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“MNS कार्यकर्ताओं ने हिंदी भाषी ऑटो ड्राइवर की पिटाई की! मराठी न बोलने पर हुई गुंडागर्दी”

MNS कार्यकर्ताओं ने हिंदी भाषी ऑटो ड्राइवर की पिटाई की! मराठी न बोलने पर हुई गुंडागर्दी

महाराष्ट्र का पालघर जिला… जहां एक बार फिर भाषा के नाम पर हिंसा की खबर सुनकर दिल दहल गया। क्या आपने वह viral वीडियो देखा? जिसमें एक बेचारा ऑटो ड्राइवर सिर्फ इसलिए पिटता दिख रहा है क्योंकि वो हिंदी में बात कर रहा था। असल में बात ये है कि शिवसेना (उद्धव गुट) और MNS के कुछ नौजवानों को लगा कि उसने मराठी का अपमान किया। सच कहूं तो ये कोई नई बात नहीं, पर हर बार सुनकर झटका लगता है।

भाषाई विवाद की पृष्ठभूमि: क्या सिर्फ मराठी ही महाराष्ट्र की भाषा है?

देखिए, महाराष्ट्र में भाषा को लेकर तनाव तो बरसों से चला आ रहा है। MNS और शिवसेना वाले अक्सर मराठी अस्मिता की बात करते नज़र आते हैं। पर सवाल ये है कि क्या भाषा के नाम पर हिंसा जायज़ है? मुंबई जैसे शहर में तो हिंदी बोलने वालों की संख्या कम नहीं। फिर भी अक्सर ऐसी खबरें आती रहती हैं। पालघर की ये घटना तो बस एक नया अध्याय भर है।

घटना के बारे में क्या पता चला?

वीडियो में साफ दिख रहा है – ड्राइवर भाई हिंदी में बात करने पर अड़े हुए थे। और फिर क्या? लोगों का एक गुट उन पर टूट पड़ा। पुलिस ने FIR तो दर्ज कर ली है, मगर अभी तक किसी को हिरासत में नहीं लिया गया। है न अजीब बात? वहीं पीड़ित को अस्पताल जाना पड़ा। सोशल media पर ये मामला आग की तरह फैल रहा है। अब देखना ये है कि प्रशासन कब तक चुप्पी साधे रहता है।

किसने क्या कहा? राजनीति गरमाई

शिवसेना के उदय जाधव का बयान तो सुनिए – “महाराष्ट्र का अपमान बर्दाश्त नहीं!” पर भईया, भाषा न बोलना अपमान है क्या? वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का एक बड़ा वर्ग इस हिंसा के खिलाफ आवाज उठा रहा है। एक राहगीर ने तो बिल्कुल सही कहा – “ये गुंडागर्दी है, भाषा प्रेम नहीं।” मानवाधिकार वालों ने भी इसकी खूब खिंचाई की है।

आगे क्या होगा? कुछ सवाल

अब सबसे बड़ा सवाल – क्या इस घटना के बाद कुछ बदलेगा? पुलिस कार्रवाई करेगी या फिर ये मामला भी फाइलों में दब जाएगा? राजनीतिक दल तो इस मुद्दे को उछालकर अपनी रोटियां सेंकेंगे ही। पर क्या महाराष्ट्र सरकार कोई नई policy लाएगी? सोशल media का दबाव तो है ही। एक बात तो तय है – भाषा के नाम पर हिंसा से समाज का कोई भला नहीं होने वाला। सच कहूं तो ये घटना हम सभी के लिए एक सबक है।

आखिर में बस इतना ही – भाषा जोड़ने का माध्यम होनी चाहिए, तोड़ने का हथियार नहीं। पर क्या हमारे कुछ नेता और उनके समर्थक ये समझ पाएंगे? ये तो वक्त ही बताएगा।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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