“निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने की आखिरी उम्मीद! क्या कर रही है मोदी सरकार?”

निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने की आखिरी उम्मीद! मोदी सरकार कितनी सीरियस है?

ये केस सच में दिल दहला देने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में यमन में फांसी की सजा पाई केरल की नर्स निमिषा प्रिया का मामला फिर चर्चा में है। सरकार कह रही है कि वो पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन सच ये भी है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनी झमेले ऐसे होते हैं जहां दाल नहीं गलती। अब सवाल सिर्फ एक जान का नहीं रह गया – ये तो भारत की कूटनीति और इंसानियत दोनों की परीक्षा है।

पूरा मामला क्या है?

सुनिए, निमिषा प्रिया केरल की एक नर्स हैं जिन्हें 2020 में यमन में एक हत्या केस में फंसा दिया गया। वहां की अदालत ने उन्हें फांसी सुना दी। भारत सरकार ने बीच-बचाव की कोशिश की, पर यमन का कानून सिस्टम ऐसा है कि बाहर का कोई दखल उन्हें पसंद नहीं। हमारे विदेश मंत्रालय ने कितनी ही बार गुहार लगाई, लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा।

और सच कहूं तो… यमन जैसे देशों में तो कानून का हाल ये है कि – जैसा वहां का शासन चाहे, वैसा चलता है। पर हमारी सरकार को तो कोई तो रास्ता निकालना ही होगा न?

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने सीधा सवाल दागा – “भईया, अब और कोई चारा बचा है क्या?” विदेश मंत्रालय का जवाब था कि वार्ता जारी है, पर गारंटी किस बात की? निमिषा के परिवार ने तो अब सीधे PM मोदी से मदद मांगी है। समय तेजी से निकला जा रहा है, और हर घंटा काटने जैसा हो रहा है।

राजनीति और जनता क्या कह रही है?

निमिषा के परिवार का बयान सुनकर आंखें नम हो जाती हैं – “हमें सरकार पर भरोसा है, पर डर तो लगा ही रहता है।” वहीं विपक्ष वालों ने सरकार पर निशाना साधा है – “जब एक भारतीय की जान दांव पर हो, तो देर क्यों?”

मैं सोच रहा हूं… क्या सच में हमारी सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है? या फिर ये केस उन ‘कूटनीतिक संवेदनशीलता’ के चक्कर में फंस गया है जहां फाइलें तो चलती हैं, पर नतीजा कभी नहीं आता?

अब क्या होगा?

अगले 48 घंटे बेहद अहम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से क्लीयर प्लान मांगा है। हाई-लेवल वार्ता हो सकती है, पर यमन की राजनीति तो ऐसी है जैसे रेगिस्तान में रेत के टीले – जितना समझो, उतना ही उलझते जाओ।

एक तरफ तो हम दुनिया को गगनयान भेज रहे हैं, दूसरी तरफ एक बेकसूर नर्स को बचाने में नाकाम? क्या ये हमारी विदेश नीति की असली तस्वीर है? आपको क्या लगता है?

[अंत में] अगर जल्द कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो… खैर, उसकी कल्पना भी नहीं करना चाहते।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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