मेड इन इंडिया हथियारों का जबरदस्त सफर: क्या सच में बदल गया है भारत का डिफेंस गेम?
सुनने में थोड़ा क्लिच लगे, लेकिन सच तो यही है – पिछले 10 सालों में हमारा देश रक्षा क्षेत्र में कहीं से कहीं पहुंच गया है! अरे भाई, याद कीजिए वो दिन जब हर दूसरे साल कोई न कोई स्कैम्डल सुनने को मिलता था कि विदेशी कंपनियां हमें पुराने जमाने का सामान बेच रही हैं। और आज? स्थिति ये है कि हम खुद 75+ देशों को अपना सामान एक्सपोर्ट कर रहे हैं। क्या बात है न? ये कोई चमत्कार नहीं, बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ के उस विजन का नतीजा है जिस पर कई लोगों ने शुरू में सवाल उठाए थे। 180% की ग्रोथ? सच में? हां, 2014 से अब तक का यही आंकड़ा है।
स्ट्रगल से स्ट्राइक तक: हमारी डिफेंस स्टोरी
ईमानदारी से कहूं तो हमारी स्वदेशी डिफेंस की कहानी बिल्कुल उस बच्चे जैसी है जो धीरे-धीरे चलना सीखता है। आजादी के बाद DRDO, HAL जैसी संस्थाएं बनीं, पर क्या हुआ? वो कहावत याद है – “घर की मुर्गी दाल बराबर”? हमारे यहां तो उल्टा ही चल रहा था! 70% इम्पोर्ट पर निर्भरता… सच में? फिर आया 1999 का कारगिल वॉर। उस वक्त हमें एहसास हुआ कि दूसरों के भरोसे बंदूक चलाना कितना खतरनाक हो सकता है। लेकिन असली गेम-चेंजर 2014 के बाद आया। मेक इन इंडिया? सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि हकीकत में बदलता देख रहे हैं हम सब।
हमारी चमकती उपलब्धियां: गर्व करने लायक
अब नंबर्स की बात करें तो… 2,000 करोड़ से 21,000 करोड़? भाई, ये तो हमारे स्कूल के मैथ्स के सवाल जैसा लगता है! पर ये सच है – हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट पिछले दशक में 10X हो गया। फिलीपींस से लेकर मिडिल ईस्ट तक, हमारे हथियारों की डिमांड बढ़ रही है। और क्यों न हो?
तेजस की बात करें तो… वाह! 2001 में जो प्रोटोटाइप उड़ा, आज MK-1A वर्जन पूरी तरह ऑपरेशनल है। आकाश मिसाइल, अर्जुन टैंक, INS विक्रांत – ये सिर्फ नाम नहीं, बल्कि हमारे इंजीनियर्स की मेहनत की मिसाल हैं। और ड्रोन्स? साइबर सिक्योरिटी? यहां भी हम पीछे नहीं। पर एक सवाल – क्या हम वाकई इंजन टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो पाएंगे? ये अभी बड़ा चैलेंज है।
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं? सच-झूठ की कसौटी
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी का कहना है – “हम बनाएंगे टॉप डिफेंस एक्सपोर्टर!” और सच कहूं तो ब्रह्मोस मिसाइल जैसी सफलताओं को देखकर ये सपना असंभव नहीं लगता। सेना प्रमुख जनरल पांडे का कहना है कि ये हमारी “रणनीतिक आजादी” का सवाल है। सही कहा!
लेकिन… हमेशा एक लेकिन तो होता ही है न? डिफेंस एक्सपर्ट अजय शुक्ला जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि R&D पर और इन्वेस्टमेंट चाहिए, प्राइवेट सेक्टर को और इन्वॉल्व करना होगा। सच तो ये है कि सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों में हम अभी पीछे हैं। पर कोई बात नहीं, रोम भी एक दिन में नहीं बना था न?
आगे का रास्ता: क्या हैं चुनौतियां और अवसर?
2025 तक 35,000 करोड़ का टारगेट? हम्म… AMCA स्टील्थ जेट, IAC-2 एयरक्राफ्ट कैरियर, हाइपरसोनिक मिसाइल – ये सभी प्रोजेक्ट्स इस सपने को सच कर सकते हैं। DRDO का दावा है कि 2028 तक हम मिसाइल टेक्नोलॉजी में 100% आत्मनिर्भर हो जाएंगे। भगवान करे ऐसा हो!
मगर दोस्तों, चुनौतियां भी कम नहीं। टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड करना होगा, ग्लोबल सप्लाई चेन में जगह बनानी होगी। पर जिस तरह से पिछले दशक में हमने प्रगति की है, उसे देखकर लगता है कि अगले 5-10 सालों में हम टॉप 5 डिफेंस प्रोड्यूसर्स में शामिल हो सकते हैं। और फिर? फिर तो हम सच्चे अर्थों में एक ‘डिफेंस पावरहाउस’ कहलाएंगे। जय हिंद!
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com