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यमन में निमिषा प्रिया को मौत की सजा: जल्लाद की गोलियों से उड़ जाएंगे दिल के चिथड़े?

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यमन में निमिषा प्रिया को मौत की सजा: क्या यह न्याय है या निर्ममता?

16 जुलाई को एक ऐसी खबर आई जिसने सभी को झकझोर कर रख दिया। यमन की अदालत ने केरल की नर्स निमिषा प्रिया को मौत की सजा सुना दी! और यहां तो firing squad वाली बात है – जिसका मतलब है गोलियों से भून देना। सुनकर ही रूह कांप जाती है, है न? यह सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि एक ऐसी घटना है जिसने भारत से लेकर पूरी दुनिया में सवाल खड़े कर दिए हैं। भारत सरकार की प्रतिक्रिया तो समझ आती है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या यमन की कानून व्यवस्था इतनी कठोर होनी चाहिए?

पूरा मामला क्या है? आइए समझते हैं

निमिषा प्रिया, त्रिशूर की रहने वाली यह लड़की कब सोचती होगी कि यमन में nursing की नौकरी उसके लिए जानलेवा साबित होगी! कहते हैं उन पर एक यमनी नागरिक की हत्या का आरोप लगा। पर सच क्या है? यह तो शायद अदालत ही बेहतर जानती होगी। हमारे यहां तो death penalty बहुत ही rare cases में दी जाती है, लेकिन यमन में तो यह routine सी बात लगती है। भारत सरकार ने clemency की गुहार लगाई थी, मगर लगता है यमन की अदालतों पर कोई असर नहीं होता।

अब तक क्या हुआ? ताजा हालात

16 जुलाई का यह फैसला तो जैसे पानी की तरह सबके हाथ से निकल गया। भारतीय विदेश मंत्रालय कुछ करने की कोशिश कर रहा है, पर यमन की कानूनी व्यवस्था तो जैसे पत्थर की लकीर है। और सबसे डरावनी बात? firing squad! सोचिए, किसी के सामने खड़ा करके गोलियां मारना… निमिषा के परिवार वालों का क्या हाल हो रहा होगा, यह तो वही जानते होंगे।

कौन क्या कह रहा है?

भारत सरकार diplomatic channels से कोशिश कर रही है – यह तो ठीक है। लेकिन निमिषा का परिवार? उनकी बात सुनकर तो दिल टूट जाता है। “मेरी बेटी बिल्कुल निर्दोष है,” यही रो-रो कर कह रहे हैं। और सच कहूं तो international human rights organizations का भी यही कहना है। Amnesty International जैसे संगठनों ने तो यमन की इस बर्बर प्रथा पर सीधा सवाल उठा दिया है।

अब आगे क्या? क्या कोई उम्मीद है?

तो अब सवाल यह है कि क्या निमिषा की जान बच पाएगी? भारत सरकार की कोशिशें जारी हैं, पर यमन की higher court में अपील में समय लगेगा। और वक्त यहां सबसे बड़ा दुश्मन है। अगर यमन ने अपनी death penalty policy पर थोड़ा भी विचार किया होता, तो शायद आज यह स्थिति न होती। International pressure बढ़ रहा है – क्या यह काम आएगा? ईमानदारी से कहूं तो, मुझे पूरी उम्मीद नहीं।

अंत में बस इतना ही – निमिषा का मामला अब सिर्फ एक केस नहीं रहा। यह तो भारत और यमन के बीच एक राजनयिक जंग बन चुका है। एक तरफ निमिषा के परिवार की आंखों में उम्मीद, तो दूसरी तरफ यमन की कठोर व्यवस्था। क्या सच में इंसानियत इतनी सस्ती हो गई है? सोचने वाली बात है…

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निमिषा प्रिया का मामला, सच कहूं तो, काफी दिल दहला देने वाला है। यमन की कानूनी प्रक्रिया और इस पूरे केस की जटिलताएं सोचने पर मजबूर कर देती हैं – क्या हमारी दुनिया वाकई इतनी ‘सभ्य’ है जितना दिखावा करते हैं? एक तरफ तो हम मानवाधिकारों की बात करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ ऐसे मामले सामने आते हैं जो हमारी नींद उड़ा देते हैं।

असल में बात ये है कि ये केस सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं है। ये तो हम सबकी कहानी है। जब कोई निमिषा प्रिया जैसी लड़की अन्याय का शिकार होती है, तो सवाल उठता है – क्या हमारी व्यवस्था वाकई काम कर रही है? या फिर हम सिर्फ कागजों पर ही ‘justice’ की बात करते रह जाते हैं?

और फिर वो गोलियां… जो न सिर्फ एक जान लेती हैं, बल्कि हमारे विश्वास को भी छलनी कर देती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसे हादसों के बाद कितने ‘दिल के चिथड़े’ बिखर जाते हैं? सच तो ये है कि हर ऐसा मामला हमें याद दिलाता है कि हमें अभी बहुत कुछ सुधारना है।

तो क्या हम वाकई एक न्यायपूर्ण दुनिया बना पाए हैं? सच बताऊं तो, जवाब शायद ‘नहीं’ है। लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कोशिश करना छोड़ दें? पूरा मामला समझने के लिए आगे पढ़िए, और सोचिए – क्या आप भी इस बहस का हिस्सा बनना चाहेंगे?

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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