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“ऑपरेशन तंदूर क्यों? सपा सांसद का पाकिस्तान के खिलाफ विवादित बयान | VIDEO”

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“ऑपरेशन तंदूर” वाला बयान: सपा सांसद ने क्यों छेड़ा राजनीति का नया घमासान?

अरे भई, भारतीय राजनीति में तो मानो हर दिन नया ड्रामा आता है! इस बार सपा के सांसद रामशंकर राजभर ने लोकसभा में ऐसा बम फोड़ा कि सोशल media आग बबूला हो गया। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक जोशीला भाषण था या फिर जानबूझकर किया गया कोई राजनीतिक चाल? असल में, उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ “ऑपरेशन तंदूर” चलाने की बात कही – यानी एक ऐसी सैन्य कार्रवाई जो और भी ज्यादा तीखी हो। और यह बयान आया पहलगाम हमले के बाद, जब देश का माहौल पहले से ही गरम था।

पहलगाम हमला: जब दर्द ने जन्म दिया एक नए विवाद को

इसे ऐसे समझिए – 22 अप्रैल को पहलगाम में हमारे जवान शहीद हुए। देश का दिल दहल गया। फिर 17 दिन बाद सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर किया। लेकिन देखिए न, राजभर जी को लगा कि यह कार्रवाई कुछ कमजोर थी। उनका तर्क? “जब पाकिस्तान तंदूर में रोटी सेंक रहा है, तो हमें भी ऑपरेशन तंदूर चलाना चाहिए था!” एक तरफ तो यह बयान जनभावनाओं को छूता है, लेकिन दूसरी तरफ… क्या यह बयान बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं हो गया?

वायरल वीडियो और राजनीति का नया खेल

अब तो आपने सोशल media पर वह वीडियो देखा ही होगा – जहां राजभर जी बार-बार “तंदूर” शब्द दोहरा रहे हैं। सच कहूं तो, यह बयान राजनीति के तापमान को अचानक बढ़ा दिया। विपक्ष कह रहा है – “सही बात कही!” जबकि सरकार पलटवार कर रही है – “यह तो भड़काऊ भाषण है!” और हां, सुरक्षा विशेषज्ञों की चिंता भी समझ आती है – क्या ऐसे बयानों से पाकिस्तान को नया बहाना नहीं मिल जाएगा?

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: कौन किसके साथ?

सपा का स्टैंड क्लियर है – “हमने तो सिर्फ जनता की आवाज उठाई!” लेकिन भाजपा वालों का कहना है कि यह “बेहूदा बयानबाजी” है। सोशल media पर तो माजरा और भी दिलचस्प है – कुछ लोग तालियां बजा रहे हैं, तो कुछ इसे “युद्ध भड़काने वाला” बता रहे हैं। ईमानदारी से कहूं तो, यह पूरा मामला देशभक्ति बनाम जिम्मेदार बयानबाजी की बहस में तब्दील हो गया है।

आगे क्या? राजनीति के शतरंज की चालें

अब सवाल यह है कि यह मामला कहां जाकर रुकेगा? संसद में तो बहस होगी ही। कहीं ऐसा तो नहीं कि राजभर जी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू हो जाए? और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर… पाकिस्तान तो इस मौके का फायदा उठाने से रहने वाला नहीं। एकदम ज़बरदस्त। सच में।

अंत में बस इतना – यह मामला सिर्फ एक बयान से कहीं बड़ा है। यह हमारे लिए एक सवाल छोड़ जाता है: राष्ट्रीय सुरक्षा और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच की लकीर कहाँ खींचें? आने वाले दिन दिलचस्प होने वाले हैं, यह तो तय है!

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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