किसी मकसद के नहीं उठाया जाता।
2. सुप्रिया सुले का क्या है इस पूरे खेल में रोल?
अच्छा सवाल! सुप्रिया सुले तो शिवसेना (UBT) की बड़ी leader हैं। उनकी मौजूदगी से पार्टी की एकजुटता का संदेश तो जाता है, लेकिन असल में? शायद यह एक तरह का political statement है। वैसे भी, महिला नेताओं को आगे रखना आजकल का ट्रेंड है ना?
3>मराठी अस्मिता का यह हुंकार – असली मुद्दा या सिर्फ नारेबाजी?
देखिए, मराठी अस्मिता की बात तो बहुत अच्छी लगती है। संस्कृति, भाषा, अधिकार – सबकी बात हो रही है। पर क्या यह सच में कोई movement बनेगा या फिर चुनाव आते-आते खत्म हो जाएगा? इतिहास गवाह है कि ऐसे मुद्दे अक्सर political mileage के लिए इस्तेमाल होते हैं। हालांकि, अगर सच्ची नीयत हो तो बात अलग है।
4. क्या यह जोड़ी महाराष्ट्र की राजनीति को उलट-पलट देगी?
मजेदार सवाल! एक तरफ तो दोनों के समर्थकों का एक साथ आना opposition के लिए सिरदर्द बन सकता है। लेकिन दूसरी तरफ… याद है क्या हुआ था MNS और शिवसेना के बीच पहले? असल में, राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। आज साथ, कल अलग। फिलहाल तो यह एक बड़ा political drama लग रहा है। देखते हैं आगे क्या होता है!
एक बात तो तय है – अगले कुछ दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति बोरिंग होने वाली नहीं। क्या आपको नहीं लगता?
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