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“नितिन पई का चौंकाने वाला दावा: जाति जनगणना राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा?”

नितिन पई का वो बयान जिसने सबको झकझोर दिया: क्या जाति जनगणना देश को तोड़ने का काम करेगी?

अरे भई, वरिष्ठ पत्रकार नितिन पई ने तो हाल ही में एक ऐसी बात कही है जिसने सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट्स तक सबको हलचल में डाल दिया। उनका कहना है कि जाति के आधार पर जनगणना कराना… वो भी इस देश में जहाँ पहले से ही इतने फूट डालो राज करो वाले खेल चलते हैं? उन्होंने सीधे-सीधे इसे “राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा” बताया है। और सच कहूँ तो, उनकी बात में दम भी दिखता है। क्योंकि आखिरकार, क्या हम जाति को और मजबूत करके भेदभाव मिटा पाएंगे? या फिर ये सिर्फ वोट बैंक की राजनीति का एक नया हथियार बन जाएगा?

पहले समझिए पूरा मामला

देखिए, ये जाति जनगणना वाला मुद्दा कोई नया नहीं है। सालों से ये राजनीति की गर्मागर्म बहस का हिस्सा रहा है। कभी ये पार्टी उठाती है, कभी वो। लेकिन असली सवाल ये है कि – क्या हमें वाकई इसकी ज़रूरत है? हाँ, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने तो अपने स्तर पर ये काम शुरू भी कर दिया है। पर क्या ये सच में सामाजिक न्याय के लिए है? या फिर… (आप समझ ही गए होंगे) सियासी फायदे के लिए?

असली मुद्दा क्या है?

नितिन पई ने तो अपने आर्टिकल में साफ-साफ लिखा है – ये सब “राजनीतिक समीकरण” बनाने की चाल है। और सुनिए, मैं उनकी बात से पूरी तरह इनकार नहीं कर सकता। क्योंकि सच तो ये है कि जाति के आँकड़े जुटाने से हमारी पहचान और भी जाति-आधारित हो जाएगी। लंबे समय में, ये देश के लिए कितना नुकसानदेह होगा, ये तो समय ही बताएगा। हैरानी की बात ये कि केंद्र सरकार इस पर मौन साधे हुए है। क्यों? शायद वो भी इसकी राजनीति समझती है।

लोग क्या कह रहे हैं?

इस मुद्दे पर तो हर कोई अपनी-अपनी राग अलाप रहा है। एक तरफ वो लोग हैं जो कहते हैं कि इससे पिछड़ों को उनका हक मिलेगा। पर दूसरी तरफ, नितिन पई और कई जानकारों का मानना है कि ये तो बस पुराने ज़ख्मों को फिर से हरा करने जैसा है। और सच कहूँ? दोनों तरफ के तर्कों में कुछ न कुछ सच्चाई तो है ही।

आगे क्या होगा?

अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाने की। अगर जनगणना होती है, तो इसके नतीजे क्या होंगे? political analysts तो यहाँ तक कह रहे हैं कि अगले चुनावों में ये एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। और voting patterns पर इसका क्या असर पड़ेगा, ये तो और भी दिलचस्प होगा देखने को।

अंत में बस इतना कहूँगा – नितिन पई ने एक ऐसी बहस छेड़ दी है जिससे अब पीछे हटना मुश्किल है। अब देखना ये है कि सरकार और समाज इस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। और हाँ… क्या वाकई ये कदम देश की एकता के लिए खतरा साबित होगा? वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है – बहस जारी रहेगी!

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Source: Livemint – Opinion | Secondary News Source: Pulsivic.com

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