“संसद में सेना की तारीफ पर सन्नाटा! ठाकुर का विपक्ष को करारा जवाब”

संसद में सेना की तारीफ पर सन्नाटा! ठाकुर का विपक्ष को करारा जवाब

आज लोकसभा में कुछ ऐसा हुआ जिसने साबित कर दिया कि राजनीति और देशभक्ति के बीच का फर्क कभी-कभी कितना धुंधला हो जाता है। भाजपा के अनुराग ठाकुर ने जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बोलते हुए हमारी सेना की तारीफ की, तो पूरा सदन एक पल के लिए ठिठक सा गया। सच कहूं तो, ये वाकई अजीब नज़ारा था – एक तरफ तो ठाकुर का जोशीला भाषण, दूसरी तरफ विपक्ष की सुन्न सी चुप्पी। और है न, ये चुप्पी किसी सहमति से ज़्यादा असहमति की आवाज़ लग रही थी। क्या ये आने वाले दिनों की राजनीति का नया ट्रेंड बनेगा? कौन जाने!

ऑपरेशन सिंदूर: असली मुद्दा क्या है?

देखिए, पूरी बहस की जड़ में है ‘ऑपरेशन सिंदूर’। वो मिशन जहां हमारे जवानों ने सीमा पार से हो रही आतंकी हरकतों को नाकाम कर दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या सेना के ऐसे ऑपरेशन्स पर संसद में बहस होनी चाहिए? ठाकुर ने तो इसी मौके को भुनाते हुए सरकार और सेना दोनों की पीठ थपथपा दी। और सच मानिए, उनका ये तरीका कामयाब रहा। क्योंकि जब विपक्ष ने रक्षा नीतियों पर सवाल उठाने शुरू किए, तो ठाकुर ने उन्हें चुप कराने का एकदम सही फॉर्मूला ढूंढ लिया। सेना की तारीफ। सीधा हिट।

ठाकुर का वो बयान जिसने बदल दिया गेम

अब जरा ठाकुर के उस बयान पर गौर कीजिए: “प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने आतंकवाद के खिलाफ zero tolerance की नीति अपनाई है।” बस, इतना कहना काफी था। और फिर तो जैसे पूरा विपक्ष शतरंज के उस मोहरे की तरह हो गया जिसकी चाल पहले से ही फंस चुकी हो। सबसे मजेदार? उनकी प्रतिक्रिया… यानी बिल्कुल कोई प्रतिक्रिया नहीं! आप सोच रहे होंगे – क्या ये चुप्पी सहमति थी या फिर असहजता? मेरा मानना है – दूसरा विकल्प।

राजनीति का वो पुराना खेल: सेना बनाम सियासत

इसके बाद तो राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। भाजपा वाले तो खुश होकर ठाकुर की पीठ थपथपा रहे थे। लेकिन विपक्ष? उनके एक नेता ने (बिना नाम लिए, बिल्कुल!) कहा: “सेना का इस्तेमाल political propaganda के लिए नहीं किया जाना चाहिए।” और सोशल मीडिया? वहां तो #AnuragThakur और #OperationSindoor ट्रेंड करने लगे। कुछ लोग सेना के समर्थन में, तो कुछ इसे सियासी चाल बता रहे थे। मतलब साफ है – देश बंटा हुआ है इस मुद्दे पर।

आगे क्या? राजनीति का नया अध्याय?

अब सवाल ये कि आगे क्या होगा? मेरी राय में तो ये सिर्फ शुरुआत है। विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाएगा, ये तय है। और सरकार? वो शायद सेना के सम्मान में कोई नई योजना लाएगी। पर असली सवाल तो ये है कि क्या हम कभी इस बहस से बाहर निकल पाएंगे? वो बहस जहां राष्ट्रहित और राजनीतिक फायदे की लड़ाई हमेशा से चलती आई है। अब देखना ये है कि आने वाले दिनों में ये मामला किस रुख पर जाता है। एक बात तो तय है – ये बहस यहीं खत्म नहीं होने वाली!

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‘संसद में सेना की तारीफ पर सन्नाटा’ – क्या ये सियासत का नया खेल है या देशभक्ति का सवाल?

1. संसद में सेना की तारीफ पर सन्नाटा क्यों छा गया? असल में क्या हुआ?

देखिए, मामला सीधा-सा है। ठाकुर जी ने सेना की तारीफ की, और पूरा विपक्ष… चुप! अब ये चुप्पी क्या कहती है? क्या ये सहमति थी या फिर कोई सियासी चाल? सच तो ये है कि विपक्ष के पास इस मौके पर बोलने के लिए शायद शब्द ही नहीं थे। या फिर, हो सकता है उन्हें लगा हो कि इस मुद्दे पर बहस करना उनके लिए फायदेमंद नहीं होगा। राजनीति, है ना?

2. ठाकुर जी का जवाब – सख्त या जरूरत से ज्यादा?

ठाकुर जी ने तो जैसे विपक्ष को सीधे निशाने पर ले लिया! उनका कहना था कि सेना के समर्पण पर सवाल उठाना… अरे भई, ये तो वैसा ही है जैसे किसी मंदिर में जाकर भगवान के अस्तित्व पर बहस करना। लेकिन सवाल ये है – क्या ये जवाब थोड़ा ज्यादा आक्रामक नहीं हो गया? क्या राष्ट्रहित के नाम पर हर आलोचना को ‘गद्दारी’ का टैग देना सही है? ईमानदारी से कहूं तो, ये सवाल मेरे मन में भी उठ रहे हैं।

3. क्या यह मामला अब सिर्फ सियासी गोलबंदी बनकर रह गया है?

बिल्कुल! और यही सबसे दुखद हिस्सा है। सेना जो हमारी गर्व की प्रतीक होनी चाहिए, वो अब राजनीति का मोहरा बनती जा रही है। एक तरफ सरकार है जो सेना को ‘हम vs तुम’ की लड़ाई में इस्तेमाल कर रही है, तो दूसरी तरफ विपक्ष जो अपनी चुप्पी से इस खेल में शामिल हो गया है। सच कहूं तो, दोनों ही पक्षों को अपनी रणनीति पर फिर से सोचने की जरूरत है।

4. जनता और सोशल मीडिया का रिएक्शन – दो टूक या दो ध्रुव?

अरे भई, सोशल मीडिया तो आग लगा रहा है! #SenaVsPolitics ट्रेंड कर रहा है, लेकिन असल में लोग दो खेमों में बंटे हुए हैं। कुछ लोग ठाकुर जी के स्टैंड को ‘देशभक्ति’ बता रहे हैं – ‘सैल्यूट सर!’ वाले कमेंट्स से फीड्स भरी पड़ी हैं। वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग सवाल कर रहे हैं – क्या सेना को राजनीति के इस खेल में घसीटना सही है? और हां, बीच में कुछ ऐसे भी हैं जो बस पॉपकॉर्न लेकर इस पूरे ड्रामा को एंजॉय कर रहे हैं। सोशल मीडिया वाली बात ही अलग है ना!

फाइनल वर्ड? ये पूरा मामला हमें एक अहम सवाल की तरफ ले जाता है – क्या देशभक्ति और राजनीति को अलग-अलग रख पाना अब नामुमकिन हो गया है? सोचिएगा जरूर…

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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