ओडिशा की 15 साल की बच्ची का AIIMS में निधन – कब तक चलेगी यह बर्बरता?
एक और दिल दहला देने वाली खबर। दिल्ली के AIIMS में ओडिशा की मासूम बच्ची ने दम तोड़ दिया। और वो भी कैसे? जिंदा जलाने की कोशिश के बाद! सच कहूं तो ये खबर पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अस्पताल की मेडिकल टीम ने काफी कोशिश की, पर वो इस जंग को हार गई। अब उसका शव पुरी ले जाया गया है, जहां पूरा गांव सिसकियां भर रहा है। ये सिर्फ एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि हमारे पूरे समाज पर एक काला दाग है।
क्या हुआ था असल में?
कहानी ओडिशा के पुरी जिले से शुरू होती है। एक 15 साल की लड़की… उम्र तो वो मेरी भतीजी जितनी ही होगी। कुछ नरपिशाचों ने उसे जिंदा जलाने की कोशिश की! सोचिए, कितनी पाशविक हरकत! गंभीर रूप से झुलसी हालत में उसे अस्पताल लाया गया। पुलिस ने जरूर केस दर्ज किया है, पर अब तक किसी को पकड़ा नहीं गया। और ये तो वही पुरानी कहानी है न – गांव में ऐसे मामले अक्सर दबा दिए जाते हैं।
अब तक क्या हुआ?
लड़की को पुरी से दिल्ली के AIIMS में रेफर किया गया था। वहां के डॉक्टर्स ने जान की बाजी लगा दी, मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। अब पुलिस ने मर्डर केस दर्ज किया है। पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ केस दर्ज करने से काम चलेगा? स्थानीय नेताओं से लेकर आम लोगों तक सब एक ही सवाल पूछ रहे हैं – ऐसे मामलों में इतनी देरी क्यों?
लोग क्या कह रहे हैं?
लड़की के परिवार की बात सुनकर दिल टूट जाता है। “हमें न्याय चाहिए” – ये उनकी चीख है। उनका कहना है कि अगर समय पर कार्रवाई हुई होती तो शायद… बस शायद ही सही, पर उनकी बेटी बच सकती थी। वहीं कुछ नेताओं ने बयानबाजी की है – “निंदनीय”, “दुखद” जैसे शब्दों के साथ। पर सच पूछो तो? इन शब्दों से क्या फर्क पड़ने वाला है? महिला संगठन सही सवाल उठा रहे हैं – जब तक सख्त सजा नहीं मिलेगी, ये सिलसिला थमने वाला नहीं।
अब आगे क्या?
पुलिस कह रही है कि जल्द ही गिरफ्तारियां होंगी। राज्य सरकार शायद विशेष जांच टीम बनाए। पर देखिए न, हर बार यही होता है न? एक घटना होती है, हंगामा होता है, फिर सब शांत। क्या इस बार कुछ अलग होगा? ओडिशा में महिला सुरक्षा को लेकर फिर से बहस छिड़ सकती है। पर बहस से क्या होगा? कानून बनाने होंगे, पुलिस व्यवस्था ठीक करनी होगी। वरना… वरना अगली खबर का इंतजार करते रहिए।
ये घटना हमारी व्यवस्था की विफलता की कहानी है। सवाल सिर्फ इस एक केस का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का है। क्या हम सच में इसे बदलना चाहते हैं? या फिर अगली बार भी सिर्फ “दुख जताएंगे” और आगे बढ़ जाएंगे? वक्त आ गया है कि समाज और सरकार मिलकर कुछ ठोस करे। वरना ये कहानियां बस दोहराती रहेंगी।
यह घटना सिर्फ ओडिशा नहीं, बल्कि पूरे देश के दिल पर एक गहरा घाव है। सोचिए, 15 साल की एक मासूम लड़की… उसके साथ हुई यह बर्बरता सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। असल में, ये वो मामले हैं जो हमारी मानवता पर सवाल खड़े कर देते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ आक्रोश जताने से काम चलेगा? मेरा मानना है कि जब तक ऐसे दरिंदों को सख्त सजा नहीं मिलती, तब तक हम ‘न्याय’ शब्द को गर्व से नहीं कह सकते।
अब बात करें सिस्टम की – पुलिस की त्वरित कार्रवाई तो ज़रूरी है ही, पर ये काफी नहीं। हमें पूरी व्यवस्था में सुधार की ज़रूरत है। वरना… अफसोस, ऐसी हृदयविदारक घटनाएं होती रहेंगी। एक तरफ तो हम technology में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ हमारी संवेदनाएं सिकुड़ती जा रही हैं। क्या यही विकास है?
Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com