न्यूक्लियर पावर में निवेश बढ़ाने के लिए नियमों में बदलाव की ज़रूरत – पर क्या यह इतना आसान है?
अभी-अभी वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) ने एक रिपोर्ट छापी है जो सच में सोचने पर मजबूर कर देती है। असल में बात ये है कि न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर आज भी पुराने नियमों की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। और ये जंजीरें निवेश और नई टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ने से रोक रही हैं। सच कहूं तो, ये नियम इतने पुराने हो चुके हैं कि अब ये समस्या का हिस्सा बन गए हैं, समाधान नहीं।
पहले समझते हैं पूरा मामला
देखिए, न्यूक्लियर एनर्जी को क्लीन एनर्जी का रॉकस्टार माना जाता रहा है। कारण साफ है – ये कार्बन उत्सर्जन कम करने में मददगार हो सकती है। लेकिन…हमेशा एक लेकिन होता है न? सुरक्षा को लेकर चिंताओं ने इस सेक्टर को इतना रेगुलेट कर दिया है कि अब ये रेगुलेशन ही ब्रेक का काम कर रहा है। अमेरिका और यूरोप में तो न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने की अनुमति लेना ऐसा है जैसे किसी सरकारी दफ्तर में चक्कर काटना – लंबा, थकाऊ और खर्चीला!
यहां सबसे मजेदार बात ये है कि टेक्नोलॉजी तो आगे निकल चुकी है। Small Modular Reactors (SMRs) जैसी नई जनरेशन की टेक्नोलॉजी पुराने रिएक्टर्स से कहीं ज्यादा सुरक्षित और एफिशिएंट हैं। पर हमारे नियम? वो अभी भी 1980s के फ्रेंड्स सीरियल की तरह पुराने हैं। क्या आपको नहीं लगता कि ये मिसमैच खतरनाक है?
क्या हो रहा है अभी?
WSJ की रिपोर्ट में कुछ दिलचस्प सुझाव दिए गए हैं। मसलन, नए जमाने के लचीले नियम बनाने की बात। अच्छी खबर ये है कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने पहले ही SMRs के लिए नियमों को सरल बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एक तरह से देखें तो ये सेक्टर के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
और तो और, इंडस्ट्री के बड़े नाम भी अब खुलकर बोल रहे हैं। उनका कहना है कि अगर नियमों को आधुनिक बना दिया जाए, तो न्यूक्लियर एनर्जी क्लीन एनर्जी की दौड़ में फिर से अव्वल आ सकती है। पर सवाल ये है कि क्या सरकारें इन बातों को गंभीरता से लेंगी?
लोग क्या कह रहे हैं?
इस मामले पर राय अलग-अलग है। एक तरफ तो एक्सपर्ट्स का कहना है कि पुराने नियम नवाचार को दबोच रहे हैं। दूसरी तरफ, पर्यावरण एक्टिविस्ट्स की चिंता भी वाजिब है – कहीं नियम ढीले करने से सुरक्षा तो नहीं खतरे में पड़ जाएगी? सच तो ये है कि इन दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना ही असली चुनौती है।
हालांकि, सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक नए दिशा-निर्देशों पर काम चल रहा है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि वे इस सेक्टर को और कॉम्पिटिटिव बनाने के लिए पूरी गंभीरता से काम कर रहे हैं। पर सवाल ये है कि कब तक?
आगे की राह
अगले कुछ महीनों में अमेरिका और EU से बड़े ऐलान की उम्मीद है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो हम देख सकते हैं न्यूक्लियर एनर्जी में निवेश का नया बूम। और ये सिर्फ एनर्जी सेक्टर के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अच्छी खबर होगी। खासकर ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के मामले में तो ये किसी वरदान से कम नहीं होगा।
आखिर में बस इतना कहूंगा – नियमों में बदलाव ज़रूरी है, पर ये बदलाव सोच-समझकर होना चाहिए। बिना सुरक्षा को कमजोर किए। क्योंकि अंत में, सबसे ज़रूरी चीज है हमारी सुरक्षा और हमारा पर्यावरण। है न?
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1. न्यूक्लियर पावर में निवेश (investment) के लिए पुराने नियमों को बदलना क्यों ज़रूरी हो गया?
देखिए, ये पुराने नियम तो वैसे ही हैं जैसे आपके दादाजी का फोन – बेसिक तो चल जाता है, लेकिन आज के ज़माने के साथ बिल्कुल मैच नहीं करता। सच कहूँ तो, इन्हें अपडेट करने से न सिर्फ private investors आकर्षित होंगे, बल्कि innovation की रफ्तार भी बढ़ेगी। और भई, nuclear energy sector की growth तो इसमें छुपी ही है!
2. न्यूक्लियर पावर में innovation को बढ़ावा देने के लिए असल में क्या हो रहा है?
अरे, कई देश तो जैसे इस मामले में पूरी तरह जाग गए हैं! R&D के लिए funding दे रहे हैं, startups को हाथ थाम रहे हैं, और regulations को सरल बना रहे हैं। मतलब? अब advanced reactors और waste management solutions जैसी चीज़ों पर काम करना पहले से कहीं आसान होगा। सुरक्षित तकनीकें भी विकसित होंगी – यह तो win-win स्थिति है न?
3. सच-सच बताइए, क्या न्यूक्लियर एनर्जी में निवेश करना सच में safe है?
ईमानदारी से? आज की modern nuclear technologies पुराने ज़माने वालों से कहीं बेहतर हैं। थोड़ा सोचिए – अगर सही regulations हों और government सच में support करे, तो ये long-term investment का शानदार विकल्प बन सकता है। हालांकि, risk तो हर investment में होता ही है न?
4. भारत में न्यूक्लियर पावर सेक्टर की क्या हालत है? असलियत जानना चाहते हैं?
सुनिए, भारत में nuclear energy को तो बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन यहाँ की तो कहानी ही अलग है! Strict regulations और लंबे-चौड़े approval processes की वजह से growth कछुए की चाल से चल रही है। पर अच्छी बात यह है कि नए reforms के साथ यह sector और competitive हो सकता है। देखते हैं, कब तक हम इस potential को पूरी तरह utilize कर पाते हैं!
Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com