UNSC का अध्यक्ष बना पाकिस्तान: भारत के लिए कितनी बड़ी मुसीबत?
अच्छा, तो ये हुआ न कि पाकिस्तान UNSC का चेयरमैन बन गया है। सुनकर ही माथे पर बल पड़ गए न? असल में बात ये है कि ये पद तो महज एक महीने के लिए है, लेकिन इस दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की कमान उनके हाथ में होगी। और यहीं से शुरू होती है मुसीबत। क्यों? क्योंकि जिस देश पर आतंकवाद को पालने-पोसने के आरोप लगते रहे हैं, उसे ये जिम्मेदारी मिल गई। सोचिए, ये कुछ ऐसा ही है जैसे चोर को तिजोरी की चाबी सौंप दी जाए!
पूरा माजरा क्या है?
देखिए, UNSC में 15 देश होते हैं – 5 तो परमानेंट वाले (जिन्हें वीटो पावर मिली हुई है) और 10 अस्थाई। पाकिस्तान को 2022-23 के लिए अस्थाई सदस्यता मिली थी, और अब उन्हें ये चेयरमैनशिप भी। मजे की बात ये कि ये वही पाकिस्तान है जिसके बारे में FATF की रिपोर्ट्स से लेकर UN तक में आतंकवाद के मामले उठते रहे हैं। अब सवाल ये कि क्या ये सच में “शांति और स्थिरता” की बात करेगा? वैसे तो उनके विदेश मंत्री कुरैशी साहब बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन हमारे MEA के लोगों का तो मानना है कि ये पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है।
क्या-क्या उठा सकता है पाकिस्तान?
अंदर की बात ये है कि पाकिस्तान ने अपने एजेंडे में कश्मीर और इस्लामोफोबिया जैसे मुद्दे रखे हैं। सीधा मतलब – भारत को घेरने की कोशिश। हालांकि अमेरिका और यूरोप अभी तक चुप हैं, लेकिन भारत ने तो साफ कह दिया है कि ये नियुक्ति गलत है। एक तरफ तो पाकिस्तान इसे अपनी “कूटनीतिक जीत” बता रहा है, वहीं दूसरी तरफ विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ कह रहे हैं कि ये सिर्फ प्रोपेगैंडा फैलाएगा, तो कुछ का मानना है कि UNSC के सख्त नियमों की वजह से ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगा।
भारत को क्या करना चाहिए?
अब बात करते हैं सबसे जरूरी बात – हमारी रणनीति क्या होनी चाहिए? देखिए, पाकिस्तान जरूर कोशिश करेगा कश्मीर जैसे मुद्दे उठाने की, लेकिन भारत को अपनी कूटनीति और तेज करनी होगी। वैसे भी, पूरी दुनिया की नजर इस पर टिकी हुई है। अगर पाकिस्तान ने गलत हरकत की, तो उसकी जो थोड़ी-बहुत विश्वसनीयता बची है, वो भी खत्म। सच कहूं तो ये एक तरह से उनके लिए डबल-एज्ड स्वॉर्ड जैसा है।
तो हालात क्या हैं? एक तरफ चुनौती है, दूसरी तरफ मौका भी। पाकिस्तान की ये अध्यक्षता भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है, लेकिन UN के नियम और अंतरराष्ट्रीय दबाव उन्हें रोक भी सकते हैं। हमें बस इतना करना है – आंखें खुली रखें, और अपनी कूटनीति को और धारदार बनाएं। क्योंकि अंत में, सच्चाई की ही जीत होती है। है न?
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