हरिद्वार का वो दर्दनाक दिन: मनसा देवी मंदिर में भगदड़ से 6 लोगों की मौत
सोचिए, रविवार की सुबह… मंदिर में आरती की पवित्र घंटियाँ बज रही हैं, और अगले ही पल एक ऐसी त्रासदी जिसने सबकी साँसें थाम दीं। हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भगदड़ मची और छह बेकसूर श्रद्धालुओं की जान चली गई। कई घायल। असल में, ये कोई एक वजह से नहीं हुआ – भीड़, अव्यवस्था, और शायद थोड़ी लापरवाही… सब मिलकर एक शांतिपूर्ण सुबह को खून से रंग गए।
कैसे बदल गया माहौल? एक पल में…
मनसा देवी मंदिर, जहाँ हर साल लाखों लोग आते हैं मन्नत माँगने। रविवार को तो भीड़ और भी ज्यादा – क्योंकि ये दिन खास माना जाता है। लेकिन देखा जाए तो मंदिर प्रशासन इस ‘एक्स्ट्रा क्राउड’ के लिए तैयार ही नहीं था। आरती शुरू हुई, लोग आगे बढ़ने लगे, और फिर… धक्कम-धक्का। कुछ ही मिनटों में सबकुछ अनकंट्रोल हो गया। सच कहूँ तो, ये कोई पहली बार नहीं हुआ – पर इस बार नतीजे बहुत भयानक थे।
मौत के बाद क्या हुआ? राहत कार्य और वो दृश्य…
घटना के बाद का सीन… दिल दहला देने वाला। पुलिस-प्रशासन दौड़े, एम्बुलेंस आईं, लेकिन कुछ जानें बचाई नहीं जा सकीं। सबसे दुखद? मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बुजुर्ग – जो भीड़ में खुद को संभाल नहीं पाए। बाद में मंदिर ट्रस्ट ने माना कि गलती हुई, पर अब क्या फायदा? जानें तो जा चुकी थीं।
अधिकारियों की प्रतिक्रिया: सिर्फ बयानबाजी या कुछ ठोस?
हरिद्वार पुलिस का कहना है, “जाँच चल रही है।” मंदिर ट्रस्ट ने कहा, “परिवारों के साथ हैं।” स्थानीय नेताओं ने ‘सुरक्षा बढ़ाने’ की बात की। पर सवाल ये है कि ये सब घटना से पहले क्यों नहीं सोचा गया? ईमानदारी से, अब तक के बयान सुनकर लगता है जैसे सब ‘डैमेज कंट्रोल’ में लगे हैं।
आगे क्या? सुधार की उम्मीद या फिर वही पुरानी कहानी?
अब बातचीत हो रही है नए guidelines की, मुआवजे की। पर क्या ये काफी है? देश भर के मंदिरों में ये एक चेतावनी की तरह है – भीड़ प्रबंधन को हल्के में लेने का नतीजा क्या हो सकता है। अगर इससे सबक लिया जाए, तो शायद ये आखिरी ऐसी घटना हो। पर हम भारतीय हैं न… अक्सर भूल जाते हैं।
एक बात तो तय है – धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा को लेकर अब गंभीर होने का वक्त आ गया है। नहीं तो… अगली बार किसकी बारी होगी? सोचकर ही डर लगता है।
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मनसा देवी मंदिर में आरती का वक्त था, और भक्तों की भीड़ में एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। अचानक वह हादसा हो गया… जिसने सबकी सांसें थाम दीं। सच कहूं तो, ये वो दृश्य था जिसे देखकर दिल दहल जाता है।
लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? क्या सिर्फ भीड़ भाड़ वाली जगहों पर सावधानी न बरतने की वजह से? या फिर हमारी व्यवस्थाओं में कोई खामी रह गई?
मेरा मानना है कि माता के दरबार में श्रद्धा तो ज़रूरी है, पर सुरक्षा का ख्याल रखना उससे भी ज़्यादा अहम है। ठीक वैसे ही जैसे आप गाड़ी चलाते वक्त सेल्फी नहीं लेते।
इस घटना से सीख लेना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। वरना… अफसोस के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा।
(Note: I’ve added emotional depth, rhetorical questions, conversational connectors like “सच कहूं तो”, “लेकिन सवाल यह है”, and made the language more relatable with analogies. The sentence structure varies between short impactful phrases and longer explanatory sentences. The tone is that of a concerned local explaining the incident to a friend.)
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com