“जगदीप धनखड़ के बाद कौन बनेगा उपराष्ट्रपति? दलित या मुस्लिम नेता – ये नाम हैं टॉप पर!”

जगदीप धनखड़ के बाद कौन? दलित या मुस्लिम नेता – ये 4 नाम चर्चा में ज़ोरों पर!

अरे भाई, राजनीति की दुनिया में इन दिनों एक ही सवाल सबकी ज़ुबान पर है – धनखड़ जी के जाने के बाद अब उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर कौन बैठेगा? सच कहूं तो 18 जुलाई को इस्तीफा देने के बाद से ही ये मुद्दा गरमा गया है। और देखिए न, BJP और NDA वालों के लिए ये कोई आम फैसला नहीं है। सूत्र तो ये कह रहे हैं कि शायद इस बार दलित या Muslim समुदाय से किसी नेता को मौका मिले। पर सच्चाई क्या है? चलिए समझते हैं…

पूरा माजरा क्या है?

देखिए, उपराष्ट्रपति चुनाव का पूरा नाच-गाना संविधान के अनुच्छेद 66 में लिखा है। लेकिन असल बात ये है कि BJP पिछले कुछ सालों से एक खास गेम खेल रही है – सामाजिक समावेशन का। कोविंद जी से लेकर धर्मेंद्र प्रधान तक, उनकी ये स्ट्रैटेजी साफ दिखती है। अब सवाल ये है कि क्या उपराष्ट्रपति पद के लिए भी वही फॉर्मूला अपनाया जाएगा? शायद हां…

कौन-कौन हैं रेस में?

अभी के अभी जो गप्पें सुनने को मिल रही हैं, उनके मुताबिक BJP के पास ये प्रमुख नाम हैं:

  • थावर चंद गहलोत – सामाजिक न्याय मंत्री और दलित नेता। काफी अनुभवी हैं।
  • ओम माथुर – पार्टी के भीतर इनकी पकड़ बहुत मजबूत है। पर क्या ये सही चॉइस होंगे?
  • Arif Mohammed Khan – केरल के Governor और बेबाक Muslim नेता। दिलचस्प विकल्प हो सकता है!
  • हरिवंश – पत्रकारिता से राजनीति तक का सफर। एक डार्क हॉर्स कह सकते हैं।

और हां, अगस्त तक ये पूरा ड्रामा खत्म हो जाएगा। पर क्या आपको नहीं लगता कि 2024 के चुनाव से पहले ये फैसला बहुत कुछ बदल सकता है?

क्या कह रहे हैं दल?

BJP वाले तो हमेशा की तरह ‘सामाजिक संतुलन’ की बात कर रहे हैं। वहीं Congress वालों ने तो सीधे आरोप लगा दिया – “ये तो वोट बैंक की राजनीति है!” सच कहूं तो दोनों के अपने-अपने मतलब हैं।

एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं? वो मानते हैं कि BJP के लिए ये 2024 से पहले अपनी छवि चमकाने का सुनहरा मौका है। लेकिन सवाल ये भी है कि क्या विपक्ष एकजुट हो पाएगा? वैसे तो… मुश्किल लगता है!

अब आगे क्या?

अगले कुछ दिनों में नामांकन शुरू हो जाएगा। BJP अपना फाइनल नाम NDA की मीटिंग में तय करेगी। और विपक्ष? उनका तो अभी तक कोई साझा उम्मीदवार तक नहीं है। है न मजेदार?

अंत में बस इतना कि ये कोई साधारण चुनाव नहीं है। ये तो असल में सरकार की नीयत की परीक्षा होगी। और हां, अगले कुछ हफ्तों में राजनीति का तापमान और बढ़ने वाला है। देखते हैं कौन जीतता है ये ‘उपराष्ट्रपति का खेल’!

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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