NCERT की किताबों में बदलाव: असली वजह क्या है? शिक्षा मंत्री ने खोली पोल
अरे भाई, NCERT की किताबों में हुए बदलावों ने तो फिर से बवाल खड़ा कर दिया है! क्या इतिहास, क्या राजनीति विज्ञान – हर जगह संशोधन हो रहे हैं। और तो और, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तो आजतक को दिए इंटरव्यू में साफ कह दिया कि ये कोई मामूली बदलाव नहीं हैं। उनका कहना है, “देखिए, दशकों से एक खास गिरोह ने हमारे इतिहास को अपने तरीके से पेश किया। अब वक्त आ गया है सच सामने लाने का।” सच क्या है और झूठ क्या? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि कक्षा 6 से 12 तक की किताबों में जो बदलाव हुए हैं, वो बहस का विषय जरूर बन गए हैं।
क्या सच में मैकॉले की शिक्षा नीति आज भी चल रही है?
यार, ये NCERT किताबों वाला मामला कोई नया नहीं है। हम सब जानते हैं कि हमारा इतिहास अंग्रेजों के नजरिए से लिखा गया था। लेकिन मंत्री जी तो एक कदम आगे बढ़कर कह रहे हैं कि ये सिलसिला आजादी के बाद भी चलता रहा! उन्होंने तो लॉर्ड मैकॉले का नाम लेकर साफ कर दिया कि ये पूरा खेल ब्रिटिश राज से शुरू हुआ था। और सुनिए, उनका ये भी कहना है कि “एक परिवार और उसके चमचों” ने इसे जारी रखा। थोड़ा कड़वा लगता है न? लेकिन अगर सच्चाई यही है तो फिर पिछले कुछ सालों में इतिहास के कुछ हिस्से हटाए जाने को भी इसी नजरिए से देखना चाहिए।
क्या-क्या बदला? मुगलों से लेकर दलित विमर्श तक!
अब आते हैं असली मुद्दे पर। सबसे ज्यादा हंगामा तो मुगलों से जुड़े अध्यायों को हटाए जाने को लेकर हुआ है। पर यार, बस इतना ही नहीं! “दलित विमर्श” और “सांप्रदायिकता” जैसे टॉपिक्स में भी बड़े बदलाव किए गए हैं। मंत्री जी का कहना है कि ये सब “राजनीति” नहीं, बल्कि “शिक्षा” के लिए किया जा रहा है। उनका दावा है, “हम बच्चों को वही पढ़ाना चाहते हैं जो सच्चाई पर आधारित हो।” पर सवाल यह है कि सच्चाई का पैमाना क्या है? ये तो हर कोई अपने-अपने ढंग से देखता है न!
किसने क्या कहा? राजनीति गरमाई
इन बदलावों पर तो जैसे राजनीति की भट्टी तपने लगी है! कांग्रेस तो सीधे-सीधे कह रही है कि सरकार इतिहास को अपने हिसाब से लिखवाना चाहती है। वहीं दूसरी तरफ, कुछ शिक्षाविद इसे सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देने की कोशिश बता रहे हैं। मजे की बात ये कि छात्र संगठन भी चिंतित हैं – उन्हें लगता है कि इससे students का ज्ञान सीमित हो जाएगा। सच कहूं तो, हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है। आप किसकी बात मानेंगे?
आगे क्या? कोर्ट-कचहरी से लेकर चुनाव तक!
अब तो लगता है ये मामला और लंबा खिंचेगा। कुछ राज्य तो पहले ही कह चुके हैं कि वे इन बदलावों को मानने से इनकार करेंगे। केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने तो साफ इनकार कर दिया है! और हां, कोर्ट में भी इसकी सुनवाई हो सकती है। मंत्री जी कह रहे हैं कि “राष्ट्रीय हित” को ध्यान में रखकर और भी बदलाव किए जाएंगे। वहीं राजनीतिक पंडितों का मानना है कि ये मुद्दा अगले चुनावों तक गूंज सकता है। देखते हैं कौन जीतता है – सच्चाई या राजनीति!
अंतिम सवाल: ये इतिहास है या राजनीति का खेल?
दोस्तों, सच तो ये है कि NCERT की किताबों में बदलाव की बहस अब सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रही। एक तरफ सरकार कह रही है कि वो “सही इतिहास” लिख रही है, तो दूसरी तरफ विपक्ष इसे “शिक्षा का राजनीतिकरण” बता रहा है। असली नतीजा तो तभी पता चलेगा जब हम देखेंगे कि ये बदलाव students पर क्या असर डालते हैं। एक बात तो तय है – ये बहस अभी थमने वाली नहीं। क्योंकि जब बात इतिहास की होती है, तो हर किसी का अपना-अपना नजरिया होता है। आपको क्या लगता है – ये सही कदम है या गलत? कमेंट में जरूर बताइएगा!
NCERT Books में हुए बदलाव पर धर्मेंद्र प्रधान ने दिए जवाब – जानिए सबकुछ!
अरे भाई, ये NCERT वालों ने फिर से किताबों में हाथ-पैर मारने शुरू कर दिए हैं! लेकिन सच पूछो तो हर बार की तरह इस बार भी लोगों के मन में कई सवाल हैं। तो चलिए, शिक्षा मंत्री जी के जवाबों के साथ इसे समझते हैं।
1. NCERT की किताबों से क्या-क्या गायब हुआ है?
देखिए, NCERT ने अपनी किताबों से Democracy और Mughal Empire से जुड़े कुछ अध्यायों को अलविदा कह दिया है। सरकार का कहना है कि ये सिलेबस को और relevant बनाने के लिए किया गया है। पर सवाल ये है कि क्या सच में? क्योंकि जब भी कोई ऐसा बदलाव होता है, तो बहस तो छिड़नी ही है!
2. क्या ये सब राजनीति की वजह से हो रहा है?
अब यहाँ धर्मेंद्र प्रधान जी साफ-साफ कह रहे हैं कि इसमें कोई political motive नहीं है। उनका तर्क है कि students का workload कम करना और syllabus को update करना ही मकसद है। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो… आप खुद ही सोचिए, क्या ये सच में बस इतनी सी बात है?
3. क्या ये बदलाव हमेशा के लिए हैं?
यार, NCERT तो हर कुछ सालों में अपनी किताबों को update करता रहता है। तो अगर future में जरूरत पड़ी तो फिर से बदलाव हो सकते हैं। असल में, education system तो एक चलती-फिरती चीज़ है ना? जैसे समय बदलता है, वैसे-वैसे सिलेबस भी बदलता रहता है।
4. Teachers और students क्या कह रहे हैं इस बारे में?
देखा जाए तो यहाँ दोनों तरफ के लोग हैं। कुछ teachers ताली बजा रहे हैं कि “बहुत जरूरी बदलाव किए गए हैं”, वहीं दूसरी तरफ कुछ experts की चिंता है कि important historical facts हटाने से students की सोच सीमित हो सकती है। सच कहूँ तो… दोनों ही पक्षों में कुछ न कुछ तो दम है!
तो ये थी पूरी कहानी। अब आप ही बताइए – क्या ये बदलाव सही हैं या गलत? कमेंट में जरूर बताइएगा!
Source: Aaj Tak – Home | Secondary News Source: Pulsivic.com