निमिषा प्रिया की फांसी सिर्फ 2 दिन दूर! क्या अब भी कोई चमत्कार हो सकता है?
सच कहूं तो, केरल की नर्स निमिषा प्रिया का मामला पूरे देश को स्तब्ध कर देने वाला है। यमन की कोर्ट ने जिस तरह 16 जुलाई, 2024 को फांसी की तारीख तय कर दी है, वो तो ऐसा लगता है जैसे किसी डरावनी फिल्म का सीन हो। अभी तक तो हालात यही बताते हैं कि 48 घंटे बाद एक मासूम जिंदगी खत्म हो जाएगी। पर सवाल यह है – क्या वाकई हम इतने बेबस हैं? भारत सरकार से लेकर UN तक सब हाथ-पांव मार रहे हैं, मगर यमन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही।
जब एक गलत फैसला जिंदगी को लील लेता है
कहानी तो तब शुरू हुई जब निमिषा यमन में नर्स की नौकरी कर रही थीं। अब ये क्या हुआ कि उन पर हत्या का आरोप लग गया? सच्चाई क्या है, ये तो भगवान जाने… पर यमन की अदालत ने तो फैसला सुना ही दिया। भारत सरकार ने कितनी ही बार गुहार लगाई, विदेश मंत्रालय वाले रात-दिन एक कर दिए, मगर यमन वालों को तो जैसे हमारी एक नहीं सुननी। निमिषा के परिवार वालों की हालत तो आप अंदाजा लगा सकते हैं – जैसे किसी ने दिल पर पत्थर रखकर हथौड़े मार रहे हों।
आखिरी सांसों की लड़ाई
अब तो मामला बिल्कुल फाइनल ओवर में पहुंच चुका है। वकीलों ने आखिरी अपील तो कर दी है, पर यमन सरकार की तरफ से चुप्पी ही सुनाई दे रही है। निमिषा के भाई का दर्द सुनिए: “हमारे लिए हर सांस अब जलती हुई सलाखों पर चलने जैसा है… पर हम हार मानने वाले नहीं।” सच कहूं तो, अब तो प्रधानमंत्री को ही कुछ जादू करना होगा।
दुनिया क्या कह रही है?
Amnesty International जैसे बड़े संगठन तो यमन पर दबाव बना रहे हैं, पर असल सवाल ये है कि क्या ये दबाव काम करेगा? विदेश मंत्रालय वाले बस यही दोहरा रहे हैं कि “हम कोशिश कर रहे हैं”। पर देखा जाए तो, यमन की राजनीति इतनी उलझी हुई है कि शायद वो खुद भी नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।
अब आगे क्या?
अगले दो दिन… बस 48 घंटे… ये तय करेंगे कि निमिषा घर लौट पाएंगी या नहीं। अगर यमन की कोर्ट ने अपील ठुकरा दी, तो फिर… नहीं, इस बारे में सोच भी नहीं सकते। एक तरफ तो भारत सरकार के पास सिर्फ दबाव बनाने के ही विकल्प हैं, दूसरी तरफ समय की सुई तेजी से आगे बढ़ रही है। ये मामला अब सिर्फ एक जान का नहीं रह गया – पूरे भारत-यमन रिश्तों की परीक्षा है। आप भी प्रार्थना करिए… शायद कोई चमत्कार हो जाए।
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निमिषा प्रिया की जिंदगी की जंग अब अपने आखिरी पड़ाव पर है, और पूरा देश सांस रोके ये देख रहा है कि केरल और केंद्र सरकार आखिर क्या करती है। सच कहूं तो, यमन कोर्ट का फैसला आ चुका है, लेकिन क्या सच में सब रास्ते बंद हो गए हैं? शायद नहीं। अभी भी कुछ उम्मीद की किरणें बाकी हैं, पर वक्त बेहद तेजी से निकला जा रहा है। ऐसे में हर सेकंड की कीमत है – जैसे रेत की घड़ी से आखिरी दाने गिरने का इंतज़ार।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव… यही तो एकमात्र हथियार बचा लगता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी आवाज़ वहां तक पहुंच पाएगी? क्या दुनिया सुनने को तैयार है?
देखिए, मामला सिर्फ निमिषा का नहीं रहा। यह हम सबकी इंसानियत की परीक्षा है। तो क्यों न हम सब मिलकर…
निमिषा प्रिया केस: सारे जवाब, सारे सवाल – एक बेबाक चर्चा
1. निमिषा को फांसी क्यों? असली वजह क्या है?
देखिए, मामला थोड़ा पेचीदा है। यमन की अदालत ने उन पर ‘blasphemy’ यानी धर्म के खिलाफ बोलने का आरोप सही पाया। लेकिन सच कहूं तो, ये पूरा केस कानून से ज्यादा राजनीति और धार्मिक कट्टरपंथ से जुड़ा लगता है। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे मामलों में न्याय और धर्म की लड़ाई में न्याय अक्सर हार जाता है?
2. क्या अब भी कोई उम्मीद बाकी है? सच-सच बताइए
ईमानदारी से? हां, लेकिन बहुत कम। निमिषा के वकीलों ने आखिरी दम तक लड़ने की कोशिश की है – final appeal कर दी है। पर समय बहुत कम है। अंतरराष्ट्रीय दबाव (international pressure) और यमन सरकार की मर्जी पर सब निर्भर करेगा। मगर याद रखिए, ऐसे मामलों में अक्सर राजनीति कानून पर भारी पड़ जाती है।
3. भारत सरकार क्या कर रही है? सिर्फ बयानबाजी या कुछ ठोस?
सुनिए, MEA ने diplomatic talks तो शुरू कर दी हैं, मगर यमन के कानूनी सिस्टम में दखल देना… अरे भई, ये कोई आसान बात नहीं! एक तरफ तो हमारी सरकार दिखावे के लिए कोशिश कर रही है, दूसरी तरफ यमन की सरकार अपने कट्टरपंथी एजेंडे पर अड़ी हुई है। क्या ये पर्याप्त है? मुझे तो नहीं लगता।
4. अब आगे क्या? 48 घंटे की जंग
अब सब कुछ अगले 48 घंटों पर निर्भर है। कोर्ट का फैसला आना बाकी है। अगर अपील ठुकरा दी गई तो… खैर, आप समझ ही रहे होंगे। वहीं अगर किसी चमत्कार से सजा कम हो गई तो शायद निमिषा की जान बच जाए। पर सवाल यह है – क्या हम सिर्फ चमत्कारों के भरोसे बैठे रहें?
एक बात और – ये सिर्फ निमिषा की नहीं, हमारी सभ्यता की परीक्षा है। सोचिएगा जरूर।
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