संसद में सिंदूर विवाद: क्या सच में मारा गया सियासी निशाना, या सिर्फ हवा में तलवारें भांजी गईं?
अरे भई, इस हफ्ते लोकसभा में जो हुआ, वो किसी पॉलिटिकल थ्रिलर से कम नहीं था! जब विदेश मंत्री जयशंकर ने ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर की कहानी सुनाई, तो विपक्ष ने ऐसे सवालों की बौछार की जैसे कोई गेम शो में रैपिड फायर राउंड चल रहा हो। और सरकार? उन्होंने तो अमेरिकी राष्ट्रपति के दावों को ऐसे खारिज किया, जैसे कोई क्रिकेट में बाउंड्री लाइन पर कैच छोड़ दिया हो। असल में, यह बहस अब सीजफायर से आगे निकलकर एक बड़े सवाल पर आ गई है – क्या हमारी विदेश नीति में वाकई कोई कमी है, या फिर विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है?
कहानी की शुरुआत: बालाकोट से सीजफायर तक का सफर
याद है न 2019 का वो मंजर? पुलवामा हमले के बाद भारत ने बालाकोट में जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी, वो तो एकदम ‘मिशन इम्पॉसिबल’ जैसी थी। लेकिन फिर 2021 में अचानक सीजफायर? है न अजीब बात? अमेरिकी राष्ट्रपति का दावा, सरकार का इनकार…और विपक्ष का मौका देखते ही हमला कर देना। सच कहूं तो, ये पूरा मामला उस पुरानी कहावत जैसा है – “जहां तेल होगा, वहां आग लगेगी ही।” और राजनीति में तो तेल की कोई कमी नहीं होती!
संसद का ड्रामा: कौन बनेगा विजेता?
जयशंकर जी ने तो जैसे संसद को अपनी कूटनीतिक क्लासरूम बना दिया। उनका कहना साफ था – “हम किसी के इशारे पर नहीं नाचते!” लेकिन विपक्ष को ये जवाब पचा नहीं। कांग्रेस के एक नेता ने तो सीधे पूछ ही डाला – “कहीं कोई चोरी-छिपे डील तो नहीं हुई?” सच मानिए, ये देखने लायक नज़ारा था जब सरकार ने विपक्ष पर “देश की छवि खराब करने” का आरोप लगाया। ऐसा लगा जैसे कबड्डी मैच में कोई पूरी टीम एक साथ ‘स्ट्रगल’ कर रही हो!
जनता और नेताओं की प्रतिक्रिया: किसकी बज रही है बीन?
देखा जाए तो इस मामले में हर कोई अपनी-अपनी रागिनी अलाप रहा है। विपक्ष “पारदर्शिता” की रट लगा रहा है, तो सरकार समर्थक “राष्ट्रविरोधी” का तमगा लगा रहे हैं। एक तरफ तो विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सीजफायर से शांति मिली है, दूसरी तरफ सोशल media पर जनता के कमेंट पढ़कर लगता है जैसे कोई वॉर ऑफ वर्ड्स चल रहा हो। क्या आपने भी ट्विटर पर वो ट्रेंडिंग हैशटैग देखे? #SindoorScam और #ModiRightAgain – दोनों ही चल निकले हैं!
आगे क्या? एक क्रिस्टल बॉल प्रेडिक्शन
अभी तो ये विवाद ऐसा लग रहा है जैसे धीमी आंच पर पक रही दाल – जल्दी नहीं पकने वाली। विपक्ष अगले सत्र में और दस्तावेज मांगेगा, सरकार अपनी बात पर अड़ी रहेगी। हालांकि एक अच्छी बात ये है कि सीमा पर गोलाबारी कम हुई है। लेकिन असली सवाल तो ये है – क्या आतंकवाद की समस्या का समाधान हुआ है? और हां, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Western देशों की दिलचस्पी तो बनी ही रहेगी। कुछ विश्लेषक तो यहां तक कह रहे हैं कि ये मामला भारत की सुरक्षा नीतियों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है। सच कहूं तो, अभी तो ये सिर्फ पहला अध्याय है!
अंतिम बात: एक ही घटना, हज़ार नज़रिए
ये सिंदूर विवाद अब सिर्फ सीजफायर तक सीमित नहीं रहा। ये तो एक ऐसा आईना बन गया है जिसमें हर पार्टी अपना-अपना चेहरा देख रही है। सरकार इसे अपनी जीत बता रही है, विपक्ष इसमें छिपे राज ढूंढ रहा है। और जनता? वो तो बस ये सोच रही है – “भई, इतना ड्रामा क्यों?” एक बात तो तय है – आने वाले दिनों में ये बहस और गर्म होगी। क्योंकि जब तक चुनाव नजदीक हैं, तब तक तो ये तूफान थमने वाला नहीं। है न मजेदार बात?
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संसद में सिंदूर विवाद ने फिर से हंगामा खड़ा कर दिया है। सच कहूं तो, ये सियासी नाटक अब थोड़ा पुराना लगने लगा है – एक तरफ विपक्ष के तीखे सवाल, दूसरी तरफ सरकार के रटे-रटाए जवाब। पर सोचने वाली बात ये है कि क्या ये सब सिर्फ दिखावा है या असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश?
ऑपरेशन सिंदूर से लेकर काले कपड़ों तक… ये सब देखकर लगता है जैसे कोई political drama series चल रही हो। मजे की बात ये कि सबको पता है कि ये सब नाटक है, फिर भी सब इसे बड़े मजे से खेल रहे हैं।
असल सवाल तो ये है – क्या हमारे नेता सच में जनता की परेशानियों को सुन रहे हैं? या फिर ये सब सिर्फ TV debates और social media trends के लिए है?
एक बात तो तय है – लोकतंत्र में हर आवाज़ सुनी जानी चाहिए। पर क्या ये आवाज़ें सच में जनता की हैं? या फिर… खैर, अब देखते हैं ये विवाद आगे किस रूप में सामने आता है। और सबसे बड़ा सवाल – जनता इस सब पर क्या सोच रही होगी? शायद वो इन सबसे बेज़ार हो चुकी है। सच ना?
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