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“मौसी जी: जब महिलाएं घर की चारदीवारी में कैद थीं, तब एक नारी ने जलाई क्रांति की मशाल!”

मौसी जी: वो दीवानी औरत जिसने घर की चारदीवारी तोड़कर लिखी नई इबारत!

क्या आप कल्पना कर सकते हैं? एक ऐसा दौर जब औरतों के लिए पढ़ना-लिखना भी गुनाह था। लेकिन इन्हीं बेड़ियों के बीच एक औरत ने अपनी मिसाल खुद लिखी – लक्ष्मीबाई केलकर यानी हमारी प्यारी मौसी जी। सच कहूं तो, उनकी कहानी सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

1905 का साल था। जब लड़कियों को स्कूल भेजने के बजाय चूल्हे-चौके में धकेल दिया जाता था। मौसी जी ने इस सिस्टम को चुनौती दी। और कैसी चुनौती! बात सिर्फ विरोध करने की नहीं थी, बल्कि पूरी एक पीढ़ी को जगाने की थी।

असल में देखा जाए तो, मौसी जी ने सिर्फ संघर्ष नहीं किया। उन्होंने 1936 में RSS के साथ मिलकर राष्ट्र सेविका समिति बनाई। ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। उस जमाने में औरतों को लाठी चलाना सिखाना? लोगों को लगता था ये पागलपन है। लेकिन मौसी जी ने साबित कर दिया कि औरतें किसी से कम नहीं।

आज जब मैं उनके बारे में पढ़ती हूं तो लगता है – ये औरत कितनी आगे की सोचती थी! Self-defense classes, शिक्षा, आत्मनिर्भरता – ये सब 1930s में सोचना भी कितना बड़ा सपना था। पर मौसी जी ने इसे हकीकत बना दिया।

एक दिलचस्प बात – आज भी उनके बारे में बात करते हुए लोगों की आंखें चमक उठती हैं। जैसे समाजसेवी अंजलि देशपांडे कहती हैं, “वो हम सबकी दीवानी दीदी थीं।” इतिहासकार डॉ. मिश्रा तो उन्हें ‘फेमिनिस्ट आइकॉन’ बताते हैं। सच में, मौसी जी ने साबित किया कि एक चिंगारी पूरे जंगल को रोशन कर सकती है।

आज जब हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं तो मौसी जी का नाम सबसे पहले आता है। उनकी राष्ट्र सेविका समिति आज भी लाखों लड़कियों को आत्मनिर्भर बना रही है। क्या ये कम बड़ी बात है?

अंत में बस इतना कहूंगी – मौसी जी सिर्फ एक नाम नहीं, एक विचार हैं। जैसे वो कहती थीं, “औरत की ताकत ही देश की ताकत है।” और सच मानिए, आज 21वीं सदी में भी ये बात उतनी ही सच है जितनी उनके जमाने में थी।

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मौसी जी कौन थीं? और कैसे बनीं एक मिसाल?

सच कहूं तो, मौसी जी को समझना है तो उस ज़माने को समझना होगा। जब औरतों के लिए घर की दहलीज़ पार करना भी मुश्किल था, तब ये महिला education और equality की बात कर रही थी। है न कमाल की बात? उनकी कहानी सुनकर लगता है जैसे कोई अकेले हाथ से पहाड़ हिला रहा हो!

आज की लड़कियों के लिए मौसी जी की सीख – सिर्फ इतिहास नहीं, जीने का तरीका

देखिए न, मौसी जी से सीखने को बहुत कुछ है। पर सबसे बड़ी बात? वो never-give-up attitude। मतलब चाहे हालात कितने भी खराब क्यों न हों, डटे रहना। ठीक वैसे ही जैसे कोई पेड़ तूफान में भी अपनी जड़ें नहीं छोड़ता। और हाँ, courage तो उनकी कहानी से झर-झर बहता है – सच्ची बात!

क्या मौसी जी को आज के feminism से जोड़कर देखा जा सकता है?

अरे भई, ये तो बिल्कुल clear है! मौसी जी तो जैसे हमारे देश की पहली feminist थीं। उन्होंने जो बीज बोए, वो आज पूरा जंगल बन चुका है। पर एक बात – क्या आज का feminism उनके सपनों से थोड़ा अलग तो नहीं हो गया? ये सवाल मन में आता है…

मौसी जी को सच्ची श्रद्धांजलि कैसे दें?

बात सीधी है दोस्तों – सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होगा। अगर सच में मौसी जी को याद करना है तो:
• लड़कियों को पढ़ने दो – बस यूँ ही नहीं, पूरे मन से
• औरतों के साथ हो रहे भेदभाव पर चुप न रहो
• सबसे बड़ी बात – खुद में वो बदलाव लाओ जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो

क्योंकि याद रखो, मौसी जी सिर्फ एक इतिहास नहीं, एक जिंदा सोच हैं!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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